Quantcast
Channel: समालोचन
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1573

सहजि सहजि गुन रमैं : रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति

$
0
0














सर्दियों के लिए स्वेटर और जैकेट में कोई फर्क नहीं है पर कविता में वे प्रतीक हैं और उनके अर्थ बदल जाते हैं. ‘तोड़ के मर्म पते की बातें जग में कर दे हिल्ला’ कहने के लिए कविता अपना रूप बदलती है.जरा सा खाना बहुत सा बनाना’ क्यों यह भी पूछा जाना चाहिए. जीवन कान्ट्रेक्ट पर है और पृथ्वी एक विशाल सीडी में बदल जायेगी जिसके प्राकृतिक दृश्यों को कविता में रचने के लिए किसी कम्पनी को पैसे चुकाने होंगे. और युद्ध क्या वही है जिसमें सेनाएं आमने सामने होती हैं? क्या युद्ध आज  उद्योग नहीं है जो दिन रात बढ़ता ही जाता है. यह है जाने – पहचाने कवि रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति का काव्य संसार.


______________

किसी ने कहा सर्दियां आ गईं हैं
  
सर्दियां पुराना शॉल छोड़ कर जा रही थीं
चाची ने कहा था सब संभाल कर रख दो
सर्दियां जा रही थीं मेरा पुराना स्वेटर छोड़ गईं
छोड़ गईं कुछ घास और कुछ लकडिय़ां 

गांव में बाकी बची धूप भी छोड़ गईं 
जब वे लौटेंगी तो ओड़ लेंगी वहीं बची धूप

सर्दियां आ गईं चाची ने शॉल निकाल लिया
खुद भी ओड़ लिया सर्दियों को भी ओड़ा लिया
सर्दियों ने थोड़ी सी धूप चाची को दी 
चाची ने सर्दियों को आंगन में दुलार दिया 

जब सर्दियां लौटीं- मैं तालाब के किनारे पर खड़ा था 
वे सबसे पहले तालाब पर आईं
मैं किनारे पर वही पुराना स्वेटर पहन कर गया 

सर्दियां शहर में आ चुकी हैं मैंने नया स्वेटर नहीं खरीदा
सर्दियां घर में आ गईं और मैंने वही स्वेटर पहन लिया

मैं खुश हूं और सर्दियां नाराज हैं
पूछती हैं तुम नया स्वेटर कब लोगे
तुम कह रहे थे लैदर का जैकेट इस बार पहनोगे?
सर्दियां पूछ रही हैं पुराना स्वेटर क्यों पहने हो?

मैंने चाची की तरफ देखा...चाची मेरी स्वेटर देख रही थीं
सर्दियां यहीं आसपास हैं 




रंग बिरंगा 

इस दुनिया में कौन है रंगा कौन है बिल्ला
नरियल खाले फेंक दे नट्टी खुल्ला

तोड़ के मर्म पते की बातें जग में कर दे हिल्ला
इस दुनिया में कौन है रंगा कौन है बिल्ला

पता नहीं किसने क्या कहा था किसके बारे में
जब नहीं था उसके पास जीवन का हिल्ला

तब वह था इस दुनिया का रंगा बिल्ला
लेकर चला गया चुप चुप अपने कर्मों का हिल्ला

लौट के आया ठहरा देखा कुरते में कुछ ऐसा
मारी चोट चौराहे पर भाग कोई कुत्ता सा चिल्ला

तोड़ तोड़ कर कर दी उसने दुनिया की पसली
जीवन का गणित नहीं समझा था बिल्ला

असुरक्षित था सब कुछ यहां वहां तक 
केवल नेता करता रहा सुरक्षित अपना किल्ला 

इतने दिन तक देख देख कर सोच रहा था 
ये दुनिया को कौन चलाता है कौन बड़ा है बिल्ला

ये नहीं रुकेगा ये कबीर का चरखा है 
कातेगा जब सूत निकलेगा दुनिया का पिल्ला

यहां वहां सब जगह हैं रंगा बिल्ला चारों ओर
ओढ़ के आते एक कहानी फिर करते हैं चिल्ला




धूप में इतना सा दिन

सूरज की धूप में इतना सा दिन
कैसी है दुनिया कैसा है मन

इतना सा रंग इतना है रंज
कैसी है दुनिया कैसा है मन

इतनी बड़ी नदिया इतना सा पानी
कैसी है दुनिया कैसा है मन

कितना बड़ा राजा कितनी सी थाली
कैसी है दुनिया कैसा है मन

छोटी सी चाबी में बहुत सा धन
कैसी है दुनिया कैसा है मन

इतना सा प्यार इतना है इजहार
कैसी है दुनिया कैसा है मन

जरा सा खाना बहुत सा बनाना
कैसी है दुनिया कैसा है मन 

जरा से घर में लंबा चौड़ा तन
कैसी है दुनिया कैसा है मन 

इतने बड़े तन में छोटा सा मन
कैसी है दुनिया कैसा है मन




कांट्रेक्ट पेपर

कोई कैसे चला जाता है कांट्रेक्ट पर
मैं खुद ही कैसे कब चला गया 
मैंने कांट्रेक्ट पर घर बनवाया
मैंने कांट्रेक्ट पर जिया और जीना सीखा
जैसे दुनिया कांट्रेक्ट पर चल चुकी है

कांट्रेक्ट का सिलसिला चला और पता नहीं चला
एक खत्म होने के बाद दूसरा लिखवा लिया गया

आश्चर्य नहीं- कांट्रेक्ट पर किसी का जाना
एक भाषा है जो मेरे कारण इजाद हुई
या मैं इसके कारण दुनिया के सामने आया 

मैं कितने लोगों को कांट्रेक्ट पर सम्हाले हूं
सबने एक दूसरे से कांट्रक्ट किया है




पृथ्वी पोस्टर

पृथ्वी घूमता हुआ पोस्टर है
जिंदगी रोड पर चलती मशीन की तरह हो चुकी है 

पृथ्वी की सतह पर चिपका है मेरा शहर
जिसे मैंने बनाकर लगाया था- बचपन में

हर शहर एक चमकता हुआ वाक्य है
पृथ्वी के पोस्टर पर लिखा 
उसके बेचने और बिकने का सवाल 
पृथ्वी को खरीदेगी कोई कंपनी?
हवाएं उसका हिस्सा होंगी- उसकी संपत्ति
धूप की अग्रिम बुकिंग हो चुकी होगी  
मैं कविता लिखने के लिए खरीदूंगा एक टुकड़ा

नहीं बचा प्रोडक्ट होने से कोई पेड़
मुझे चुकाना होंगे प्राकृतिक दृश्यों के पैसे
मैं पहले से ही चुका रहा हूं कुछ न कुछ 
विशाल सीडी में मेरे दिमाग के ऊपर घूम रही है



 https://ssl.gstatic.com/ui/v1/icons/mail/images/cleardot.gif 

तो फिर युद्ध कौन करता है

युद्ध नहीं करते
सिर्फ हथियार बनाते हैं लेकिन युद्ध नहीं करते 
कभी भी हथियार बनाना युद्ध करना नहीं होता?
वे मुनाफा कमा रहे हैं दुनिया भर से 
और मुनाफा कमाना युद्ध करना नहीं हो सकता
मैं देखता हूं और मुझे ऐसा कहना पड़ता है

वे आक्रामक विज्ञापन और तूफानी माहौल बनाते हैं
लॉबिंग करते हैं ब्रांड, बाजार और हथियारों की 
मैं फिर कहता हूं विज्ञापन करना युद्ध करना नहीं है

वे रिसर्च करते हैं धरती आसमान और आंतरिक्ष में
वे परमाणु से बिजली बनाते हैं और उससे कुछ बल्ब जलते हैं
वे बांध बनाने के बाद उनके  सूखने के बारे में सोचते हैं

बिजली से बल्ब जलाना और नदियों के बारे में सोचना 
युद्ध नहीं हो सकता -मेरा ऐसा कहना जरूरी है
और भी चीजें हैं- वे शांति की बातें करते हैं
हम सभी जानते हैं शांति की बातें युद्ध नहीं हो सकतीं?

वे संसाधनों को अपने हक में लिखते हैं 
कहीं कब्जा करते हैं कहीं व्यापार का समझौता 
कभी धरती से खूब सारा तेल निकाल लेते हैं 
धरती से तेल निकालना युद्ध करना हो सकता है?

परंपराएं, शहर, गांव और जंगल उनके लिए
बाजारों से खाली जगहों हैं
राजधानियों में इन सब चीजों पर सरकारें संधियां करती हैं
वे उनके और हमारे देश को परस्पर नापते-तौलते हैं-
अपने साथ कभी वे कोई फौजी नहीं लाते
व्यापारियों के अलावा उनके हवाई जहाज में कुछ नहीं होता
व्यापारियों को साथ लाना युद्ध है? इसे कौन युद्ध कहेगा?

मेरे देश परंपराओं को नष्ट करना वहां अपनी चीजें रखना
युद्ध कैसे हो सकता है- युद्ध तो हथियारों से लड़ा जाता है?
इसीलिए मुझे कहना पड़ रहा है कि वे युद्ध नहीं करते

वे शांति के प्र्रस्ताव लाते हैं और शांति से आते हैं
उन्हें पता है अशांति से बाजार डरता है

इसलिए शांति की बात को युद्ध नहीं कहा जा सकता 

दुनिया में और भी कई चीजें हैं जो युद्ध नहीं हो सकतीं
जैसे कि फसलों के बीजों को बदल देना 
खेती की तकनीक के बारे में और बातें करना 
सरकारों को अपने प्रस्तावों के लिए राजी करना
यह सब करना युद्ध कैसे हो सकता है

विज्ञापन देखकर और अखबारों को पढ़ कर 
कभी नहीं समझा जा सकता कोई भी युद्ध 
हमारी जगह उनका होना 
या हमारे कुछ व्यापारियों का उनकी तरह हो जाना
इस अदल बदल को युद्ध नहीं कहा जा सकता
सवाल है कि युद्ध किस चीज को कहा जा सकता है?

कोई जानता हैं कि युद्ध क्या है?  

ताकि युद्ध के बारे में कुछ सही सही लिखा जा सके!
____________

रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
१५ जून १९७०
कोलाज कला २००६, अफेयर  २००७ प्रकाशित, कहानी संग्रह 'मन का टैक्टर’शीघ्र प्रकाश्य
एवं कविता संग्रह मार्क्स हमारे बाबाप्रकाशनाधीन 
उर्मिल शुक्ल प्रसाद सम्मान, विनय दुबे कविता पुरस्कार तथा तथा २००८ के रजा पुरस्कार से सम्मानित
संपादन
कोलाज कला मासिक पत्रिका भोपाल से संपादन 
सम्पर्क : टॉप-12, हाई लाइफ कॉम्पलेक्स, चर्चरोड, जिंसी जहांगीराबाद,
भोपाल पिन 462002/ फोन ०७५५ ४०५७८५२/०९८२६७८२६६० 

Viewing all articles
Browse latest Browse all 1573

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>