शिव किशोर तिवारी (१६ अप्रैल १९४७) का कविता की दुनिया में आगमन किसी घटना की तरह अचानक से हुआ है.इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में एम. ए. करने के बाद साहित्य से उनका लगाव सामने नहीं आया था. अब जब वह सामने है तो लगता है कि इन बीच के वर्षों में वह हिंदी, असमिया, बंगला, संस्कृत, अंग्रेजी, सिलहटी और भोजपुरी की कविताओं की दुनिया में भूमिगत होकर रमें हुए थे.
कविताओं का अनुवाद, उनकी व्याखाएं और आलोचना के उनके उद्यम ने उन्हें आज आवश्यक बना दिया है. समालोचन पर ही आपने बंगला, असमिया आदि भाषाओं से हिन्दी में उनके महत्वपूर्ण अनुवाद पढ़े हैं. निराला की कविता पर उनकी व्याख्या पढ़ी है. आज मुक्तिबोध की कविता ‘अन्तःकरण का आयतन’ पर उनका यह आलेख आपके लिए प्रस्तुत है.
आज शिव किशोर तिवारी का जन्म दिन है. अब वह ७१ साल के हो गए हैं.
समालोचन के पाठकों की तरफ से जन्म दिन की बहुत- बहुत बधाई.
लेख पर आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा है.
कविता से होकर : अन्तःकरण का आयतन
शिव किशोर तिवारी