रजनी कोठारी और भारत में राजनीति : प्रांजल सिंह
‘पॉलिटिक्स इन इंडिया’ और समकालीन राजनीतिप्रांजल सिंह यह लेख रजनी कोठारी की कालजयी रचना पॉलिटिक्स इन इंडियाकी गोल्डन जुबली के अवसर पर वर्तमान राजनीति में चल रही नई बेचैनियों को महसूस करते हुए लिखा गया...
View Articleमलिका-ए-ग़ज़ल फ़रीदा खानम : सुमनिका सेठी
'आज जाने की ज़िद न करो यूँ ही पहलू में बैठे रहोहाए मर जाएँगे, हम तो लुट जाएँगे ऐसी बातें किया न करो तुम ही सोचो ज़रा क्यूँ न रोकें तुम्हें जान जाती है जब उठ के जाते हो तुम तुम को अपनी क़सम जान-ए-जाँ...
View Articleसरमद और कृष्ण कल्पित की कविता : शंभु गुप्त
(Sarmad Shahid : painting by Sadequain)‘मंसूर की ख़ता न थी साकी ने सब कियाइतनी कड़ी पिला दी कि दीवाना कर दिया.’ दीवाने चुनौती पेश करते रहते हैं, कभी मंसूर की शक्ल में तो कभी सरमद बन कर. कभी वे ‘अनल-हक़’...
View Articleशमशेर : रचना की संरचना : विनोद तिवारी
पाठकों का कवि होकर ही कोई कवियों का कवि हो सकता है. शमशेर बहादुर सिंह की कविताओं को लेकर इधर उत्साह देखने को मिल रहा है. शमशेर की कविताएँ जिस तरह के सौन्दर्य का सृजन करती हैं उसे खोलने का काम...
View Articleकविता का प्रक्षेत्र : राहुल राजेश
हिंदी कविता का परिसर विस्तृत है. इसमें से प्रभा मुजुमदार, अशोक सिंह और संतोष अलेक्स की कविताओं पर राहुल राजेश का यह आलेख प्रस्तुत है....
View Articleमिलान कुंदेरा : लिफ़्ट लेने का खेल : अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
विश्व के बड़े लेखकों में शामिल मिलान कुंदेरा (Milan Kundera : जन्म- 1 April 1929) की कहानियों का संग्रह Laughable Lovesमूल रूप से १९६९ में चेक भाषा में प्रकाशित हुआ था जिसका अंग्रेजी अनुवाद १९७४ में छप...
View Articleबटरोही : हम तीन थोकदार (पांच)
वरिष्ठ कथाकार बटरोही इधर ‘हम तीन थोकदार’ शीर्षक से अपने समय और इसमें शामिल उस भूत को लिख रहें हैं जिसके बिना किसी का कोई वर्तमान नहीं होता. यह कथा है,आख्यान,इतिहास,पुरातत्व और मिथक भी है. यह अस्मिता की...
View Articleजीन डाइच : कल्पनाशील नटखटपने का अंत : अजय बोकिल
इसी कोरोना काल में ‘टॉम एंड जैरी’ के शिल्पकार जीन डाइच का ९५ वर्ष की अवस्था में १६ अप्रैल को निधन हो गया. ‘टॉम एंड जेरी’की लोकप्रियता अभूतपूर्व थी, है और रहेगी. अपने इन नटखट पात्रों में जीन डाइच भी...
View Articleकथा - गाथा : फॉसिल :नरेश गोस्वामी
(पेंटिंग : MOHAMED AHMED IBRAHIM)नरेश गोस्वामी की कहानियाँ आकार में बड़ी नहीं होती हैं, कथ्य उनका सघन और अक्सर चुभने वाला होता है. कहानियों के उच्च-बौद्धिक पात्र समाज और परिवार में अक्सर अपने आप को...
View Articleलोग रौशनी की तलाश में कविता के पास आते हैं : पंकज चतुर्वेदी
पेंटिंग : Victor Ekpukक्या कवि का व्यक्तित्व और उसकी कविताओं का औदात्त दोनों अलग-अलग हैं ? कवि को महत्व न देते हुए क्या कविता को ही महत्वपूर्ण माना जाए ? कवि-कर्म और लिपिक-कर्म में क्या वस्तुत: कोई...
View Articleकथा - गाथा : नदिया के पार रीमिक्स :आनंद पांडेय
(Courtesy : National Memorial of Peace and Justice in Montgomery)केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ पर आधारित फ़िल्म ‘नदिया के पार’ पूर्वी उत्तर-प्रदेश और भोजपुरी भाषी इलाकों में बहुत लोकप्रिय...
View Articleआत्म संशय का होना किसी लेखक के लिए बुरा नहीं है : मनोहर श्याम जोशी
(अर्पण कुमार और मनोहर श्याम जोशी )यह इंटरव्यू मैंने साकेत, नई दिल्ली स्थित मनोहर श्याम जोशी के घर जाकर लिया था. १९९९ अपनी समाप्ति पर था और उत्तरी दिल्ली से दक्षिणी दिल्ली की लगभग २५ किलोमीटर की दूरी को...
View Articleनरेश सक्सेना से संतोष अर्श की बातचीत (अंतिम क़िस्त)
हिंदी के वरिष्ठ और विशिष्ट कवि नरेश सक्सेना से युवा आलोचक-कवि संतोष अर्श की यह दीर्घ बातचीत अब यहाँ सम्पूर्ण होती है. तीन क़िस्तों में प्रकाशित इस संवाद में संतोष अर्श ने नरेश सक्सेना से उनके कवि-कर्म,...
View Articleकथा - गाथा : भूगोल के दरवाज़े पर : तरुण भटनागर
भारत और चीन के बीच हमेशा तिब्बत रहता है. भले ही उसका ज़िक्र हो न हो. इस समय भी तिब्बत बुदबुदा रहा है, धीरे-धीरे ही सही. प्रसिद्ध कथाकार तरुण भटनागर को जब मैंने तिब्बत पर लिखी उनकी इस कहानी की याद दिलाई...
View Articleकथा- गाथा : प्रश्न : प्रचण्ड प्रवीर
(Philadelphia Museum of Art: Maithuna)प्रचण्ड प्रवीर बीहड़ प्रतिभा के धनी कथाकार हैं. कथा को दर्शन में गूँथ कर दर्शन के समानांतर ‘मर्डर मिस्ट्री’ की कहानी है ‘प्रश्न’. उपनिषदों को आधार बनाकर लिखी जा रही...
View Articleकला की जगहें : सीरज सक्सेना
कलाकार, कवि, गद्यकार सीरज सक्सेना (३० जनवरी १९७४, मध्य-प्रदेश) सिरेमिक, वस्त्र, पेंटिंग, लकड़ी और ग्राफिक कला जैसे विभिन्न माध्यमों में २२ वर्षों से सक्रिय हैं. उन्होंने इंदौर स्कूल ऑफ आर्ट्स से कला की...
View Articleपरख : शकुंतिका (भगवानदास मोरवाल) : कुबेर कुमावत
शकुंतिका : भगवानदास मोरवालपहला संस्करण : २०२०राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.१- बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली- ११०००२मूल्य : पेपरबैक - ६५ हार्ड बैक- २९५ वरिष्ठ कथाकार भगवानदास मोरवाल के राजकमल...
View Articleपरख : तनी हुई रस्सी पर (संजय कुंदन) : शिव दयाल
सभ्यता का स्थिर जल हिलता है शिवदयाल ‘अपनी मर्जी की जगह पर रहनाएक तनी हुई रस्सी पर चलने से कम नहीं है’ किसी व्यक्ति का किसी जगह पर होने का अर्थ यह नहीं कि यह उसके रहने की भी...
View Articleनील कमल की असुख और अन्य कविताएँ
नील कमल अपनी कविताओं को लेकर गम्भीर हैं, अपने कवि को लेकर बे परवाह, यह कवि स्थापित होने की किसी दौड़ में कहीं नज़र नहीं आता. नील की कविताएँ शिल्प में सहजता से ढलती हैं पर कथ्य की तलाश में दूर-दूर तक...
View Articleराजीव कुमार की कविताएँ
( Mohamed Ahmed Ibrahim, Sitting Man)‘कुछ वैसी कविताएं पढूंजिसे लोक का तराशा हुआ कविअपनी किस्सागोई केविघटन काल में लिखता है.’राजीव कुमार का यह काव्य-अंश उनकी मनोभूमि को स्पष्ट कर देता है. उनकी कविताएँ...
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