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पहली चीज : उम्बर्तो एको (अनुवाद - जितेन्द्र भाटिया)




आई.आई.टी से केमिकल इंजीनियरिंग में पीएच.डी जितेन्द्र भाटिया (जन्म : १९४६) के विदेशी भाषाओं के अनुवाद ‘सोचो साथ क्या जाएगा’ स्तम्भ के अंतर्गत बरसों बरस कथादेश में प्रकाशित होकर अपार लोकप्रिय हुए.

विश्व साहित्य के बीसवीं शताब्दी के लेखन से महत्वपूर्ण रचनाओं के चयन, उसके लेखक का महत्व और परिचय, प्रस्तुत रचना की व्याख्या तथा उसका अनुवाद हिंदी के पाठकों के लिए विश्व की ओर खुलती खिड़की की तरह था. कई भारतीय भाषाओं ने इस अनुवाद का अनुवाद अपनी भाषा में  किया.

लातिन और उत्तरी अमेरिका के रचनाकार इसाबेल एलिंदे, जोआओ ग्विमारेज रोसा, जान स्टेनबेक, आइजेक बैशविस सिंगर, बनार्ड मालामुड, जोर्जे लुई बोर्खेज, हावर्ड जिन, जुआन विलोरे, जाय विलियम्स, गैब्रिएल गार्सिया मार्क्वेज से लेकर यूरोप के तादियस बोरोवस्की, ग्रैहेम स्विफ्ट, सिगफ्रीड लेंज, इतालो काल्विनो,कामिलो खोसे सेला, कीथ वाटर हाउस, जोसे सारामागो, सर्गी पेमिस, ओसिप मेंदलश्ताम, उम्बर्तो एको, इवान क्लीमा, रिकार्डो मेनेन्डेज साल्मन, ज़्वी कोलित्ज़ आदि की रचनाओं के अनुवाद हिंदी में उपलब्ध हुए.

संभावना प्रकाशन ने इन्हें अब दो खंडो में सुरुचि के साथ प्रकाशित कर दिया है. ज़ाहिर है इन्हें अब इकट्ठे पढ़ा जा सकता है. इसी संग्रह से इतावली उपन्यासकार उम्बर्तो एको की कहानी- ‘पहली चीज’ और उसपर टिप्पणी प्रस्तुत है.



उम्बर्तो एको
हिंसा की शानदारपरंपरा और लेखक         
जितेन्द्र भाटिया


मैं जिसके हाथ में इक फूल देके आया था    
उसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है

कहा जाता है कि इंसान से बढ़कर स्वार्थी, एहसान-फरामोश और खूंख्वार दरिंदा इस धरती पर नहीं है. अपने छोटे-छोटे तात्कालिक स्वार्थों के लिए इसने हर युग में इस धरती के बाशिंदों पर ही नहीं, स्वयं इस जन्मदायी धरती पर अनकहे अत्याचारों का कहर ढाया है और आदिकाल से लेकर आज तक यह सिलसिला उसी तरह जारी है. इंसान की यह आत्महंता प्रवृत्ति अंततः उसे विनाश की किस कगार से नीचे धकेलेगी, इसकी कल्पना कर सकना बहुत मुश्किल नहीं है क्योंकि बकौल नीरज,       

आग लेकर हाथ में पगले जलाता है किसे
जब न ये बस्ती रहेगी तू कहाँ रह जाएगा

मानव सभ्यता के समूचे इतिहास में, जहाँ नीमपागल शहंशाहों, धर्मांध मठाधीशों, बर्बर लुटेरों, धोखेबाज सौदागरों और आत्ममुग्ध तानाशाहों ने अपने-अपने ढंग से मानव-नियति के रास्ते को मनचाहे ढंग से तोड़ना-मरोड़ना चाहा है, वहीं बुद्धिजीवी, चिंतक और लेखक की अंदरूनी पक्षधरता में कभी कोई फ़र्क नहीं आया है. हर बारिश और हर आग में वह लगातार इस जुनून और उन्माद को एक संगत ज़मीनी आयाम पर लाने की कोशिश करता रहा है और उसका यह धर्म ही इतने युगों से इस दुनिया में उसकी पहचान को कायम रखे हुए है. इस्राइली लेखक एमोस ओजजिसे समय का स्मोक डिटेक्टरया इंसानी कांशेंसका रखवाला मानते हैं, वही बुद्धिजीवी एक तरह से स्वयं अपना भी सबसे बड़ा दुश्मन होता है क्योंकि उसके शब्द उसके जोखिम की गवाही देते हैं, वह उन्हें नकारकर नहीं निकल सकता. हिंसा का एक अंश शायद इस धरती के हर जीव के स्वभाव में शामिल है, लेकिन शायद वह इंसान ही है जो न सिर्फ़ अपनी आधारभूत भौतिक ज़रूरतों के ताकाज़े से आगे भी हत्या और हिंसा पर उतारू होता है, बल्कि समय-समय पर भरपूर दोगलेपन का परिचय देते हुए वह अपने हर विनाशकारी क़दम के लिए कोई न कोई गौरवशाली सफ़ाई भी ढूंढ निकालता है.


हमारी आज की पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक ज़िन्दगी में शारीरिक और मानसिक हिंसा का लगभग हर रूप देखने को मिल जाएगा. हमने इस हिंसा को आत्मसात् कर इसे स्वीकृति देने का दस्तूर भी बना लिया है और कुछ हद तक हम इसके प्रति निस्संग और ठंडे भी होते जा रहे हैं. इस क्रम की कहानी हिंसा के इसी  ख़ौफ़नाक ग्लोरिफिकेशनया वैध करार दिए जाने के सवालों को छूती प्रागैतिहासिक काल की एक अद्भुत व्यंग्य कथा है.  

उम्बर्तो एको आधुनिक इतालवी साहित्य के दिग्गज लेखक हैं और उनकी कृतियाँ ए रोज़ बाई ऐनी अदर नेमऔर दि आइलैंड ऑफ़ दि डे बिफोरउनकी अत्यधिक प्रशंसित और चर्चित रचनाएँ हैं. वे अलग-अलग विषयों पर पत्रिकाओं के लिए भी लिखते रहे हैं और इटली के अलावा उन्हें फ्रांस, ग्रीस और अन्य देशों में भी विभिन्न साहित्यिक पुरस्कार मिल चुके हैं. एको का व्यंग्य उनकी एक ख़ास पहचान बन चुका है. इस कड़ी की कहानी वह चीजएक इतालवी पत्रिका के लिए लिखी गयी उनकी व्यंग्य लेखमाला का हिस्सा है, जो बाद में  पुस्तक रूप में  मिसरीडिंग्सनाम से प्रकाशित हुई. दुनिया में हिंसा की व्युत्पत्ति की एक ख़ौफ़नाक पैरोडी प्रस्तुत करने के साथ-साथ एको इस कहानी में अपनी विलक्षण व्यंग्य शैली का भी परिचय देते है, जिसके चलते यह रचना पाषाण युग से लेकर परमाणु शक्ति परीक्षण तक का लंबा फासला कुछ ही शब्दों के सहारे सफलता से तय कर लेती है. यहाँ भी एको लेखक की पक्षधरता को रेखांकित करने और व्यवस्थाधर्मी लेखकीय चाटुकारिता पर तीखा प्रहार करने से नहीं चूकते.


शायद आने वाले वर्षों में हम इन संवेदनाओं को पकड़ पाने की काबिलियत भी खो बैठेंगे और हमें यह अहसास भी नहीं रहेगा कि विश्व में न्यूक्लीयर डिटेरेंटखड़े करने के बहाने हमने अपनी संस्कृति और आदमीयत का कितना बड़ा हिस्सा खो दिया है. एको की कहानी शायद भविष्य में आने वाले इसी नए पाषाण युगको समर्पित भी है.




कहानी
पहली चीज
उम्बर्तो एको

           
“हाँ तो प्रोफेसर?’’ जनरल ने कुछ बेसब्री के साथ पूछा.
‘‘हाँ तो क्या?’’ प्रोफेसर काह ने उल्टा सवाल किया. ज़ाहिर था कि वह थोड़ी-सी मोहलत और चाहता था.


‘‘तुम्हें यहाँ काम करते हुए पांच साल होने को आए. इन पांच सालों में किसी ने तुमसे कोई सवाल नहीं किया है. हमने तुमपर पूरा विश्वास दिखाया है. लेकिन अब हम तुम्हारी बात के भरोसे बैठे नहीं रह सकते. अब हमें ख़ुद अपनी आँखों से देखना होगा कि क्या हो रहा है.’’
जनरल की गंभीर आवाज़ में एक गहरी चेतावनी थी.
कुछ थकान भरे लहजे में काह मुसकराया. फिर उसने कहा,

‘‘आपने बड़े नाजुक मौके पर मुझे घेर लिया, जनरल! मेरा इरादा अभी कुछ और रुकने का था, लेकिन अब मैं अजीब दुविधा में हूँ. दरअसल, मैंने एक चीज़ बनायी है...’’ काह की आवाज़ एक मानीखेज फुसफुसाहट में बदल गयी, ‘‘एक बहुत बड़ी चीज! और सूरज भगवान की कसम, लोगों को इसके बारे में बताना ज़रूरी है...’’  

हाथ के इशारे से उसने जनरल को गुफ़ा के अंदरूनी हिस्से में आने को कहा, जहाँ दीवार की एक फांक के भीतर से बाहर की रोशनी का एक सरिया नीचे चट्टान पर गिर रहा था. और तब काह ने उसे वह चीज दिखाई.

वह बादाम की शक्ल की एक चपटी चीज थी, जिसकी सतह पर किसी बड़े से हीरे की तरह कई कोने बने हुए थे. लेकिन लगभग धातु की तरह चमकने वाली वह चीज़ पारदर्शी नहीं थी.

“अच्छा!’’ जनरल ने कुछ चकराकर कहा, ‘‘यह तो पत्थर लगता है!’’

प्रोफेसर की घनी भौंहों से ढंकी नीली आँखों में एक चालाकी भरी चमक उभर आयी. ‘‘हाँ, यह पत्थर ही है!’’ उसने कहा, ‘‘लेकिन दूसरे पत्थरों की तरह यह पत्थर ज़मीन पर ढेर में पड़े रहने के लिए नहीं है. यह पत्थर मुट्ठी में भींचे जाने के लिए है!’’

‘‘मुट्ठी में?’’

‘‘भींचे जाने के लिए, जनरल! इस पत्थर में वह सारी शक्ति है, जिसका इंसान ने अब तक सिर्फ़ सपना ही देखा है! इसमें हज़ारों आदमियों के बराबर ताकत है. देखिए...’’

अपनी हाथ की उंगलियों को मोड़कर उसने उस पत्थर के चारों ओर इस तरह कसा कि वह उसके हाथ की गिरफ्त में आ गया. अब उसका भोंथरा हिस्सा उसकी हथेली में क़ैद था और नुकीला भाग उसके हाथ के घूमने के साथ नीचे या ऊपर या जनरल की दिशा में घूम सकता था. प्रोफेसर ने अपनी बाँह को तेज़ी से घुमाया तो पत्थर हवा में एक वक्र रेखा बनाकर रह गया. प्रोफेसर ने अपनी बाँह को ऊपर-नीचे किया तो पत्थर की नोक चट्टान की सतह से जा टकरायी. और तब एक चमत्कार हुआ. उस नोक ने चट्टान को बेधा, उसमें खरोंच बनायी और उसमें से कुछ बारीक कण छील निकाले. प्रोफेसर के बार-बार इस प्रक्रिया को दुहराने के साथ वह नोक चट्टान को तोड़कर उसमें छेद बनाती चली गयी और आख़िरकार उसका एक टुकड़ा टूटकर अलग हो गया.

अपनी सांस रोके खड़ा जनरल आँखें फाड़कर देखता जा रहा था. ‘‘कमाल है!’’ उसने थूक निगलते हुए बुदबुदाहट भरे स्वर में कहा.

‘‘यह तो कुछ भी नहीं है जनरल!’’ प्रोफेसर ने विजय भाव से छाती फुलाई. ‘‘बेशक अपने ख़ाली हाथों से इस चट्टान पर चोट कर आप इसपर खरोंच तक नहीं ला सकते थे. लेकिन अब आगे देखिए!’’ एक कोने से उसने एक बड़ा-सा, सख़्त और अभेद्य नारियल उठाकर जनरल के हाथों में दे दिया.

‘‘चलिए!’’ उसने चुनौती भरे स्वर में कहा, ‘‘आप दोनों हाथों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसे तोड़कर दिखाइए!’’

‘‘मज़ाक मत करो, काह!’’ जनरल घबरा गया, ‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो कि यह नामुमकिन है. हममें से कोई ऐसा नहीं कर सकता! सिर्फ़ कोई डायनोसॉर ही इसे अपने पैर तले कुचलकर तोड़ सकता है. सिर्फ़ डायनोसॉर ही इसका गूदा खा सकते हैं, इसका पानी पी सकते हैं...’’

‘‘हाँ, लेकिन अब हम भी ऐसा कर सकते हैं!’’ प्रोफेसर ने उत्तेजना भरी ख़ुशी में कहा, ‘‘देखिए!’’

उसने नारियल को चट्टान में बने छेद के भीतर टिका दिया. फिर उसने उसी पत्थर को उल्टी तरफ़ से हाथ में इस तरह थामा कि नोक वाला सिरा इस बार उसकी हथेली में था. उसका हाथ एक बार फिर तेज़ी के साथ घूमता हुआ बिना किसी ख़ास ताकत के, पत्थर के भोथरे हिस्से समेत नारियल पर जा गिरा. वार के पड़ते ही नारियल फटकर टुकड़े-टुकड़े हो गया. उसका पानी चट्टान पर बह निकला और छेद में फैले छोटे-छोटे टुकड़ों के भीतर से झांकता झक्क सफ़ेद, ठंडा गूदा सामने आ गया. जनरल ने ललचाए हाथों से एक टुकड़े को झपटकर अपने मुंह में डाल लिया. फिर वह स्तब्ध भाव से कभी उस चट्टान, कभी काह और कभी साबुत नारियल के उन असंभाव्य अवशेषों की ओर देखता रह गया.
‘‘सूरज देव की कसम, काह! यह तो कमाल की चीज है. इस चीज़ से इंसान की ताकत कई सौ गुना बढ़ जाएगी. अब वह डाइनोसॉरों के साथ बराबरी का मुक़ाबला कर सकेगा. अब वह इन चट्टानों और दरख़्तों का शहंशाह बन सकता है. अब उसके पास एक नहीं, एक क्यों, सौ-सौ हाथ और हो गए हैं. लेकिन यह कमाल की चीज़ तुम्हें मिली कहाँ से?’’
काह आश्वस्त भाव से मुसकराया. ‘‘यह मुझे मिली नहीं, जनरल. इसे मैंने ख़ुद बनाया है.’’

‘‘बनाया है? मतलब?’’
‘‘मतलब यह चीज़ पहले नहीं थी!’’

‘‘तुम्हारा दिमाग़ ठिकाने पर नहीं है!’’ जनरल ने कांपते हुए कहा, ‘‘ज़रूर यह आसमान से नीचे गिरी होगी. सूरज भगवान का कोई दूत या हवाओं का कोई प्रेत इसे यहाँ लाया होगा, जो चीज पहले नहीं थी, उसे कोई इंसान कैसे बना सकता है?’’

‘‘बना सकता है, जनरल!’’ काह ने अविचलित भाव से कहा, ‘‘एक पत्थर को लेकर उसपर दूसरे पत्थर से चोट की जाए तो आख़िरकार उस पत्थर को मनचाही शक्ल दी जा सकती है. उसे इस तरह तराशा जा सकता है कि वह हाथों में आसानी से पकड़ा जा सके. और इस तरह के पत्थर को हाथ में लेकर उससे आप इससे भी बड़े और नुकीले दूसरे पत्थर बना सकते हैं. मैं यह करके देख चुका हूँ...’’
जनरल के पसीने छूटने लगे थे.


‘‘हमें सभी को इसके बारे में बताना होगा, काह! सारे कबीले को इसकी ख़बर होनी चाहिए. हम अब बहुत ताकतवर हो जाएंगे. तुम्हारी समझ में कुछ आया? अब हम भालू का मुक़ाबला कर सकेंगे. भालू के पास पंजे और नाख़ून हैं तो हमारे पास यह चीज़ है. इससे पहले कि वह हमपर झपटे, हम उसके टुकड़े-टुकड़े कर उसका खात्मा कर सकते हैं. इससे हम सांप को मार सकते हैं, कछुए की पीठ तोड़ सकते हैं... और, और... अरे, ...इससे तो हम... हम दूसरे इंसान को भी ख़त्म कर सकते हैं!’’

अपने विचार की अनगिनत संभावनाओं से जनरल चित्रावत-सा खड़ा रह गया था. फिर कुछ देर बाद जब उसने दुबारा बोलना शुरू किया तो उसकी आंखां में एक कुटिल चमक उभर आयी थी.

‘‘इसके बूते पर हम कोआम कबीले पर हमला बोलेंगे. वे हमसे ज़्यादा और अधिक ताकतवर हैं. लेकिन अब हम उन्हें अपने कब्जे में कर लेंगे. हम उनके कबीले के आख़िरी इंसान तक को मौत के घाट उतार देंगे. तुम समझ रहे हो, काह?’’

जनरल ने काह को कंधों से झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘अब हमारी विजय को कोई नहीं रोक सकता!’’

लेकिन काह किसी बहुत गहरी चिंता में डूब गया लगता था. काफ़ी देर बाद उसने दबे स्वर में कुछ हिचकिचाहट के साथ बोलना शुरू किया,


‘‘मुझे इसी का डर था जनरल! इसीलिए मैं यह चीज आपको दिखाना नहीं चाहता था. मुझे पता है कि मेरा यह आविष्कार कितना भयानक है. मैं जानता हूँ कि इससे सारी दुनिया बदल जाएगी. शक्ति का इतना ख़ौफ़नाक स्रोत इससे पहले इस धरती पर नहीं देखा गया है. इसीलिए मैं इसके बारे में बताने से डर रहा था. ऐसे हथियार को साथ लेकर युद्ध करने का मतलब ही होगा आत्महत्या! कोआम कबीला भी बहुत जल्दी इसे बनाने का तरीका सीख जाएगा और तब अगली लड़ाई में हम और कोआम, दोनों मारे जाएँगे, कोई भी विजेता नहीं होगा. मैंने सोचा था कि इस चीज से अमन और तरक्की फैलेगी. लेकिन अब मैं जान रहा हूँ कि यह कितनी ख़तरनाक है. इसलिए मैं इसे नष्ट कर देना चाहता हूँ!’’

काह की बात सुनकर जनरल आपे से बाहर हो गया. ‘‘तुम्हारा दिमाग़ खराब हो गया है! ...तुम्हें ऐसा करने का कोई अधिकार नहीं है. तुम वैज्ञानिक लोग भी अजब खब्ती होते हो. पांच सालों तक तुम यहाँ बंद पड़े रहे हो. तुम्हें क्या पता कि बाहर दुनिया में क्या हो रहा है. तुम्हें ज़रा भी अंदाज़ नहीं है कि बाहर सभ्यता एक नए मोड़ पर आ चुकी है. अगर कोआम कबीला जीत गया तो पूरी मानव जाति की शांति, स्वतंत्रता और ख़ुशी हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी. अब हमारी पवित्र ज़िम्मेदारी है कि यह चीज हमारे पास हो. हम इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे. काह, लेकिन सबको पता होगा कि हमारे पास यह है. हम सिर्फ़ अपने दुश्मनों के सामने इसका प्रदर्शन भर करेंगे. ...और फिर इसका प्रयोग नियंत्रित कर दिया जाएगा. तब कोई हमपर हमला करने की हिम्मत नहीं कर पाएगा. और इस बीच हम इससे कब्रें खोदेंगे, नई गुफ़ाएँ बनाएँगे, फल तोड़ेंगे, ज़मीन को समतल करेंगे. लेकिन हथियार के रूप में हम इसे सिर्फ़ अपने पास रखेंगे, इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे. यह चीज सिर्फ़ एक चेतावनी का काम करेगी. इससे उन कोआमी वहशियों को हमेशा के लिए हमसे दूर रहने का सबक मिलेगा.’’

‘‘नहीं, नहीं!’’ काह ने कहा, ‘‘इसे नष्ट करना ही ठीक होगा!’’

‘‘तुम एक बुज़दिल उदारवादी ही नहीं, परले सिरे के गधे भी हो.’’ जनरल गुस्से से लाल-पीला होता चला गया. ‘‘मुझे तो लगता है कि तुम उनके हाथों के पिट्ठू बनते जा रहे हो. मानव एकता का पाठ पढ़ाने वाले उस बेवक़ूफ़ बुड्ढे और बाकी दूसरे बुद्धिजीवियों की तरह तुम भी कोआमी समर्थक ही निकले. तुम्हारी तो सूरज भगवान में आस्था ही नहीं है!’’

काह के ज़िस्म में एक सिहरन सी दौड़ गयी. फिर अपनी घनी भौंहों तले उदास हो आयी आँखों को चुराते हुए उसने गर्दन झुका ली. ‘‘मुझे पता था कि आख़िरकार यही होकर रहेगा. आप जानते हैं कि मैं कोआमी समर्थक नहीं हूँ. सूरज भगवान के पांचवें नियम का पालन करते हुए मैं आपके आरोप को अस्वीकार करता हूँ, फिर चाहे इसके बदले मुझे सारी प्रेतात्माओं का कोप ही क्यों न झेलना पड़े. आपके जो जी में आए कीजिए, जनरल, लेकिन यह चीज़ गुफ़ा से बाहर नहीं जाएगी!’’

‘‘जाएगी और अभी जाएगी!’’ जनरल जुनून में चिल्लाया, ‘‘हमारे कबीले के सम्मान के लिए, इस सभ्यता की रक्षा की ख़ातिर और शांति तथा समृद्धि की बहाली के लिए इसे जाना ही होगा...’’ और उसने अपने अपने दाहिने हाथ में उस चीज़ को उसी तरह पकड़ लिया जैसा उसने कुछ समय पहले काह को करते देखा था. और फिर पूरी ताकत, गुस्से और घृणा के साथ उसने उसे उसी तरह प्रोफेसर की खोपड़ी पर दे मारा.

आघात से काह की खोपड़ी फट गयी और उसके मुँह से ख़ून का एक सैलाब बह निकला. निःशब्द वह ज़मीन पर ढलक गया और उसके चारों ओर की चट्टान लाल रंग में नहा गयी.

जनरल ने चमत्कृत भाव से अपने हाथों में थमी उस चीज की ओर देखा और फिर उसके चेहरे पर विजय की जो मुसकराहट उभरी, उसमें निर्ममता, हैवानियत और घृणा के अलावा कुछ नहीं था. ’’और कोई है?’’ उसने गरज कर कहा, ‘‘जिसकी मौत उसे बुला रही हो?’’
           
पेड़ के चारों ओर चुपचाप दुबके इंसानों का घेरा ख़ामोश होकर सोचने लगा.
कहानी सुनाने के श्रम में अपने नंगे ज़िस्म पर उभर आए पसीने को पोंछते हुए सयाना बा उस पेड़ की ओर मुड़ा जिसके नीचे मुखिया इतमीनान से बैठा किसी मोटे कंद-मूल को चबा रहा था.
‘‘ओ महान स्दा!’’ उसने आदर भाव से पूछा, ‘‘मुझे आशा है कि मेरी कहानी आपको पसंद आयी होगी.’’
स्दा ने एक ऊब भरी जम्हाई भरते हुए कहा, ‘‘तुम नौजवानों को समझना बड़ा मुश्किल काम है. या पता नहीं, मैं ही शायद बूढ़ा हो चला हूँ. तुम्हारी कल्पनाशक्ति लाजवाब है बा, इसमें दो राय नहीं हो सकती. लेकिन मुझे विज्ञान कथाओं के मुक़ाबले ऐतिहासिक उपन्यास ज़्यादा पसंद हैं.’’ और फिर उसने पपड़ियों जैसी चमड़ी वाले एक बूढ़े को इशारे से पास बुलाया, ‘‘यहाँ आओ ग्रू!’’ मुखिया ने कहा, ‘‘तुम चाहे नव गीत के उस्ताद न हुए हो, लेकिन तुम्हें अब भी जायकेदार कहानियाँ सुनाने का हुनर आता है! ...चालू हो जाओ, अब तुम्हारी बारी है!’’

‘‘जो आज्ञा महान स्दा!’’ ग्रू ने कहा, ‘‘मैं अब आपको प्रेम, उत्तेजना और मौत की एक ऐसी कहानी सुनाऊँगा जो पिछली सदी की है और जिसका शीर्षक है... वानर कुल का भेद उर्फ विलुप्त कड़ी का रहस्य...’’


(रचनाकाल: 1961)

इतालवी भाषा से लेखक द्वारा किए गए अँग्रेज़ी अनुवाद पर आधारित
____________

सोचो साथ क्या जाएगा

जितेन्द्र भाटिया 
विश्व साहित्य संकलन (पहला और दूसरा खंड)

प्रकाशक : संभावना प्रकाशन 
रेवती कुञ्ज, हापुड़ - 245101
मोब.-7017437410 

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