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जीन डाइच : कल्पनाशील नटखटपने का अंत : अजय बोकिल

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इसी कोरोना काल में ‘टॉम एंड जैरी’ के शिल्पकार जीन डाइच का ९५ वर्ष की अवस्था में १६ अप्रैल को निधन हो गया. टॉम एंड जेरीकी लोकप्रियता अभूतपूर्व थी, है और रहेगी. अपने इन नटखट पात्रों में जीन डाइच भी हमेशा रहेंगे.

अजय बोकिल ने उन्हें याद करते हुए यह टिप्पणी लिखी थी. आभार के साथ प्रस्तुत है.



जीन डाइच : कल्पनाशील नटखटपने का अंत             
अजय बोकिल



ममें से बहुत से लोग लॉक डाउन में मशहूर कार्टून सीरिज ‘टॉम एंड जेरी’ देख कर समय काट रहे होंगे. उनमें से बहुत कम को पता होगा कि चूहे और बिल्ली की नैसर्गिक दुश्मनी को मानवीय संवेदनाओं में लपेट कर अनोखे ढंग से पेश कर हमारा मनोरंजन करने वाले इसके सृजक जीन डाइच ने हाल में अंतिम सांस ली. एनीमेटेड चरित्र ‘टॉम एंड जेरी’ की यह नैसर्गिक दुश्मनी ऐसी दोस्ती में तबदील हो जाती है, जिसका नटखटपन, खुन्नस और दिलकश प्रतिशोध पूरी दुनिया के दिल में बस गया है. शायद ही कोई बच्चा होगा, जिसने ‘टॉम एंड जेरी’ कार्टून फिल्म मंत्रमुग्ध भाव से न देखी हो या न देखता हो. लगता है, यह सिलसिला कभी खत्म ही न हो.

अपनी मशहूर कार्टून सीरिज ‘टॉम एंड जेरी’ के जरिए पूरी दुनिया को अमर दोस्ती और आत्मविश्वास का संदेश देने वाले इस कार्टून सीरिज के निर्देशक जीन डाइच ने जब इस दुनिया से कूच किया तो बहुत से लोगों को पता भी न था कि ‘टॉम एंड जेरी’ जैसे पात्रों का अवतरण उन की अनूठी कल्पनाशीलता की उपज थी, ऐसी उपज जो न सिर्फ बाल मन बल्कि वयस्कों के लिए भी मनोरंजन, हैरानी और अथक जिजीविषा का संदेश देती है. जीन डाइच सुप्रसिद्ध कार्टून कैरेक्टर्स ‘टॉम एंड जैरी’, ‘पोपाय द सेलर मैन’ जैसे शानदार कार्टून फिल्म्स के निर्देशक और निर्माता थे. यकीन करना मुश्किल है कि जिसने विश्व को टॉम और जेरी जैसे अमर चरित्र दिए, वह कभी एक विमान कंपनी का हिस्सा थे. जीन डाइच का असल नाम यूजीन मेरिल डाइच था. वो 1924 में शिकागो में जन्मे थे. ग्रेजुएशन के बाद डाइच नार्थ अमेरिकन एविएशन कंपनी में विमानों की ड्राइंग और ब्लू ‍प्रिंट बनाने का काम करने लगे. बाद में जीन को निमोनिया हो गया और उन्हें रिटायर कर दिया गया. फिर में जीन एनीमेशन फ़िल्में तैयार करने का काम करने लगे. वो तत्कालीन चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग चले गए और आजीवन वहीं रहे.

जीन ने ‘टाम एंड जेरी’ सीरिज की 13 फिल्मे निर्देशित कीं. हालांकि इसकी शुरूआत 1940 में एमजीएम कंपनी ने की थी. एमजीएम कंपनी के बैनर तले निर्माता हन्ना एंड बारबेरा ने 1958 तक ऐसी 114 शार्ट फिल्में बनाईं. इस दौरान उन्हें एनीमेशन शार्ट फिल्में के 7 एकेडमी अवार्ड मिले. जीन डाइच को 1967 में फिल्म ‘मुनरो’ के लिए आस्कर पुरस्कार दिया गया.

‘टॉम एंड जेरी’ एक ऐसा कार्टून चरित्र हैं, जो लगभग सभी उम्र के लोगों को पसंद आता है. इसमें टॉम एक बिल्ला और जेरी एक चूहा है. दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन हैं. इसी के साथ-साथ दोनों एक दूसरे से प्यार भी करते हैं. दोनों एक दूसरे से खुद को बेहतर और स्मार्ट साबित करने की कोशिश करते हैं. वो भी बेहद मनोरंजक शैली में. दोनों के बीच ये होड़ कभी खत्म न होने वाली है. उनकी शैतानियां, तत्कालबुद्धि और कभी हार न मानने की प्रवृत्ति मनुष्यों को भी गहरी सीख देती हैं. यूं आकार प्रकार में टॉम भारी है, लेकिन नन्हा जेरी उसकी चालों के आगे कभी हार नहीं मानता.

दोनों लड़ते रहते हैं, हिंसक भी होते हैं, दोनों एक दूसरे को जान से मारने की भी कोशिश करते हैं. लेकिन दोनों बच निकलते हैं और जरूरत पड़ी तो ममता और करुणा का भी मार्मिक इजहार करते हैं. खास बात यह है कि दोनों पात्र अपवाद स्वरूप ही बोलते हैं, लेकिन उनकी हर एक्शन बोलती है. साथ ही पार्श्व संगीत बहुत कुछ कह देता है.

इन कार्टून चरित्रों की भी दिलचस्प कहानी है. बिल्ले टॉम का नाम शुरू में ‘जेस्पर’ और जेरी का नाम ‘जिंक्स’ था. टॉम का आकार जेरी से कई गुना बड़ा था. लेकिन जेरी हमेशा टॉम के आसपास ही मंडराता रहता है और अपनी हरकतों से टॉम को हैरान करता रहता है. दोनों के बीच ‘शह और मात’ का अनथक खेल चलता रहता है. दोनों एक दूसरे को छेड़ते और फिर बदला लेते रहते हैं. दोनों एक-दूसरे से खुन्नस खाते हैं. कभी कोई जीतता है तो कभी कोई. लेकिन कभी एक दूसरे से ऊबते नहीं हैं. प्राणी होने के बाद भी वो अक्सर मानवता का संदेश देते हैं. कभी-कभी टॉम मरता भी है, लेकिन अगले एपीसोड में जिंदा भी हो जाता है. वैसे ‘टॉम एंड जेरी’ एक मुहावरा भी है, जो 19 सदी में लंदन में युवाओं के बीच प्रचलित था. इसका इस्तेमाल उन लोगों के लिए किया जाता था, जो दंगाई प्रवृत्ति के हुआ करते थे.

1965 में जब ‘टॉम एंड जेरी’ सीरिज का प्रसारण टीवी पर होने लगा तो इसकी लोकप्रियता कई गुना बढ़ गई. अमेरिका के अलावा यह कई देशों में देखा जाने लगा. 2001 में तो ‘टॉम एंड जेरी’ नाम से नया चैनल ही आ गया. आजकल बच्चे कार्टून नेटवर्क पर जो कार्टून्स चाव से देखते हैं, उनमें ‘टॉम एंड जेरी’ लाजवाब है. हालांकि इस सीरिज की आलोचना भी होती रही है. कुछ लोग इसे नस्लवादी मानते हैं.

एक समीक्षक ने दोनों के चरित्रों का आकलन इन सटीक शब्दों में किया है कि वो दोनों जितने ‘उग्र’ है, उससे ज्यादा ‘शांत’ हैं, वो जितने ‘हां’ हैं, उससे ज्यादा ‘ना’ हैं, वो जितने ‘अंदर’ हैं, उससे ज्यादा ‘बाहर’ हैं, वो जितने ‘अप’ हैं, उससे ज्यादा ‘डाउन’ हैं, वो जितने ‘गलत’ हैं, उससे ज्यादा ‘सही’ हैं, वो जितने ‘ब्लैक’ हैं, उससे ज्यादा ‘व्हाइट’ हैं, वो लड़ते हैं, झगड़ते हैं फिर दोस्त बन जाते हैं. यानी टॉम और जेरी की यह दोस्ती दूसरी दोस्तियों से बिल्कुल अलग और खास है. संक्षेप में कहें तो टॉम एक वफादार मूर्ख है तो जेरी एक शरारती और अवसरवादी है.

‘टॉम एंड जेरी’ केवल एनीमेशन पात्र भर नहीं हैं. वो पूरी मानवता को सीख देते हैं. एक रहने की, जीवटता की. मसलन कोई आकार-प्रकार में बड़ा हो तो भी उससे डरने की जरूरत नहीं है. हमें एक टीम की तरह काम करना चाहिए. आपसी साझेदारी ही सच्ची देखभाल है. खिलवाड़ भी करें तो सही तरीके से. नाकामयाबी ही सफलता का आधार है. संकट में भी खुद पर भरोसा रखें. दोस्ती ही सबसे सुंदर तोहफा है तथा आनंद ही सफल जीवन की कुंजी है. बालीवुड एक्टर विकी कौशल ने डाइच को अपनी श्रद्धांजलि में इसलिए धन्यवाद दिया क्योंकि उन्होंने हमारा बचपन बहुत अद्भुत बना दिया.


‘टॉम एंड जेरी’ आज भी करोड़ो बच्चों का बचपन आनंदित कर रहे हैं तो बड़ों को अपना बचपन याद दिला रहे हैं. यह ऐसा सिलसिला है, जो कभी थमना नहीं चाहेगा. क्योंकि ‘टॉम एंड जेरी’ तो हम सबके भीतर हैं. वो प्राणी ही नहीं, मनुष्य की स्थायी प्रवृत्तियां हैं. जिंदगी में यह नटखटपन और राजी-नाराजी खत्म हो जाएगी, परस्पर प्रेम और मानवीयता अगर जानी दुश्मनी में बदल जाएगी तो मनुष्यता कहां बचेगी. आज लॉक डाउन के भयावह अविश्वास के इस दौर में ‘टॉम एंड जेरी’ की नटखट दोस्ती हमे आश्वस्त करती है कि सब कुछ खत्म नहीं हो जाने वाला है. संदेह की गलियां अंतत: विश्वास के राजमार्ग पर ही जाकर मिलेंगी. 

95 वर्ष की उम्र में डाइच ने जब हमेशा के लिए आंखें मूंदीं तो लोगों को लगा कि कहीं वो भी कोरोना का शिकार तो नहीं हो गए, लेकिन वैसा कुछ नहीं था. उन्हें ईश्वर ने अपने पास बुला लिया था, शायद स्वर्ग में ‘टॉम एंड जेरी’ की नई सीरिज रचने.
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लेखक दैनिक सुबह सवेरेके वरिष्ठ संपादक हैं. 
ajaybokil@gmail.com


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