Quantcast
Channel: समालोचन
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1573

भारत भूषण सम्मान और अदनान कफ़ील दरवेश की कविता 'क़िबला'

$
0
0




























हिंदी साहित्य के लिए पुरस्कार तो बहुत हैं पर भारत भूषण अग्रवाल सम्मान अपनी तरह से अकेला ही है. हर वर्ष किसी युवा कवि की एक कविता पर दिया जाने वाला यह सम्मान (राशि ५००० हजार रूपये.) अपनी स्थापना से ही (१९८०) से चर्चित, प्रशंसित और निन्दित रहा है. खुद चयन में शामिल कुछ लेखकों ने इस पर गम्भीर सवाल उठायें हैं.

३५ वर्ष से कम आयु के कवि की कविता के चयन में – नेमिचन्द्र जैन, नामवर सिंह, अशोक वाजपेयी, केदारनाथ सिंह, विष्णु खरेप्रारम्भ में शामिल थे. प्रत्येक वर्ष क्रम से यह एकल चयन की प्रक्रिया संचालित होती थी. बाद में चयन कर्ताओं में नये लेखकों को जोड़ा गया अब अशोक वाजपेयी, अरुण कमल, उदय प्रकाश, अनामिका और पुरुषोत्तम अग्रवालप्रत्येक वर्ष श्रेष्ठ युवा कविता का चयन करते हैं.

इस वर्ष का भारत भूषण अग्रवाल सम्मान युवा कवि अदनान कफील दरवेश की कविता क़िबला को देने की घोषणा आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल द्वारा की गयी है. कविता और चयन वक्तव्य आपके लिए.











क़िबला
अदनानकफ़ीलदरवेश 



माँकभीमस्जिदनहींगई 
कमसेकमजबसेमैंजानताहूँमाँको 
हालाँकिनमाज़पढ़नेऔरतेंमस्जिदेंनहींजायाकरतींहमारेयहाँ 
क्यूंकिमस्जिदख़ुदाकाघरहैऔरसिर्फ़मर्दोंकीइबादतगाह  
लेकिनऔरतेंमिन्नतें-मुरादेंमांगनेऔरताखाभरनेमस्जिदेंजासकतीथीं 
लेकिनमाँकभीनहींगई 
शायदउसकेपासमन्नतमाँगनेकेलिएभीसमयरहाहो 
याउसकीकोईमन्नतरहीहीनहींकभी 
येकहपानामेरेलिएबड़ामुश्किलहै 
यूँतोमाँनइहरभीकमहीजापाती 
लेकिनरोज़देखाहैमैंनेमाँको 
पौफटनेकेबादसेही देरराततक 
उसअँधेरे-करियायेरसोईघरमेंकामकरतेहुए 
सबकुछकरीनेसेसईंतते-सम्हारते-लीपते-बुहारतेहुए 
जहाँउजालाभीजानेसेख़ासाकतराताथा 
माँकारोज़रसोईघरमेंकामकरना 
ठीकवैसाहीथाजैसेसूरजकारोज़निकलना 
शायदकिसीदिनथका-माँदासूरजभीनिकलता 
फिरभीमाँरसोईघरमेंसुबह-सुबहहीहाज़िरीलगाती.

रोज़धुएँकेबीचअँगीठी-सीदिन-रातजलतीथीमाँ 
जिसपरपकतीथींगरमरोटियाँऔरहमेंनिवालानसीबहोता
माँकीदुनियामेंचिड़ियाँ, पहाड़, नदियाँ 
अख़बारऔरछुट्टियाँबिलकुलनहींथे 
उसकीदुनियामेंचौका-बेलन, सूप, खरल, ओखरीऔरजाँताथे 
जूठनसेबजबजातीबाल्टीथी 
जलीउँगलियाँथीं,फटीबिवाईथी 
उसकीदुनियामेंफूलऔरइत्रकीख़ुश्बूलगभगनदारदथे 
बल्किउसकेपासकभीसूखनेवालाटप्-टप्चूतापसीनाथा
उसकीतेज़गंधथी 
जिससेमैंमाँकोअक्सरपहचानता.
ख़ालीवक़्तोंमेंमाँचावलबीनती 
औरगीतगुनगुनाती
"..लेलेअईहSबालमबजरियासेचुनरी
औरहम, "कुच्छुचाहीं,कुच्छुचाहीं…"रटतेरहते 
औरमाँडिब्बेटटोलती 
कभीखोवा, कभीगुड़, कभीमलीदा
कभीमेथऊरा, कभीतिलवाऔरकभीजनेरेकीदरीलाकरदेती.

एकदिनचावलबीनते-बीनतेमाँकीआँखेंपथरागयीं 
ज़मीनपरदेरतककामकरते-करतेउसकेपाँवमेंगठियाहोगया  
माँफिरभीएकटाँगपरखटतीरही
बहनोंकीरोज़बढ़तीउम्रसेहलकान 
दिनमेंपाँचबारसिरपटकती ख़ुदाकेसामने.

माँकेलिएदुनियामेंक्योंनहींलिखागयाअबतककोईमर्सिया,कोईनौहा
मेरीमाँकाख़ुदाइतनानिर्दयीक्यूँहै
माँकेश्रमकीक़ीमतकबमिलेगीआख़िरइसदुनियामें
मेरीमाँकीउम्रक्याकोईसरकार, किसीमुल्ककाआईनवापिसकरसकताहै
मेरीमाँकेखोयेस्वप्नक्याकोईउसकीआँखमें
ठीकउसीजगहफिररखसकताहैजहाँवेथे

माँयूँतोकभीमक्कानहींगई 
वोजानाचाहतीथीभीयानहीं 
येकभीमैंपूछनहींसका 
लेकिनमैंइतनाभरोसेकेसाथकहसकताहूँकि 
माँऔरउसकेजैसीतमामऔरतोंकाक़िबलामक्केमेंनहीं 
रसोईघरमेंथा... 
[वागर्थ, मासिकपत्रिका, अंक 266, सितंबर 2017]







अदनान की यह कविता माँ की दिनचर्या के आत्मीय, सहज चित्र के जरिेएमाँ और उसके जैसी तमाम औरतोंके जीवन-वास्तव को रेखांकित करती है. अपने रोजमर्रा के वास्तविक जीवन अनुभव के आधार पर गढ़े गये इस शब्द-चित्र में अदनान आस्था और उसके तंत्र यानि संगठित धर्म के बीच के संबंध की विडंबना को रेखांकित करते हैं.
क़िबलाइसलामी आस्था में प्रार्थना की दिशा का संकेतक होता है. लेकिन आस्था के तंत्र में ख़ुदा का घर सिर्फ मर्दों की इबादतगाह में बदल जाता है, माँ और उसके जैसी तमाम औरतों का क़िबला मक्के में नहीं रसोईघर में सीमित हो कर रह जाता है. स्त्री-सशक्तिकरण की वास्तविकता को नकारे बिना, सच यही है कि स्त्री के श्रम और सभ्यता-निर्माण में उसके योगदान की पूरी पहचान होने की मंजिल अभी बहुत बहुत दूर हैआस्थातंत्र के साथ ही सामाजिक संरचना की इस समस्या पर भी कविता की निगाह बनी हुई है.
अदनान की यह कविता सभ्यता, संस्कृति और धर्म में स्त्री के योगदान को, इसकी उपेक्षा को पुरजोर ढंग से रेखांकित करती है. उनकी अन्य कविताओं में भी आस-पास के जीवन, रोजमर्रा के अनुभवों को प्रभावी शब्द-संयोजन में ढालने की सामर्थ्य दिखती है.
मैंक़िबलाकविता"के लिए अदनान क़फ़ील दरवेश को भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार देने की संस्तुति करता हूँ.
पुरुषोत्तम अग्रवाल.
________________________

अदनानकफ़ीलदरवेश
30 जुलाई1994
(जन्मस्थान: ग्राम-गड़वार, ज़िला-बलिया, उत्तरप्रदेश)

कुछ कविताएँ पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित’
मो. 9990225150


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1573

Trending Articles



<script src="https://jsc.adskeeper.com/r/s/rssing.com.1596347.js" async> </script>