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मो यान और चीन की एक बच्चा नीति : विजय शर्मा






















मो यान  और चीन की एक बच्चा नीति
विजय शर्मा


चीन की बढ़ती आबादी की समस्या से निपटने के लिए 1979 में एक बच्चा नीति की स्थापना हुई. हालाँकि इसे अस्थाई उपाय कहा गया लेकिन यह कई दशकों तक चलती रही. इसके पहले भी चीन में परिवार नियोजन के लिए 1970 में, ‘देर से, लंबी अवधि के बाद तथा कम’ की नीति अपनाई गई थी. वैसे 1979 की नीति केवल शहरी इलाके के लिए थी, ग्रामीण और एथनिक समूहों को इससे बाहर रखा गया था. परिवार की आ-मद-नी को भी एक फ़ैक्टर रखा गया. दूसरे-तीसरे बच्चों के लिए उन पर भी शर्तानुसार पाबंदियाँ थीं. पहला बच्चा यदि अपंग हुआ तो दूसरे बच्चे की छूट का प्रवधान भी था. इसे लागू करने के लिए अधिकारियों ने खूब मनमानी की. जुर्माना, स्त्रियों की जबरदस्ती नसबंदी (पुरुषों की क्यों नहीं?) और गर्भपात जैसे क्रूर तरीकों को अपनाया. किसानों के घर जला दिए गए. कॉलेज प्रोफ़ेसरों को अपना पद गँवाना पड़ा, लोगों को अपने शिशु की हत्या करनी पड़ी. कई स्थानों पर दंगे तक हुए. एक ऑफ़ीसर इस दु:खद स्मृति से अब भी नहीं उबरा है, उसने एक गर्भवती स्त्री का पीछा किया और वह गर्दन तक तालाब के पानी में डूब कर अपना गर्भ बचाने की गुहार लगाती रही थी.

दुनिया के अधिकाँश देशों की भाँति चीन में भी परिवार में लडके को वरीयता दी जाती है. एक बच्चा नीति से इस पर भी असर पड़ा, धड़ाधड़ बालिका भ्रूण की हत्या होने लगी. पैदा हो जाए तो मरने के लिए छोड़ दिया जाता. जल्द ही इस नीति से आबादी में स्त्री-पुरुष अनुपात में विषमता आ गई. बूढ़ों की संख्या बढ़ने लगी. अब आर्थिक नीतियाँ बदलने से पहले सी बातें भी नहीं रह गई थीं. 2013 में नीति में लचीलापन लाया गया और कुछ परिवारों को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति मिलने लगी. फ़िर 2015 में सब परिवारों को दो बच्चे की अनुमति दे दी गई और अब अफ़वाह है कि शीघ्र ही पूरी नीति को समाप्त कर दिया जाएगा और परिवार तीन बच्चे पैदा कर सकेंगे. विडम्बना है कि एक सर्वे के अनुसार अब परिवार अधिक बच्चे पैदा ही नहीं करना चाहते हैं.

मो यान का उपन्यास ‘फ़्रॉग’ चीन की एक बच्चा नीति पर आधारित है. वे कहते हैं कि उनके नवीनतम उपन्यास ‘फ़ॉग’ में केंद्रीय चरित्र उनकी एक मौसी है. उपन्यास में उसका नाम गुगु है. इस उपन्यास में नोबेल पुरस्कार की घोषणा होते ही पत्रकार साक्षात्कार का अनुरोध लिए उसके घर की ओर दौड़ पड़े. पहले वह धैर्य से इसको एकॉमडेट करती रही फ़िर जल्द ही उनके ध्यान से बचने के लिए अपने बेटे के घर चली गई. वे इससे इंकार नहीं करते हैं कि ‘फ़ॉग’ लिखने में उनकी मौसी उनकी मॉडल थी, लेकिन उसमें और काल्पनिक मौसी में बहुत अंतर है. साहित्यिक ऑन्ट बहुत आक्रमक और शासन करने वाली है, शातिर भी जबकि उनकी वास्तविक ऑन्ट दयालु और सौम्य है. एक जिम्मेदार पत्नी और प्यार करने वाली माँ. उनकी असली ऑन्ट के सुनहरे साल बहुत खुशहाल और संतोषजनक थे जबकि काल्पनिक ऑन्ट को अनिद्रा की शिकायत है और उसके आखिरी साल आध्यात्मिक रूप से दु:खद हैं. वह रात को काला लबादा पहन कर भूतनी की तरह चलती है. वे अपनी ऑन्ट के अनुग्रहीत हैं कि वे कल्पना में उन्हें ऐसे बदल कर उपन्यास में इस तरह प्रस्तुत करने के बावजूद उनसे गुस्सा नहीं हैं. वे वास्तविक और काल्पनिक व्यक्ति के जटिल रिश्ते को समझती हैं, वे उनकी इस समझदारी का भी आदर करते हैं.

यह उपन्यास चीन में 2009 में प्रकाशित हुआ और इसे 2011 का माओ डन साहित्यिक पुरस्कार प्राप्त हुआ. अब इसका इंग्लिश अनुवाद प्राप्त है, जिसे उनके अनुवादक हॉवर्ड गोल्डब्लाट ने ही किया है. यह भी उनके अधिकाँश कार्य की भाँति उनके इलाके गाओमी में ही स्थित है. शीर्षक ‘फ़्रॉग’ के विषय में मो यान का कहना है कि आदमी के शुक्राणु, प्रारंभिक स्तर के गर्भ और टेडपोल्स तथा बुलफ़्रॉग्स को मिला कर उन्होंने गूँथा है. लेकिन असल में वे इस उपन्यास में प्रेम और जीवन के महत्व को स्थापित करते हैं. पूरी कहानी पत्रों द्वारा कही गई है, पत्र जो जापान के एक प्रसिद्ध लेकिन अनाम लेखक को लिखे गए हैं. कथावाचक (पत्र लिखने  वाला) गुगु के बारे में एक नाटक लिखने का इरादा रखता है. एक लघु नाटक उपन्यास में परिशिष्ट के रूप में जुड़ा हुआ भी है.

कहानी जब प्रारंभ होती है उस समय गुगु की उम्र 70 साल है. वह एक प्रसिद्ध डॉक्टर की बेटी है. उसका जीवन काल चीन का इतिहास भी प्रस्तुत करता है. इस काल में चीन जापान का अधिकृत हिस्सा रहा, 1949 में कम्युनिस्ट पार्टी की जीत हुई, भूख का तांडव हुआ और तमाम तरह के अत्याचार हुए, कम्युनिस्ट शासन के पहले 30 साल में खूब राजनैतिक उथल-पुथल हुई. अंत में राज्य निर्देशित पूँजीवाद भी आया. कुछ लोग धनी हो गए, बाकी गरीबी के गर्त में डूब गए. 

गुगु किशोरावस्था से ही बहुत जादूई व्यक्तित्व की थी और वह दाई के रूप में प्रशिक्षित भी थी. उसने पुरानी दाइयों की छुट्टी कर दी थी, और खूब बच्चे जनाए थे. लेकिन समय के साथ राज्य की नीति बदली और गुगु राज्य की एक बच्चा नीति के तहत जुनूनी ढ़ंग से जबरदस्ती गर्भपात कराने लगी, नतीजन लोग उससे नफ़रत करने लगे. तमाम गर्भवती स्त्रियाँ और अजन्मे शिशुओं की भयंकर हत्याएँ होने लगीं. इसकी चपेट में खासतौर पर गरीब आए, अमीरों के पास बच निकलने के कई उपाय थे.

इसी थीम पर उनकी कहानी ‘एबॉंडेड चाइल्ड’ है. मो यान की कहानी ‘एबान्डेंड चाइल्ड’ पढ़ते हुए लगता है हम भारतीय समाज का चित्र देख रहे हैं. कथावाचक को सूरजमुखी के खेत में पड़ी हुई एक बच्ची मिलती है. मानवता के नाते वह उसे उठा लेता है लेकिन यहीं से उसकी मुसीबतें प्रारंभ हो जाती हैं क्योंकि यह नवजात एक लड़की है. और दुनिया के अधिकाँश देशों की भाँति चीन में भी सबको बेटा चाहिए और बेटी को जनमते ही मार डालने के हर संभव प्रयास होते हैं. कथावाचक जापान की दो कहानियों का स्मरण करता है जहाँ बेटी को क्रूरतम तरीके से मार डाला जाता है. बेटियों पर कोई खर्च नहीं करना चाहता है. चीन की एक बच्चा नीति का यथार्थ उघाड़ती यह कहानी बहुत-कुछ कहती है.
कथावाचक के इस शिशु को घर लाने से न उसके माता-पिता खुश हैं और न ही उसकी पत्नी. और-तो-और उस पर जुर्माना होता है क्योंकि उसकी पहले से एक बेटी है. वह तमाम नि:संतान, विधवा, विधुर लोगों को यह बच्ची देना चाहता है लेकिन कोई भी लड़की लेने को तैयार नहीं है, सबको बेटा चाहिए. लेकिन एक बच्चा नीति तथा बेटे की चाहत ने समाज का संतुलन बिगाड़ दिया है. पुरुषों को शादी करने के लिए लड़की नहीं मिल रही है. कथावाचक का एक मित्र एक बड़ा अजीव प्रस्ताव देता है वह कहता है कि मुझे यह बच्ची दे दो. मैं इसे पाल-पोस कर बड़ा करूँगा और जब यह 18 साल की हो जाएगी तो इससे शादी कर लूँगा. तब इस आदमी की उम्र होगी पचास साल. कथावाचक इस घृणित प्रस्ताव को बीच में ही रोक देता है. समस्या के हल के लिए वह अपनी एक ऑन्टी के पास जाता है ऑन्टी अस्पताल में नर्स है. मगर वहाँ एक स्त्री अपनी चौथी बेटी को जन्म दे कर भाग गई है अत: ऑन्टी कहती है क्यों नहीं वह इस बच्ची को ले जाए और इसका भी पालन-पोषण करे. कथावाचक अपने समाज के रवैये से बेचैन और परेशान है मगर लाचार है. कहानी बच्ची के अंत को खुला छोड़ती है, कोई हल नहीं सुझाती है. पाठक भी इसे पढ़ कर बेचैन होता है. उनकी यह कहानी ‘शीफ़ू यूशेल डू एनीथिंग फ़ॉर ए लाफ़’ संग्रह में संकलित है.
मो यान का उपन्यास ‘फ़्रॉग’ तथा उनकी कहानी ‘एबॉंडेड चाइल्ड’ चीन की एक बच्चा नीति की विडम्बना को दिखाती है.

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