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'क्या हुआ जो' : राहुल राजेश

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राहुल राजेश का दूसरा कविता संग्रह 'क्या हुआ जो'इस वर्ष  ज्योतिपर्व प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशितहुआ है. इसी संग्रह से कुछ कविताएँ.

राहुल राजेश कविता लिखते हुए अपने श्रोताओं को विस्मृत नहीं करते. उनकी कविता में  संवाद की सहजता और संप्रेषणीयता है.




राहुल राजेश की कविताएँ                          



समय के साथ

समय के साथ भर जाते हैं घाव
समय के साथ मंद पड़ती हैं स्मृतियाँ
समय के साथ पकता है प्यार
समय के साथ कुंद पड़ती है धार.




पाठ

बूँद समंदर से ज्यादा चमकीली होती है
पत्ती पेड़ से ज्यादा पनीली होती है
फूल पत्ती से ज्यादा सुंदर होता है
घास जंगल से ज्यादा हरी होती है
मुस्कान हँसी से ज्यादा मोहक होती है
छुअन आलिंगन से ज्यादा मादक होती है

बूँद समंदर से पहले सूखती है
पत्ती पेड़ से पहले गिरती है
फूल पत्ती से पहले झरता है
घास जंगल से पहले कटती है
मुस्कान हँसी से पहले मिटती है
छुअन आलिंगन से पहले सिमटती है

प्यास में समंदर नहीं, बूँद ही टिकती है
पाँव में जंगल नहीं, घास ही लिपटती है
आँखों में पेड़ नहीं, फूल-पत्ती ही हँसती है
दिल में हँसी नहीं, मुस्कान ही उतरती है
देह में आलिंगन नहीं, छुअन ही ठहरती है !



आत्माकीकमीज

मेरीआत्माकीकमीज
वहींछूटगईहै
गाँवकीखूँटीपर

मैंनंगेबदन
चलाआयाहूँ
इसशहरमें

नौकरीकीपतलूनतो
हैपासमेरे
जिसेपहनकर
ढँकलेताहूँ
अपनीटाँगें

औरतसल्लीकरलेताहूँ
किअपनेपैरोंपर
खड़ाहूँ

परमेरीआत्माकीकमीज
वहींछूटगईहै

गाँवकीखूँटीपर !



हँसी

बना बैठा था मैं
हिमशैल रूठकर

छिड़ा हुआ था
एक अनकहा महासमर

पसरा हुआ था
मौन का महासागर
हम दोनों के बीच...

जब नहीं रहा गया तनकर
वह आई
आँखों में अनुनय भरकर

और
छुआ मुझे

मुझसे भी
बना रहा गया नहीं पत्थर
मैं भी ढहा भरभराकर

पहले वह
फिर मैं

फिर हम दोनों
हँसे खिलखिलाकर !






चिट्ठियाँ

बचपनमेंचिट्ठीकामतलब
स्कूलमेंहिंदीकीपरीक्षामें
पितायामित्रकोपत्रलिखनाभरथा
चंदअंकोंकाहरबारपूछाजानेवालासवाल
आदरणीयपिताजीसेशुरूहोकरअंतमें
सादरचरण-स्पर्शपरसमाप्तहोजाताहमाराउत्तर
कागजकीदाहिनीतरफदिनांकऔरस्थानलिखकर
मुफ्तमेंदोअंकझटकलेनेकाअभ्यासमात्र

गर्मीकीछुट्टियोंमेंहॉस्टलसेघरआतेवक्त
हमेंचिट्ठियोंसेबतियानेकीसूझीएकबारगी
सुंदरलिखावटोंमेंपहली-पहलीबारहमनेसंजोएपते
फोन-नंबरकौनकहे, पिनकोडयादरखनाभीतबमुश्किल
न्यूईयरकेग्रीटिंगकार्डोंसेबढ़तेहुए
पोस्टकार्डों, लिफाफों, अंतरदेशियोंका
शुरूहुआजोसिलसिला
चढ़ापरवानहमारेपहले-पहलेप्यारकाहरकाराबन

मां-बाबूजीयादोस्तोंकेख़तोंके
इंतजारसेज्यादागाढ़ाहोतागयाप्रेम-पत्रोंकाइंतजार
यहइंतजारइतनामादककि
हमरोजबाटजोहतेडाकिएकी
दुनियामेंप्रेमिकाकेबादवहीलगतासबसेप्यारा

मैंठीकहूँसेशुरूहोकर
आशाहैआपसबसकुशलहोंगेपर
खत्महोजातीचिट्ठियोंसेशुरूहोकर
बीस-बीसपन्नोंतकमेंसमानेवालेप्रेम-पत्रोंतक
चिट्ठियोंनेबनालीहमारेजीवनमें
सबसेअहम, सबसेआत्मीयजगह
जितनीबेसब्रीसेइंतजाररहताचिट्ठियोंकेआनेका
उससेकहींअधिकजतनऔरप्यारसेसंजोकर
हमरखतेचिट्ठियाँ,
अपनेघर, अपनेकमरेमेंसबसेसुरक्षित,
सबसेगोपनीयजगहउनकेलिएढूँढ़निकालते
बाकीख़तोंकोबार-बारपढ़ेंपढ़ें
प्रेम-पत्रोंकोछिप-छिपकरबार-बार, कई-कईबारपढ़ते

हमारेजवांहोतेप्यारकीगवाहबनतीयेचिट्ठियाँ
पहुँचीवहाँ-वहाँ, जहाँ-जहाँहमपहुँचेभविष्यकीतलाशमें
नगर-नगर, डगर-डगरभटकेहम
औरनगर-नगर, डगर-डगरहमेंढूँढ़तीआईंचिट्ठियाँ
बदलतेपतोंकेसंग-संगदर्जहोतीगईंउनमें
दरकतेघरकीदरारें, बहनोंकेब्याहकीचिंताएँ
औरअभी-अभीबियायीगायकीखुशखबरीभी
संघर्षकीतपिशमेंकुम्हलातेसपनीलेहर्फ़
जिंदगीकाककहराकहनेलगे
सिर्फहिम्मतहारनेकीदुहाईनहीं,
विद्रोहकाबिगुलभीबनींचिट्ठियाँ

इंदिरा-नेहरूकेपत्रहीऐतिहासिकनहींकेवल
हमबाप-बेटेकेसंवादभीनायाबइनचिट्ठियोंमें
जिसमेंबीसबरसकेबेटेनेलिखापचासपारकेपिताको-
आपतनिकभीबूढ़ेनहींहुएहैं
अस्सीपारकाआदमीभीशून्यसेउठकर
चूमसकताहैऊँचाइयाँ

आजजबबरसोंबादउलट-पुलटरहाहूँइनचिट्ठियोंको
मानो, छूरहाहूँजादूकीपोटलीकोई
गुजरावक्तलौटआयाहै
खर्चहोगईजिंदगीलौटआईहै
भूले-बिसरेचेहरेलौटआएहैं
बाहेंबरबसफैलगईहैं
गलाभरआयाहै
ऐसालगरहा, येपोटलीहीमेरेजीवनकीअसलीकमाई
इसेसंभालनामुझेआखिरीदमतक
इनमेंबंदमेरेजीवनकेक्षणजितनेदुर्लभ
दुर्लभउतनीहीइनहर्फ़ोंकीखुशबू

जैसेदादीकीसंदूकमेंअबभीसुरक्षितदादाकीचिट्ठियाँ
मैंभीबचाऊंगाइनचिट्ठियोंकोवक्तकीमारसे
एसएमएस-ईमेल, फेसबुक-ट्वीटर-वाट्सऐपकेइसमायावीदौरमें
सबएक-दूसरेकेटचमें, परइनचिट्ठियोंकेस्पर्शसे
महसूसहोरहाकुछअलगहीरोमांच, अलगहीअपनापा

की-बोर्डपरनाचनेकीआदीहोगईऊंगलियोंकीहीनहीं,
टूटरहीयांत्रिकजड़ताजीवनकीभी.



शायद

नहीं बचे बिना ग्रेजुएट वाले गाँव
नहीं बचे बिना शॉपिंग मॉल वाले शहर
नहीं बचे साझा आँगन वाले घर
नहीं बचे साझा चूल्हे वाले परिवार
नहीं बचे सच बोलते बाज़ार
नहीं बची सच सुनती सरकार...



सरोगेसी

कहीं नेमत
कहीं सुविधा
कहीं संजोग है

कहीं विज्ञान
कहीं निदान
कहीं प्रयोग है

कहीं मजबूरी
कहीं धंधा
कहीं उद्योग है

यह किराए की कोख है !



मैंनेकबकहा

मैंनेकबकहा
मेरेकवितालिखनेसे
कहींकुछबदलजाएगा !

कहींकुछनहींबदलरहा
तोक्याइसलिए
कवितालिखनाछोड़दूँ ?

तोक्याइसलिए
अपनेआपसेमुँहमोड़लूँ ?

तोक्याइसलिए
आपसबसे
जगसे
जीवनसे


नातातोड़लूँ ?
____________________
हिंदी के युवा कवि और अंग्रेजी-हिंदी के परस्पर अनुवादक. नौ दिसंबर, 1976को दुमका, झारखंड के एक छोटे-से गाँव अगोइयाबाँध में जन्म. पटना विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर. कविता के साथ-साथ यात्रा-वृतांत, संस्मरण, कथा-रिपोतार्ज, समीक्षा एवं आलोचनात्मक निबंध लेखन. इसके अलावा, सामाजिक सरोकारों और शिक्षा संबंधी विषयों से भी सक्रिय जुड़ाव. देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रमुखता से प्रकाशित. कुछ रचनाएँ अंग्रेजी, उर्दू, मराठी आदि भाषाओं में अनूदित. भाषा एवं संस्कृति विभाग, हिमाचल प्रदेश की द्विमासिक पत्रिका विपाशा द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता प्रतियोगिता-2009 में द्वितीय पुरस्कार. पहला कविता-संग्रह 'सिर्फ़ घास नहीं'जनवरी, 2013 में साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से प्रकाशित. पहला गद्य-संग्रह 'गाँधी, चरखा और चित्तोभूषण दासगुप्त' (यात्रा-वृत्तान्त, अनुभव-वृत्त और डायरी-अंश) फरवरी, 2015 में ज्योतिपर्व प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित. दूसरा कविता-संग्रह 'क्या हुआ जो'जनवरी, 2016 में ज्योतिपर्व प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित. कन्नड़ और अंग्रेजी के युवा कवि अंकुर बेटगेरि की अंग्रेजी कविताओं का हिंदी अनुवाद 'बसंत बदल देता है मुहावरे'अगस्त, 2011 में यश पब्लिकेशंस, दिल्ली से प्रकाशित. राधाकृष्ण प्रकाशन, नई दिल्ली से वर्ष 1996 में प्रकाशित जवाहर नवोदय विद्यालयों के बच्चों की कविताओं के संग्रह 'बोलने दो'में कुछ कविताएँ संकलित.

संप्रति भारतीय रिज़र्व बैंक में सहायक प्रबंधक (राजभाषा). इससे पहले भारतीय संसद के राज्यसभा सचिवालय और कोयला खान भविष्य निधि संगठन (कोयला मंत्रालय, भारत सरकार)में भी अनुवादक के पद पर कार्यरत रहे.

संपर्क:  राहुल राजेश, फ्लैट नंबर– बी-37,आरबीआई स्टाफ क्वार्टर्स, 16/5,डोवर लेन,गड़ियाहट,कलकत्ता-700029 (प.बं.)

मो.: 09429608159   ई-मेल:  rahulrajesh2006@gmail.com

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