
जिसे आज हम प्रेम दिवस कहते हैं, कभी वह वसंतोत्सव/मदनोत्सव के रूप में इस देश में मनाया जाता था. स्त्री-पुरुष का प्रेम दो अलग वृत्तों का मिलाकर उस उभयनिष्ठ जगह का निर्माण करना है जहाँ दोनों रहते हैं, जिसमें परिवार, समाज, संस्कृति, धर्म, देश जब घुल-मिल जाते हैं. इसकी अपनी गतिकी है, महीन कीमियागिरी है. इसका समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र भी होगा. कुल मिलाकर अहमद फ़राज़ के शब्दों में कहें तो-
‘हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा'द ये मा'लूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी’
अंचित बहुत अच्छे कवि और प्यारे इंसान हैं. इस अवसर पर उनकी कुछ प्रेम कविताएँ आप पढ़ें. देखें पूरी एक दुनिया है यहाँ. तमाम पेचो- ख़म हैं.
टेरेसा सिन्हा के लिए कुछ कविताएँ
अंचित