सृजन संभव नहीं ‘इन हाथों के बिना’ : रोहिणी अग्रवाल
रोहिणी अग्रवाल वरिष्ठ कथा-आलोचक हैं, इधर कविताओं पर भी लिख रहीं हैं. कुछ दिन पूर्व समालोचन पर ही आपने सदानन्द शाही की कविताओं पर उनका आलेख पढ़ा था. प्रस्तुत आलेख कवि नरेंद्र पुण्डरीक पर है. नरेंद्र...
View Articleअंचित की प्रेम कविताएँ
जिसे आज हम प्रेम दिवस कहते हैं, कभी वह वसंतोत्सव/मदनोत्सव के रूप में इस देश में मनाया जाता था. स्त्री-पुरुष का प्रेम दो अलग वृत्तों का मिलाकर उस उभयनिष्ठ जगह का निर्माण करना है जहाँ दोनों रहते हैं,...
View Articleनरेश सक्सेना से संतोष अर्श की बातचीत
उन्होंने जो कविताएँ सुनायीं उन्हें सुनकर सोमदत्त को तो चक्कर आ गया (नरेश सक्सेना से संतोष अर्श की बातचीत)संतोष अर्श : उनसे (विनोद कुमार शुक्ल से) मिलने मैं रायपुर गया था. उन दिनों उनके घर में...
View Articleमनोज मल्हार की कविताएँ
मनोज मल्हार की कविताएँ (एक)इतिहासकार का जादू [1]इतिहासकार शुरू करता है.भारी-भरकम लयबद्ध आवाज की निरंतरता सर्वप्रथम मंचीय प्रकाश को गायब कर देती हैधीरे-धीरे इंसानी...
View Articleपंकज बिष्ट की कहानियाँ : राकेश बिहारी
महत्वपूर्ण कथाकार और ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट (जन्म : २० फरवरी, १९४६) का आज ७५ वां जन्म दिन है. पांच दशकों की उनकी रचनात्मक और वैचारिक यात्रा के विविध आयाम हैं- कहानियाँ, उपन्यास, आलेख,संपादन,...
View Articleकिताब की यात्रा : रमाशंकर सिंह
किताब पहले भी लिखी जाती थी पर प्रिंटिग प्रेस से निकलकर किताब किताबें हुईं, बहुत दिनों तक उन्हें पवित्र और प्रामाणिक माना जाता रहा. नगर में पुस्तकों का आलय होना नगर के लिए बड़ी बात थी. घर में किताबें हों...
View Articleकहानी : भेड़िये : भुवनेश्वर
भेड़िये भुवनेश्वर‘भेड़िया क्या है’,- खारू बंजारे ने कहा, ‘मैं अकेला पनेठी से एक भेड़िया मार सकता हूँ.’ मैंने उसका विश्वास कर लिया. खारू किसी चीज से नहीं डर सकता और...
View Articleभुवनेश्वर की कहानी ‘भेड़िये’ : शिवकिशोर तिवारी
भुवनेश्वर का जन्म शाहजहाँपुर में हुआ था, उनके व्यक्तित्व की ही तरह उनका जन्म-मृत्यु वर्ष भी विवादग्रस्त है. जन्म के लिए १९१०, १९१२ तथा १९१४ तथा मृत्यु के लिए १९५७ के पक्ष में प्रमाण पेश किये गयें हैं....
View Articleभाषा का काव्यात्मक यातना-गृह : स्लावोय ज़िज़ेक (अनुवाद : आदित्य)
दंगे और हिंसा भाषा के दुरुपयोग की ओर भी इशारा करते हैं और यह कि साहित्य ने अपना काम ठीक से नहीं किया है, वह आवश्यक विवेक और संवेदनशीलता पैदा करने में अक्षम रहा है. कई बार तो उसने अपने लोकप्रिय चलन में...
View Articleमैं और मेरी कविताएँ (८) : लवली गोस्वामी
‘Poetry heals the wounds inflicted by reason.’Novalisकवि सदियों से प्रेम और न्याय की कविताएँ लिखते आ रहें हैं,दुःख, दर्द, पीड़ा गाते आ रहें हैं. सभ्यताएं उन्हें सुनती हैं,संस्कृतियाँ उनसे खुद को बुनती...
View Articleकृष्णा सोबती का लेखकीय व्यक्तित्व : सुकृता पॉल कुमार
सुकृता पॉल कुमार भारतीय अंग्रेजी लेखकों में प्रमुखता से रेखांकित की जाती हैं. ड्रीम कैचर, विदाउट मार्जिन्स, फोल्ड्स ऑफ़ साइलेंस, नैरेटिंग पार्टीशन, दि न्यू स्टोरी, मैन, इस्मत, हर लाइफ, हर टाइम्स आदि...
View Articleनामवर सिंह : हिन्दी के हित का अभिमान :पंकज चतुर्वेदी
नामवर सिंहहिन्दी के हित का अभिमानपंकज चतुर्वेदी 1992 में मैं लखनऊ विश्वविद्यालय में बी.ए. का विद्यार्थी था और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली में हिंदी से एम.ए. करने के लिए प्रवेश-परीक्षा...
View Articleरेणु जन्म शती वर्ष : हिंदी का हिरामन : विमल कुमार
फणीश्वरनाथ रेणु (४ मार्च १९२१-११ अप्रैल १९७७) का यह जन्म शती वर्ष है, 4 मार्च से उनसे सम्बंधित आयोजन देश भर में प्रारम्भ होंगे. रेणु का जीवन भी किसी उपन्यास से कम नहीं है, व्यक्तिगत स्तर पर वे आकर्षक...
View Articleस्वप्निल श्रीवास्तव की कविताएँ
कुछ कवि कविता में रहते-रहते खुद कविता की तरह लगने लगते हैं जैसे निराला, शमशेर, जैसे मुक्तिबोध जैसे आलोकधन्वा.स्वप्निल श्रीवास्तव को मैं जब देखता हूँ. वे मुझे उन्हीं की किसी कविता की कोई पंक्ति लगते...
View Articleबाहर कुछ जल रहा है : लैस्ज़्लो क्रैस्ज़्नाहोरकाइ : अनुवाद : सुशांत सुप्रिय
हंगरी के लेखक लैस्ज़्लो क्रैस्ज़्नाहोरकाइ (Laszlo Krasznahorkai, जन्म : १९५४) के छह उपन्यास प्रकाशित हैं और उन्हें इनके लिए कई राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं जिसमें ‘ManInternational...
View Articleमैत्री : तेजी ग्रोवर
“बहुत सारी कविता सदियों से जगहों के बारे में होती आयी है. पर ऐसी भी कविताएँ हुई हैं जो जगह बनाती है: अपनी जगह रचती है. वह जगह कहीं और नहीं होती न ही जानी-पहचानी जगहों से मिलती-जुलती है. वह सिर्फ़ कविता...
View Articleयुवा कविता : एक : ओम निश्चल
हिंदी में युवा विवादास्पद हैं, ‘युवा-कविता’ तो और भी. न जाने कौन रसायन पीकर ‘युवा’ हिंदी कविता में उतरता है कि चिर युवा ही बना रहता है. और फिर एक झटके में वरिष्ठ. ‘कू-ये-यार’ से निकले तो ‘सू-ये-दार’...
View Articleडबल सेवेन: ‘अच्छे दिनों’ का कोल्ड ड्रिंक : सौरव कुमार राय
डबल सेवेन: ‘अच्छे दिनों’ का कोल्ड ड्रिंक सौरव कुमार रायआधुनिक भारतीय इतिहास में कुछ वर्ष सिर्फ कैलंडर वर्ष न रह कर किसी भव्य परिघटना की अभिव्यक्ति बन चुके हैं. उदाहरण स्वरूप 'सन...
View Articleपाब्लो नेरुदा : प्रेम, सैक्स और "मी टू" : कर्ण सिंह चौहान
पाब्लो नेरुदा : प्रेम, सैक्स और "मी टू"पिछले दिनों हिंदी में बाबा नागार्जुन को लेकर जब “मी टू” का मामला सामने आया तब अधिकांश साहित्यकारों (जाहिर है साहित्य पुरुष-प्रधान होने से पुरुष ही अधिक) की...
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