संगीता गुप्ता की कविताएँ
1)
हरसिंगार इस उम्मीद में
रात भर झरता है कि
किसी सुबह जब तुम आओ तो
तुम्हारी राहें महकती रहें
बेमौसम भी बादल बरसते हैं कि
कभी तो तुम्हें भिगा सकें
सूरज उगता-डूबता है कि
आते-जाते तुम्हें देख लेगा
रात तुम्हारे साथ सोने को
बहुत तरसती है
चांद कब से लोरियो का खज़ाना
समेटे बैठा है कि
तुम आओ तो तुम्हें थपक दे
मेरे साथ पूरी कायनात को
तुम्हारा इंतजार रहता है.
2)
ज़मीन की तरह मैं भी
रोशनी के सफर पर हूँ
ख्वाहिश है
रोशनी की रफ्तार से चलूं
और वक्त थम जाये
ठहर जाए
जिस्म से परे
रूह निकल जाये
मुसलसल
जमीन की तरह
मैं भी
रोशनी के सफर पर हूँ.
3)
कल उम्मीदें बोईं हैं
गमलों में
देखें कब
खिलती हैं.
4)
मत दो वैभव
मत दो सफलता
मत दो यश
बस मेरे प्रभु
रहने दो मेरे साथ
मेरे प्रेम की
सामर्थ
5)
तूफान अक्सर
बिन बताये ही आते हैं
उथल-पुथल मचा कर
लौट जाते हैं
ज़िंदगी ब-दस्तूर चलती है
फ़क़त आप-आप नहीं रहते
वक़्त बदला जाता है
कई दर्द कई जख़्म
साथ हो लेते हैं
6)
फिर सावन आया
नीम, जामुन और नन्हे पौधे
सब भीग रहे
सावन सबके लिए आया
मीठी फुहारें सबको महका रहीं
तुम भी कहीं भीग रहे होगे
कुछ सावन में
कुछ यादों में
कुछ मेरे करीब होने के एहसास में
इन सब को भीगते देखना
अच्छा-सा लगता
मैं भी अरसे बाद
मुस्करा पड़ी हूं
देखो न
फिर सावन आया .
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