गौतम राजऋषि के कहानी संग्रह 'हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज'की समीक्षा मीना बुद्धिराजा द्वारा.
सरहद पर शहीद ,शहादत और इश्क
मीना बुद्धिराजाकहानी सच, संवेदना और यथार्थ का जीवंत दस्तावेज होती है. इस दृष्टि से समकालीन कथा परिदृश्य में इस वर्ष प्रसिद्ध युवा लेखक गौतम राजऋषि का नया कहानी-संग्रह उल्लेखनीय कहा जा सकता है जो ‘हरी मुस्कराहटों वाला कोलाज’शीर्षक से अभी हाल में ‘राजपाल एंड संज़ प्रकाशन’से प्रकाशित हुआ है. गौतम जी एक रचनाकार होने के साथ ही भारतीय सेना में कर्नल हैं और देश की सीमा पर तैनात रहते हुए चुनौतीपूर्ण फौजी जीवन को उन्होनें करीब से जिया और देखा भी है. इस बीच बहुत सी ऐसी घटनाएँ हुईं और ऐसे अनोखे चरित्र मिलते रहे जो यादगार बन गए. उनकी अधिकांश पोस्टिगं कश्मीर के आतंकवाद ग्रस्त इलाकों और बर्फीली चोटियों पर लाइन ऑफ कंट्रोल यानि बॉर्डर पर हुई है. सेना में रहते हुए उन्होने दुश्मनों के साथ कई मुठभेड़ों का डटकर सामना किया. ‘पराक्रम पदक’और ‘सेना मैडल’से सम्मानित कर्नल गौतम राजऋषि की राइफल के अचूक निशाने की तरह उनकी कलम भी अपना गहरा प्रभाव पाठकों पर छोड़्ती है. इन्हीं बहुमूल्य अनुभवों और स्मृतियों को लेकर उन्होनें कुछ बेह्तरीन और रोचक कहानियाँ लिखीं जो इस पुस्तक में सम्मिलित हैं और हिंदी की प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं.
इन कहानियों में फौजी जीवन के अनेक आयामों की वो झलक मिलती है जो आम नागरिक की दुनिया से बहुत अलग है. लेकिन इन कहानियों में इतनी सजीवता और जीवतंता है कि पाठक भी उसी सैनिक और फौजी माहौल में पहुंच जाता है और उसकी पूर्वनिर्मित सोच बिलकुल बदल जाती है. यह कहानी- संग्रह गौतम जी की दूसरी महत्वपूर्ण पुस्तक है. एक कवि और शायर के रूप में पहली पुस्तक जीवन के अनेक पहलुओं से जुड़ी गज़लों का संकलन ‘पाल ले इक रोग नादान’शीर्षक से प्रकाशित हो चुकी है जो उनकी बहुत लोकप्रिय और चर्चित किताब रही है.
एक फौजी और कर्नल के रूप में हरी वर्दी वाले सैनिकों की ये कहानियाँ सीमा पर उनके अद्भुत पराक्रम और साहस के साथ मानवीय प्रेम की कोमल संवेदनाओं की यादगार कहानियाँ हैं जो पाठक की मन:स्थिति को निश्चित रूप से दूर तक प्रभावित करती हैं. सत्य और यथार्थ घटनाओं के साथ लेखक की स्मृतियाँ, अनुभूति की आत्मीयता और मौलिक व ताज़गी से भरी अभिव्यक्ति पाठक के दिलो-दिमाग में बहुत समय तक ठहर जाने की ताकत रखती हैं जो सीमा पर तैनात फौजी जीवन की कठोर और क्रूर छवि के प्रति पाठक के दृष्टिकोण को भी बदल देती हैं और यह इन कहानियों की विशेष उपलब्धि है. मन की गहराईयों से जुड़ी इन कहानियों में सरहद पर शौर्य,पराक्रम,संघर्ष और शहादत के बेमिसाल अनुभव और किस्से अंकित हैं तो दूसरी तरफ खुशी, दर्द, गम, ज़ख्म , विषाद और प्रेम का मर्मस्पर्शी सच भी उतनी ही शिद्दत से बयान हुआ है.
भारतीय फौज के जीवन के बहुत से आयामों और दिलचस्प विविध और जीवंत किरदारों से गहराई सेरुबरु कराती ये कहानियाँ वास्तव में एक फिल्म के अलग अलग दृश्यों और रंगों का मानों खूबसूरत कोलाज बनाती हैं जो तमाम जोखिमों के बीच भी मुस्कराहटों को बचाये रखते हैं और पाठक भी उन चरित्रों,फौजी माहौल के उन्हीं दृश्यों और अनुभवों में डूबने- उतरने लगता है.जिस हरी वर्दी पर सरहद पर देश की सुरक्षा का दायित्व तथा कठिन जिम्मेदारी है. अपने कर्तव्य के साथ ही उनके ह्र्दय में भी कोमल भावनाएं, प्रेम, संवेदनाएं और भावुकता के साथ सभी जज़्बातों की पराकाष्ठा इन कहानियों में बहुत शिद्दत से उभर कर आयी है जो अधिक मानवीय धरातल पर विश्वसनीय और स्वाभाविक होकर पाठकों से अपना रिश्ता कायम कर लेती हैं. कथ्य और भाषा - शिल्प के एक नये तथा समकालीन चुस्त कलेवर में ये कहानियाँ पाठकों को भी जीने का तरीका और ज़िंदादिली का अंदाज़ सिखाती हैं और उनसे आत्मीय संवाद स्थापित करती है. अपने सम्मोहन में बांधकर बहुत देर तक पाठक को प्रभावित करने की क्षमता इन कहानियों की विशेष उपलब्धि है.
पहली कहानी ‘हीरो’सेना के मेज़र जवान के अद्भुत साहस और जोखिम के बीच उसके नि:स्वार्थ मानवीय प्रेम की दिलचस्प दास्तान है जो एक पूरी रात भयानक गहरी खाई में लटकी केबल कार में फंसे दो परिवारों के साथ रात गुजारता है और सांत्वना देकर सुबह उनको सुरक्षित पहुंचाता है. नई पीढी से संबध बनाते हुए स्टारडम,जेन एक्स,हार्ट-थ्रोब,डेयर डेविल जैसे शब्दों और बीच-बीच मे संवादो में अंग्रेजी के हल्के- फुल्के प्रचलित वाक्यों का प्रयोग और अनोखी रवानगी से भरी भाषा कहानी को संप्रेषण शैली का नया मुहावरा देती है.
‘दूसरी शहादत’एक मार्मिक और गंभीर कहानी है जिसमें एनीकी मूक पीड़ा और व्यथा का सजीव चित्रण है जिसका प्रेमी और भावी पति डेविड कारगिल की लड़ाई में सीमा पर शहीद हो चुका है और समाज के डर से उसके अजन्मे बच्चे की भी जैसे शहादत हो जाती है जो आजीवन जख्म बनकर उसे दर्द देता रहेगा. सभी कहानियाँ जिंदगी के अलग-अलग शेड्स और रूप-रंग से जुड़ी हैं जिन्हे बहुत खूबसूरती से हर फ्रेम में गौतम राजऋषि जी ने कुशलता लेकिन सहजता से चित्राकिंत किया है. ‘इक रास्ता है ज़िंदगी’सेना के कर्नल की ज़िंदादिली और कारगिल युद्ध के अनुभवों की बेह्तरीन चुहल भरी कहानी है जो किसी फिल्म के गतिमान दृश्यों की तरह पाठक की आँखो के सामने कौंध जाती है. इसी तरह ‘सैलाब’कहानी मिलिट्री हॉस्पीटल के आईसीयू में कोमा में बेहोश और घायल पड़े सैनिक गुरनाम सिंह के द्वारा किसी दुखद अंत तक नहीं बल्कि अप्रत्याशित रूप से एक सुखद और खुशनुमा अंत तक ले आती है और पाठक भी चकित हुए बिना नहीं रहता.
‘सिमटी वादी की बिखरी कहानी’इस संग्रह की बहुत सशक्त और केंद्रीय कहानी कही जा सकती है जो कथ्य के स्तर पर बहुत आत्मीय और संवेदनशील तरीके से किस्सों की अनेक परतों में ‘साज़िया’के जीवन की त्रासदी,उसके परिवार और छोटी बहन सकीना के निकाह की अधूरी ख्वाहिशों की बेबसी के मर्म को उद्घाटित करती है. सेना और वादी के स्थानीय नागरिकों के बीच अतर्विरोधों और निरंतर संघर्ष में रिश्तों की जटिलता और भावनाओं की गहराई को कहानी शिद्दत से बयान करती है. कैप्टन शब्बीर के रूप में विशेष मिशन के लिये तैनात मेजर जयंत के कर्तव्य और अतंर्द्वद्व तथा आतंकवाद की आग में झुलस चुकी वादी की त्रासद परिस्थितियों में भविष्यविहीन पीढ़ी के साथ कहानी एक मार्मिक अंत और ठहर गये दर्द के साथ पाठक की संवेदना को भी झकझोर देती है.
‘चिलब्लेंस’कहानी में कश्मीर के आम जीवन पर आतंकवाद के दुष्प्रभाव से टूटते घरों और संबंधों की त्रासदी के साथ ही बर्फीले मौसम में वहां के जनजीवन की दुशवारियों का भी मार्मिक चित्रण है. ‘गेट द गर्ल’बर्फीली सीमा के बंकर पर तैनात लेफ्टिनेंट पंकज के जीवन में नेहा के रूप में आए खुशनुमा पलों और उसके साथियों की जिंदादिली की रोचक और खूबसूरत कहानी है. ‘बर्थ नम्बर तीन’सुविधा भोगी मध्यवर्ग की स्वार्थपरकता और उसके बरक्स मेजर सुदेश के साहसपूर्ण जज़्बे की रोचक कहानी है तो ‘आय लव यू फ्लाय ब्वाय..’कहानी कश्मीर में पीरपंजाल की ऊंची पहाड़ियों पर सेना के मेजर द्वारा सतर्क और सफल रेस्कयू ऑपरेशन में घायल लांसनायक को बचा लेने की घटना का रोमांचक और दृश्यात्मक चित्रण है जो पाठक को भी अपने साथ लेकर चलता है. ‘रक्षक- भक्षक’एक निरीह जानवर हिरण शावक जो बर्फबारी में शिकार बनते-बनते आतंकित होकर पनाह के लिये बंकर में आ जाता है, उसके प्रति वाले सेना के जवानों और कंमाडर के अद्भुत मानवीय प्रेम और करुणा की आदर्श कहानी है. ‘चार्ली पिकेट’और ‘तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा' फौज के अलग-अलग मानवीय सहज किरदारों की हल्की- फुल्की जीवंत कहानियाँ हैं जिनमें तमाम अनुशासन और कर्तव्य के बीच मुस्कुराहटें और ठहाके भी खूब मिलते हैं.
‘इक तो सजन मेरे पास नहीं रे’आतंकवाद के भयानक दौर में रेहाना के कभी न खत्म होने वाले इंतज़ार की मार्मिक कहानी है जिसमें जिहाद के नाम पर सीमापार आतंकवादियों के ग्रुप में शामिल उसके मंगेतर सुहैल को वापस लाने की मेजर विकास की अटूट कोशिश के बावज़ूद यह एक अधूरी और त्रासद प्रेम कहानी बनकर रह जाती है. कश्मीर घाटी के सौंदर्य,झेलम, चिनार के पत्तों और बर्फीले आबशारों के बीच अंत मे प्रसिद्ध गायिका रेशमा का गाना पाठकों के दिल और ज़हन में देर तक गूंजता रहता है.
‘आवेदन पत्र शादी का’फौज के माहौल में युवा लेफ्टिनेंट युवराज सिंह की शादी को लेकर चुहल भरे क्षणों की प्यारी सी कहानी है तो दूसरी ओर ‘हैडलाइन' अत्यंत विषम हालातों में आतंक की आड़ में सेना के जवानों पर होने वाले भीड़ के हमलों और आलोचना को झेलती फौज के लिये मीडिया की एकतरफा रिपोर्टिंग और पक्षपातपूर्ण भूमिका के प्रति सवाल उठाने वाली कहानी है. ‘गर्लफ्रेंड्स’कहानी मेजर प्रत्यूष और उसकी टीम द्वारा आतंकवादियों के एक खतरनाक सर्च एनकाउंटर में उनके एक साथी कैप्टन सिद्धार्थ की मौत का दु:ख और गोलियों से पूरी तरह घायल मेजर के भावुक पश्चाताप की संवेदनशील कहानी है. कहानी का शीर्षक और अंत पाठकों को फिर से चौंका देता है जो गौतम जी की मौलिक कल्पनाशीलता भी कही जा सकती है लेकिन कहानी लगातार अंत तक पाठक को बांधे रखती है.
‘किशनगंगा बनाम नीलम’सरहद पर तैनात दोनों देशों के जवानों के बीच होने वाली सहज सरल संवाद की मानवीयता और भावनाओं को दर्शाती `तमाम दुश्मनी और तनाव के बीच कुछ राहत के पल देने वाली रोचक कहानी है. भाषा- शिल्प में अग्रेंजी-उर्दू के शब्दों का खूबसूरत प्रयोग़ इसे पठनीय और जीवंत रूप देता है जो गौतम जी की कलात्मक विशेषता है. ‘बार इज़ क्लोज़्ड ऑन ट्यूज़डे’और ‘पार्सल’भी फौज़ी जीवन के अनुभवों और कई आयामों से जुड़ी दिलचस्प कहानियाँ हैं. ‘हैशटैग’ एकतरफा प्रेम में पूरी तरह समपर्ण और जूनून के बाद अंतत: अपने अपमान और उपेक्षा से आहत समरप्रताप सिंह के प्रतिशोध की रोमांचक कहानी है जो किसी फिल्म के दृश्यों की तरह पाठक के सामने घटित होती है. अंतिम कहानी ‘हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज’ इस संग्रह की प्रतिनिधि कहानी कही जा सकती है जो मेजर मोहित सक्सेना के चरित्र के माध्यम से सेना और फौज के बारे में पाठक की सोच को बदल देने की क्षमता रखती है. हमेशा जोखिमतथा युद्ध की कठिन परिस्थितियों में रहने और सख्त अनुशासन के लिये पूरी तरह बाध्य हरी वर्दी वाले फौजियों के ह्र्दय में भी कोमलतम भावनाएँ होती हैं. कहानी में अनेक मानवीय संवेदनाओं और रिश्तों का खूबसूरत कोलाज और कहीं- कहीं काव्यात्मक शैली एक जादुई प्रभाव के साथ पाठकों को अपने आकर्षण से बांध लेती है –
हरी है ये ज़मीं हमसे कि हम तो इश्क बोते हैं
हमीं से है हँसी सारी, हमीं पलकें भिगोते हैं.
यह इस वर्ष का बेहतरीन कहानी-संग्रह कहा जा सकता है जो पाठकों से भी सार्थक संवाद स्थापित करता हैं. कठिनतम और दुर्गम हालातों में भी ये कहानियाँ और इसके चरित्र जीने का जज़्बा और संघर्ष करने का हौसला नहींछोड़ते. फौजी ज़िंदगी के सभी रास्तों और मोड़ों से गुजरते हुए एक सफर पर सभी इक्कीस कहानियाँ जैसे पाठक को साथ लेकर चलती हैं जहाँ आघातों,मुठभेड़,खतरों और जोखिम के बीच भी जीवन की मुस्कुराहटें,उम्मीद और ख्वाहिशें हैं. गौतम जी के पास अपनी अनुभूतियों और स्मृतियों को गद्य के कलात्मक-शिल्प में ढ़ालने का और शब्दबद्ध करने का अनूठा कौशल है जो इन खूबसूरत कहानियों को बेहद पठनीय,रोचक और गतिशील बना देता है. लेखक ने जैसे स्वंय जीकर इन कहानियों को बयान किया है इसलिये कब ये कहानी से हकीकत में ढ़ल जाती हैंपाठक को इसका पता नहीं चल पाता. यहाँ कश्मीर केवल एक भौगोलिक ईकाई या सरहद की रेखा न होकर जीवन के संपूर्ण और सघन अनुभव के रूप में उभर कर आता है इसलिये सभी चरित्र ,परिवेश और घटनाएँ सहज स्वाभाविक और सच के करीब दिखती हैं जिनमें खुशियों के क्षण भी हैं और दर्द के चित्र भी.
आतंकवाद के साये में जीने के लिये अभिशप्त लोगों की त्रासदी अत्यंत मार्मिकता से अभिव्यक्त हुई है तो दूसरी ओरसेना तथाफौजियों के साहस, संघर्ष ,मानवता के सम्मान, दृढ़ता और संयम की मिसालें भी दिल को छू लेती हैं. हिंदी की प्रसिद्ध और वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया जी ने इस पुस्तक के लिये कहा है-
“गौतम राजऋषि का नवीनतम कहानी- संग्रह सही मायनों में आत्मीयता, अनुभव और अनुभूतिका प्रतिरूप है. एक जोखिम भरे कार्य-क्षेत्र के तीखे और तरल क्षणों को रचनाकार ने पकड़ने की कोशिश की है. कुछ अधूरी प्रेम कहानियाँ उदास कर जाती हैं तो आतंकवाद की जड़ में समाया असुरक्षा बोध हमें सीमांत की समस्याओं से रूबरू करता चलता है.कहानी अगर ज़िंदगानी का अक्स है तो ये सब कहानियाँ इस पैमाने पर खरी उतरती हैं...पूरी तरह पाठक को सम्मोहित करने वाली बेबाकी इस किताब की खासियत है.”

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मीना बुद्धिराजा
हिंदी विभाग, अदिति कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय,
संपर्क-9873806557