अंकिता आनंद की सक्रियता का दायरा विस्तृत है. नाटकों ने उनके अंदर के कवि को समुचित किया है. उनकी कविताओं में पाठ का सुख है, शब्दों के महत्व को समझती हैं, उन्हें व्यर्थ नहीं खर्च करतीं.
कविताओ में भी सचेत स्त्री की अनके भंगिमाएं हैं. यहाँ चलन से अलग कुछ भी करने से बद- चलन का ज़ोखिम बना रहता है. एक कविता में वह कहती हैं कि प्रतिउत्तर में वह पति का दांत इसलिए नहीं तोड़ती कि
“फिर वो कैसे खाया करेगा, चबाया करेगा,
खाने में मिली हुई पिसी काँच?"
यह पीसी हुई काँच क्या है ? यह वही बराबरी और खुदमुख्तारी है जिसे कभी कानों में पिघलाकर डाल दिया जाता था.
अंकिता की आठ नई कविताएँ आपके लिए.
अंकिता आनंद की कविताएँ
आगे रास्ता बंद है
चढ़ाई आने पर
रिक्शेवाला पेडल मारना छोड़
अपनी सीट से नीचे उतर आता है.
दोनों हाथों से हमारा वज़न खींच
हमें ले जाता है
जहाँ हम पहुँचना चाहते हैं.
रिक्शेवाला पेडल मारना छोड़
अपनी सीट से नीचे उतर आता है.
दोनों हाथों से हमारा वज़न खींच
हमें ले जाता है
जहाँ हम पहुँचना चाहते हैं.
एक दिन
सड़क के उस मोड़ पर
सीट से उतर कर
शायद वो अकेला चलता चले
हमें पीछे छोड़,
सड़क के उस मोड़ पर
सीट से उतर कर
शायद वो अकेला चलता चले
हमें पीछे छोड़,
गुस्से, नफ़रत या प्रतिशोध की भावना से नहीं
पर क्योंकि
उस पल में
हम उसके लिए अदृश्य हो चुके होंगे,
जैसे वो हो गया था
हमारे लिए
सदियों पहले.
पर क्योंकि
उस पल में
हम उसके लिए अदृश्य हो चुके होंगे,
जैसे वो हो गया था
हमारे लिए
सदियों पहले.
उस पल में
उसने फ़ैसला कर लिया होगा
उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
उसने फ़ैसला कर लिया होगा
उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
आवरण
मैं ठीक नहीं समझती
तुम्हें ज़्यादा कुछ मालूम पड़े
इस बारे में कि तुमसे मुझे कहाँ, कैसे और कितनी
चोट लग सकती है.
बस डबडबाई आँखों से तुम्हें देखूँगी
जब मेरे होठ जल जाएँ,
तुमसे खिन्न सवाल करूँगी,
"क्यों इतना गर्म प्याला मुझे थमा दिया,
जब तुम्हें पता है मैं चाय ठंडी पीती हूँ?"
दीर्घविराम
राजकुमार थक गया है
(उसका घोड़ा भी)
एक के बाद एक
लम्बे सफर पर जा कर,
जिनके खत्म होने तक
वो राजकुमारियाँ बचा चुकी होती हैं
अपने-आप को,
जिन्होंने उसे बुलाया भी नहीं था.
(उसका घोड़ा भी)
एक के बाद एक
लम्बे सफर पर जा कर,
जिनके खत्म होने तक
वो राजकुमारियाँ बचा चुकी होती हैं
अपने-आप को,
जिन्होंने उसे बुलाया भी नहीं था.
एक मौका दो उसे
खुद को बचाने का,
एक लम्बी, गहरी, शांत नींद में
आराम करने दो उसे.
खुद को बचाने का,
एक लम्बी, गहरी, शांत नींद में
आराम करने दो उसे.
जागने पर शायद कोई राजकुमारी
उसे प्यार से चूम लेगी,
अगर दोनों को ठीक लगे तो.
उसे प्यार से चूम लेगी,
अगर दोनों को ठीक लगे तो.
नेपथ्य
गाँव में होता है नाटक
फिर चर्चा, सवाल-जवाब.
लोग कहते सुनाई देते हैं,
"नाटक अच्छा था,
जानकारी भी मिली.
कोई नाच-गाना भी दिखला दो."
हमारी सकुचाई टोली कहती है,
"वो तो नहीं है हमारे पास."
फिर आवाज़ आती है,
"यहाँ पानी की बहुत दिक्कत है."
वो जानते हैं हम सरकार-संस्था नहीं,
लेकिन जैसे हम जाते हैं गाँव
ये सोचकर कि शायद वहाँ रह जाए
हमारी कोई बात,
वो हमें विदा करते हैं
आशा करते हुए
कि शायद पहुँच जाए शहर तक
उनकी कोई बात.
धोखा
शुरूआतसेही. . . आजतकभी
मैंकृपया पीलीलाईन केपीछेऔर
लालरेखा केभीतररहनेवालीरहीहूँ.
ईस्टमैनकलरवालेझिलमिलघेरेमुझेअंदरबुलाएँ
ऐसीबुरीलड़की नहींबनसकी.
पीलीलाईनऔरलालरेखाकेअंदररहतेहुए
मैंरंगोलियाँबनानेसेमनाकर
कमरपरहाथडाले, पाँवफैलाए, ठुड्डीनिकाले
खड़ीरहतीहूँ
इसलिएअच्छीलड़की नहींमानी जासकती.
आहतआवाज़ोंकोकईबारमुझेधोखाबुलातेसुनाहै.
जीव शरद: शतम्
सपाट चेहरा लिए बैठी रही वो
उसकी सहेली बेतहाशा बोलती रही
उसके टूटे दाँत के बारे में,
जैसे महज़ एक दाँत के खत्म होने से
रिश्ता भी खत्म हो जाता हो.
उसकी सहेली बेतहाशा बोलती रही
उसके टूटे दाँत के बारे में,
जैसे महज़ एक दाँत के खत्म होने से
रिश्ता भी खत्म हो जाता हो.
हो जाती है कभी दो बात, दो लोगों के बीच,
पर आप शादी को खेल नहीं बना देते
मतभेद होते हैं,
और सुलझ भी जाते हैं.
पर आप शादी को खेल नहीं बना देते
मतभेद होते हैं,
और सुलझ भी जाते हैं.
सहेली दिल की अच्छी सही, पूरी पागल थी,
गुस्सा इतना तेज़, कहती जवाब में उसे भी
पति का दाँत तोड़ डालना चाहिए था.
ये भी कोई बात हुई? उसने सुना नहीं क्या,
आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना डालेगी?
गुस्सा इतना तेज़, कहती जवाब में उसे भी
पति का दाँत तोड़ डालना चाहिए था.
ये भी कोई बात हुई? उसने सुना नहीं क्या,
आँख के बदले आँख पूरी दुनिया को अंधा बना डालेगी?
अपने पति के साथ वो ऐसा क्यों करना चाहेगी
अपनी मुश्किलें और क्यों बढ़ाना चाहेगी?
फिर वो कैसे खाया करेगा, चबाया करेगा,
खाने में मिली हुई पिसी काँच?
अपनी मुश्किलें और क्यों बढ़ाना चाहेगी?
फिर वो कैसे खाया करेगा, चबाया करेगा,
खाने में मिली हुई पिसी काँच?
विमार्ग
तुम्हारा नाम दिल में आते ही
दिल बैठने लग जाता है
हर एक उस हर्फ के वज़न से
जो तुम्हें बनाते हैं.
मैं जल्दी से उन्हें उतार नीचे रख देती हूँ,
दिल बैठने लग जाता है
हर एक उस हर्फ के वज़न से
जो तुम्हें बनाते हैं.
मैं जल्दी से उन्हें उतार नीचे रख देती हूँ,
और तरीके ढूँढ़ती हूँ
बिना तुमसे नज़रें मिलाए
तुम्हें पुकारने के,
पन्नों, स्क्रीन और ट्रैफिक के बीच
नाहक कुछ ढूँढ़ते हुए.
बिना तुमसे नज़रें मिलाए
तुम्हें पुकारने के,
पन्नों, स्क्रीन और ट्रैफिक के बीच
नाहक कुछ ढूँढ़ते हुए.
क्योंकि इरादा कर लिया है
कि तुम मुझे न देख पाओ
तुम्हें देखने की मशक्कत करते हुए.
कि तुम मुझे न देख पाओ
तुम्हें देखने की मशक्कत करते हुए.
पेचीदा मसला है ये, तुम्हारा नाम लेना.
इसमें खतरा है, कहीं पूरी तरह पलट कर
तुम रूबरू न आ जाओ,
इसमें खतरा है, कहीं पूरी तरह पलट कर
तुम रूबरू न आ जाओ,
तुम्हें जगह और वक्त न मिल जाए
मेरी हड़बड़ाई आँखों में देख
उन सब ख्वाहिशों से वाकिफ होने का
जिन्हें मैंने आवाज़ दी थी
जब तुम्हें अपने पास बुलाया था.
मेरी हड़बड़ाई आँखों में देख
उन सब ख्वाहिशों से वाकिफ होने का
जिन्हें मैंने आवाज़ दी थी
जब तुम्हें अपने पास बुलाया था.
अंधकक्ष
डिजिटलदुनियामेंसुशोभितहैंअनेकों
कर्मठसमाजसेवी, संवेदनशीलकलाकार, निडरलेखक, भावुकशिक्षक,
ज्ञानसेलैस, प्रेरणादेते, इंसानियतपरभरोसाकायमरखते,
सबएकसेएकअनूठे.
कर्मठसमाजसेवी, संवेदनशीलकलाकार, निडरलेखक, भावुकशिक्षक,
ज्ञानसेलैस, प्रेरणादेते, इंसानियतपरभरोसाकायमरखते,
सबएकसेएकअनूठे.
फिरइनमेंसेकुछपधारतेहैंइनबौक्समें,
दिखनेलगतीहैंधीरे-धीरेसमानताएँइनकी
एकबक्समें
बंदएकसेचूहेनज़रआतेहैंये,
जिसगुलडब्बेमेंबनेछोटेछेदोंसे
रोशनीपहुँचतीहैउनतक
उजागरकरतीहैउनकीसोच
उसछेदकेमापकी.
दिखनेलगतीहैंधीरे-धीरेसमानताएँइनकी
एकबक्समें
बंदएकसेचूहेनज़रआतेहैंये,
जिसगुलडब्बेमेंबनेछोटेछेदोंसे
रोशनीपहुँचतीहैउनतक
उजागरकरतीहैउनकीसोच
उसछेदकेमापकी.
कुछअँधेरेकमरे
नेगेटिवकोउभारनहींपाते
पौज़िटिवमें,
परदिखलादेतेहैं
उनकीएकसाफ़झलक.
नेगेटिवकोउभारनहींपाते
पौज़िटिवमें,
परदिखलादेतेहैं
उनकीएकसाफ़झलक.
अंकिता आनंद ‘आतिश’नाट्य समिति और ‘पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’की सदस्य हैं. इससे पहले उनका जुड़ाव सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान, पेंगुइन बुक्स और ‘समन्वय: भारतीय भाषा महोत्सव’से था. यत्र –तत्र कविताएँ प्रकाशित हैं.
anandankita2@gmail.com