पेशे से वैज्ञानिक और हिंदी के लेखक-अनुवादक यादवेन्द्र ने महत्वपूर्ण लैटिन अमेरिकी लेखक इसाबेल एलेंदे की चर्चित कृति "पाउला"के कुछ हिस्सों का अनुवाद किया है.
आपके लिए आज यही.
दो साल पहले जीवन के 75 वर्ष पूरे करने वाली लैटिन अमेरिकी लेखक इसाबेल एलेंदे को यूँ तो अमेरिका में रहते हुए दो दशक से ज्यादा हो गए पर वे अब भी अपने को पूरी तरह चिली का लेखक मानती हैं ... वे शुरू से लेकर अबतक अपनी मातृभाषा स्पैनिश में लिखती रही हैं जिनकी दो दर्जन कृतियों के विश्व की चालीस से ज्यादा बड़ी भाषाओँ में अनुवाद प्रकाशित हैं. उनकी किताबों की बिक्री का आँकड़ा सात करोड़ को पार कर गया है - पिछले कई वर्षों में उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया. गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ के बाद जादुई यथार्थवाद की वे सबसे समर्थ सशक्त पुरोधा मानी जाती हैं जिनकी कृतियों में लैटिन अमेरिका की ज़मीनी राजनीति, रहस्य रोमांच और रोमांस का भरपूर अंश होता है.
चिली के संभ्रांत राजनैतिक परिवार में जन्मी इसाबेल एलेंदे ने अपना करियर एक पत्रकार के रूप में शुरू किया और आत्मकथात्मक शैली में पहला उपन्यास "हॉउस ऑफ़ द स्पिरिट्स"लिखा जिसने उन्हें अचानक साहित्यिक आकाश का सितारा बना दिया. वैसे पेशे के तौर पर वे पत्रकारिता करती रहीं. देश के पहले निर्वाचित वामपंथी राष्ट्रपति सल्वाडोर एलेंदेउनके निकट परिवारी थे और जब सैनिक तख्ता पलट में उनकी हत्या कर दी गयी तो जान बचाने के लिए उन्हें परिवार सहित देश छोड़ कर बाहर जाना पड़ा- वेनेजुएला, बोलीविया और लेबनान होते हुए वे अंततः अमेरिका जाकर बस गयीं. लैटिन अमेरिकी राजनीति से तो उनका सक्रिय सम्पर्क बना ही रहा साथ साथ अमेरिका की राजनीति में डोनाल्ड ट्रंप के उदय पर उनकी बहुचर्चित बड़ी तीखी प्रतिक्रिया सामने आयी थी.
1994 में प्रकाशित उपन्यास / संस्मरण "पाउला" अपनी इसी नाम की बेटी के लाखों में एक को होने वाली बीमारी के चलते लगभग साल भर तक चेतनाशून्य अवस्था(कोमा) में रहने के बाद असमय चले जाने के सदमे से उबरने की एक कोशिश के अंतर्गत पूरी तरह बेटी के सिरहाने बैठ कर अस्पताल में लिखा गया- वे पूरी अवधि के दौरान बेटी के बगल में उपस्थित रहीं और हताशा से उबरने के लिए इस उम्मीद में उसको लम्बी चिट्ठी लिखनी शुरू की कि जब वह स्वस्थ होगी तो अपनी माँ और उसके खानदान के बारे में विस्तार से जानेगी. बेटी साल भर तक शरीरी तौर पर जिन्दा जरूर रही पर मानसिक रूप में अनुपस्थित अदृश्य ..... उसको लिखी चिट्ठी धरी की धरी रह गयी - माँ इसाबेल इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पायीं और खुद बीमार होने लगीं. तब उनकी माँ ने कहा - तुमने जो लिखा है उसपर आगे काम करने में खुद को लगाओ नहीं तो मर जाओगी.
परिवार के दबाव में उन्होंने बेटी पाउला को लिखी चिट्ठियों को कथात्मक तरतीब देकर यह उपन्यास पूरा किया जो आज भी उनकी सर्वश्रेष्ठ कृतियों में शुमार की जाती है. इस किताब में पाउला तो है ही खुद इसाबेल और उनका खानदान भी है - बाहरी तौर पर और आंतरिक दुनिया भी. यहाँ प्रस्तुत पुस्तकांश में माँ को लिखी चिट्ठी की पंक्तियाँ उद्धृत हैं जिसे बीमार पाउला ने इस शर्त के साथ लिखी कि इसे उसके न रहने पर खोला जाए.
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उपन्यास अंश
पाउला
इसाबेल एलेंदे (चिली)