(यह अद्भुत फोटो विश्व प्रसिद्ध फोटोग्राफर H. C . Bresson द्वारा
Romania में 1975. में कहीं लिया गया था. आभार के साथ)
राजकमल प्रकाशन संस्थान से प्रकाशित कविता संग्रह ‘अपने आकाश में’ (२०१७) की कविताएँ पढ़ते हुए मैंने कवयित्री सविता भार्गव को जाना, इन कविताओं ने एकदम से वश में कर लिया. प्रेम, सौन्दर्य, स्त्रीत्व और प्रतिकार से बुनी इन कविताओं का अपना स्वर है जो किसी संगीत-संगत की तरह असर डालता है.
चकित हुआ यह देखकर कि इस बेहतरीन कवयित्री की कविताएँ डिजिटल माध्यम में कहीं हैं ही नहीं. उनसे कुछ नई कविताएँ समालोचन ने प्रकाशन के लिए मांगी थीं जो अब आपके समक्ष हैं.
सविता भार्गव की कविताएँ
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सविता भार्गव
प्राचीन नगरी विदिशा में 5सितम्बर को जन्म. हिंदी साहित्य में डी. लिट्
कविता के अतिरिक्त थिएटर और सिनेमा में काम. कुछ आलोचनात्मक लेखन. शमशेर पर एक आलोचना पुस्तक 'कवियों के कवि शमशेर'दो कविता-संग्रह 'किसका है आसमान'और अपने आकाश में.
भरोसा
मैं अँधेरे पर भरोसा करती हूँ
जो मुझे सहलाता है अज्ञात पंख से
और मैं काँपती पलकों में
सो जाती हूँ
मैं उजाले पर भरोसा करती हूँ
जो आँखें खोलते ही खिल उठता है
और मैं बहती चली जाती हूँ
उसकी तरफ
मैं अपने इस घर पर भरोसा करती हूँ
जिसमें मैं रहती हूँ सालों से
और जो बस गया है
मेरे भीतर
मैं अपने शहर की गलियों पर भरोसा करती हूँ
जो आपस में जुड़कर इधर से उधर मुड़ जाती हैं
और जहाँ ख़त्म होती है कोई गली
मुझे वहाँ मेरी धड़कन सुनाई पड़ती है
ऐ आदमी!
मुस्कुराते हुए जब तुम मुझमें खो जाते हो
मैं तुम पर भरोसा करती हूँ.
बतियाएँ
राह चलते
बतियाएँ
ठोकर खाएँ
नुकीले पत्थर पर
नज़र गड़ाएँ
और हँस कर रह जाएँ
पेड़ के नीचे
बतियाएँ
बारिश के इस मौसम पर
और पुरानी बातों की बारिश में
भीग जाएँ
सोते हुए साथ
बतियाएँ
झुक जाएँ इतना
एक दूसरे पर
कि शब्दों को पसीना आए
बतियाएँ
कि बातें ही रहती हैं
जीवित.
चीज़ों को देखना
मैंने घड़ी देखी
घड़ी में देखने वाली चीज़ सुई थी
सुई में अटका हुआ समय था
और उस समय में एक निर्धारित जगह पर
मेरे उपस्थित होने का आदेश था
मैंने दरवाज़े की तरफ देखा
जो भीतर से बंद था
और उसे खोलकर मुझे बाहर निकलना था
बाहर निकलकर उसे फिर से बंद करना था
सिस्टम वही था ताले को भीतर और बाहर से बंद करने का
लेकिन इस बार दिखाई पड़ा कि वह बाहर से बंद था
और इसका अर्थ था कि मैं यहाँ से जा सकती हूँ
मैंने रास्ते को देखा
वह बहुत दूर तक जाता था
लेकिन वह मुझे वहीं तक दिखाई पड़ा
जहाँ तक मुझे जाना था
उसके आगे वह अनजाना था
मैंने चेहरे देखे
कुछ जाने-पहचाने तो कुछ नये थे
और पता नहीं मैं किस सोच में पड़ गई थी
कि उनमें देखने वाली चीज़ ग़ायब थी
मुसीबत यही है
चीज़ों को देखने से ज़्यादा
मैं सोचती हूँ.
उम्र
दिमाग़ पर उसका असर पहले से शुरू हो जाता है
लेकिन हम महसूस करते हैं उसे सबसे पहले
आँखों में घटती हुई रोशनी से
फिर सिलसिला चल पड़ता है
उसे महसूस करने का
चेहरे पर पड़ रही झुर्रियों के रूप में
पक रहे बालों के रूप में
और सबसे अधिक तब महसूस करते हैं
एक अच्छी खासी उमर का व्यक्ति
आंटी कहकर पुकारता है
दिमाग़ पर उसका असर शुरू हो जाता है
लेकिन दिल नहीं मानता है
रचते हैं हम स्वांग तरह-तरह के
फ़ैशन के हिसाब से थोड़ा आगे बढ़कर
करते हैं अपने लिए कपड़ों का चुनाव
कॉस्मेटिक का लेपन अधिक बढ़ा देते हैं
नियम से रंगते हैं बाल
और चलने के अन्दाज़ में करते हैं
चुस्ती का प्रदर्शन
हालाँकि हम जानते हैं
उम्र को झुठलाने का काम अच्छा नहीं होता
हम कई बार वह कर बैठते हैं
जो उस उम्र में नहीं करना चाहिए था
खाते कुछ हिसाब से अधिक हैं
जिसका असर दिल पर पड़ता है
सोचने के काम में देरी लगाते हैं
और भूल जाते हैं
यह दार्शनिक सत्य-
हम सोचते हैं, इसलिए
ज़िन्दा हैं!
दाम्पत्य और कविता
कविताएँ मेरे पास आएँ
उसके पहले मैं रसोई तक पहुँच गई होऊँगी
बिस्तर झाड़ते
सँवारते घर
इतनी सहज साधारण दिख रही होऊँगी
कि शब्द उछलकर अलमारी की किताबों में
दुबक गए होंगे
मानती हूँ शब्द का जीवन से रिश्ता है
लेकिन शब्द मानते नहीं
उनकी एक ही रट है
एकान्त में दुबको
या उड़ो
उन्हें नहीं चाहिए मेरा
सुकून
उदासी चाहिए लेकिन नहीं चाहिए
ओढ़ी हुई उदासी
जीवन जो पहचान में आए नया
उसी में देखते हैं शब्द
अपनी पहचान
अब आप बताएँ
दाम्पत्य सँवारूँ
कि कविता करूँ.
शुक्रगुज़ार हूँ मैं ऐसी ख़बरों की
ख़बर फैली
मैंने अमुक से पीछा छुड़ा लिया है
और ख़ाली हो गई हूँ
माँज कर रखी हुई थाली की तरह
ख़बर कितनी फैली
इसे पढ़ा जा सकता था
लोगों के मुस्कुराने के अन्दाज़ में
बात ज़रा सी पुरानी पड़ने लगी
तो ख़बर दूसरी उड़ने लगी
जिसमें लम्बी सूची थी
मेरे नए चाहने वालों की
मेरी छह-सात घंटे की नींद में भी
कई आहें सुनाई पड़ने लगीं
हर आह में दूसरी आह के प्रति
शक़ और नफ़रत थी
शक़ और नफ़रत के बीच
मेरी मादकता
बढ़ रही थी
शुक्रगुज़ार हूँ मैं ऐसी ख़बरों की
सिंक में बासी पड़े बरतनों जैसी औरतों से अलग
जिसने मेरी पहचान दी थी.
दिल से
स्त्री तुम्हें देती है
प्रेम
जैसे फूल देते हैं
फल
जैसे टिमटिमाते तारे देते हैं
उम्मीद
स्त्री तुम्हें देती है
अपने अन्दर की पूरी की पूरी जगह
जहाँ ज़मीन और आसमान
मिलते दिखाई देते हैं
हालाँकि तुम चाहो तो जी सकते हो
स्त्री रहित ज़िन्दगी
कर सकते हो स्त्री रहित प्रेम
इस तरह
तुम सिर्फ़ खो सकते हो
सृष्टि का विश्वास
और स्त्री?
वह तुम पर बस रो सकती है
दिल से.
आओ
कल्पना करती हूँ
जीवन के इस परिच्छेद में
नए प्रेमी की
और एक कथानक रच डालती हूँ
जिसमें सारे दृश्य फ़्लैशबैक के हैं
तुम कल्पना करो
मैं तुम्हारी नई प्रेमिका हूँ
और रच डालो
शमशान तक पहुँचने के
सारे दृश्य
अतीत और भविष्य के
इस मिलन बिन्दु पर
आओ
थोड़ा जी लें.
तो कविता लिखूँ
बारिश हो
अगर रात भर
तो कविता लिखूँ
प्लास्टिक की चिड़िया
अगर फुदक पड़े
तो कविता लिखूँ
अजनबियों के बीच
अगर कोई प्यारा लगे
तो कविता लिखूँ
भाषा अपनी सीधी सपाट
अगर ढल जाए मौन में
तो कविता लिखूँ.
पुरुष : दो छवियाँ
उन्हें देखा ख़यालों में
कई रंग थे उनके
सबसे प्यारा रंग साँवला था
कई तरह के पोशाक थे उनके
सबसे प्यारा पोशाक खुले बाहों की
कमीज़ थी
अधपकी दाढ़ी उनके चेहरे पर
खूब फबती थी
सबसे प्यारा पोशाक खुले बाहों की
कमीज़ थी
अधपकी दाढ़ी उनके चेहरे पर
खूब फबती थी
सबसे अच्छी बात थी कि उनकी आँखों में
प्यार पाने की जबर्दस्त लालसा थी
कि अब या तब में मुझे बाहों में भरकर
आकाश में आरोहण करने लगेंगे
उनके बिना
एक स्त्री होने के नाते मेरा कोई भी ख़याल
अधूरा था
देखा उन्हें हक़ीकत में
सिंह शर्मा पांडे लगे थे उनके नाम के आगे
बड़ी-बड़ी मूँछें थीं
गले में सोने की मोटी चेन
भृकुटियों के बीच लाल टीका
और आँखें तो ऐसी थीं
कि अब या तब में
मुझे चीर कर रख देंगी
उन्हें देखना
एक स्त्री होने के नाते
अपादमस्तक मैला हो जाना था.
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सविता भार्गव
प्राचीन नगरी विदिशा में 5सितम्बर को जन्म. हिंदी साहित्य में डी. लिट्
कविता के अतिरिक्त थिएटर और सिनेमा में काम. कुछ आलोचनात्मक लेखन. शमशेर पर एक आलोचना पुस्तक 'कवियों के कवि शमशेर'दो कविता-संग्रह 'किसका है आसमान'और अपने आकाश में.
सम्प्रति :
विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी उच्च शिक्षा विभाग, मध्य प्रदेश शासन, भोपाल.
विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी उच्च शिक्षा विभाग, मध्य प्रदेश शासन, भोपाल.