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बिपनप्रीत की कविताएँ (पंजाबी)

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पंजाबी भाषा के कवि गुरप्रीत की कविताएँ आपने समालोचन पर पढ़ीं हैं. इस कड़ी में आज पंजाबी कवयित्री बिपनप्रीत की  बीस कविताओं का हिंदी अनुवाद आपके लिएप्रस्तुत है. बिपनप्रीत के दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं और वे अपने महीन और नाज़ुक ख्याल के लिए जानी जाती हैं. इन कविताओं का अनुवाद कवि- लेखक रुस्तम और अम्बरीश ने कवयित्री की मदद से किया है.


बिपनप्रीत  की  कविताएँ (पंजाबी)                             
(पहले आठ अनुवाद : हिन्दी कवि रुस्तम द्वारा. शेष अनुवाद : कवयित्री की मदद से पंजाबी कवि अम्बरीश एवम् रुस्तम द्वारा)


ओस
यह किसने
छिड़काव किया
दूर-दूर तक
मेरी आँखों की चमक
टिमटिमा रही.



ओट में   
परदे के पीछे मैं
मेरी ओट में छुपा अंधेरा
अंधेरा देखने की चाहत में
टकटकी लगाए
झाँक रहा है चाँद.



काश
वह पत्थर होता तो अच्छा था
मैं उसे मोम कर देती
या कर देता वह मुझे टुकड़े-टुकड़े
पर वह तो महीन रेशा था
अपने ही जाल में उलझकर फँस गया
मकड़ी पिघल रही है जाले में
और मेरी पत्थर आँखें
बस उसी को देख रही हैं.



याद
उसे याद करना चाहती हूँ
पर वह मुझे याद नहीं आता
मैं गवाँ चुकी हूँ अपने-आप को
सब कुछ धुँधला दिखाई देता है
उसे कहो
सिर्फ वो ही मुझे ढूँढ सकता है
कुछ तो करो
अब मैं उदास नहीं होती
मैं उदास होना चाहती हूँ.



चुप्पी
चुप्प हूँ
पर फिर भी कोई
गुफ़्तगू चल रही है
कुछ है जो मेरी
चुप्पी तोड़ने की
कोशिश में है
मैं ढेमा उठाकर
झील में फेंकती हूँ
अपनी चुप्पी को बचाने की कोशिश करती हूँ.



अभी-अभी
मैं सिर झुकाए बैठी थी
धूप मेरी पीठ सहला रही थी
अभी-अभी मैं
रोने और हँसने के बीच में थी
अभी-अभी
मैं रो पड़ी
धूप हँस पड़ी
अभी-अभी
हवा चली
आँसू सूख गये
अभी-अभी
मैं पीठ में
गर्माहट लिए
अपने अन्दर चली गयी
अभी-अभी.



रात भर
टहनियाँ झूमती रहीं
गड्ढों में भर चुके पानी में
आकाश का अक्स
काला नहीं था
चाँदी की लकीर
उसे निखार रही थी
मैं रात भर करवटें लेती रही
बन्द आँखों से रही ताकती
रात भर बारिश होती रही.



लाश
कन्धों पर लाश लिए
शमशान से मुड़ती हूँ
लाश की परछाईं
पैरों की तरफ
घसीट रही है मुझे
सड़क पर निशान छोड़ रही है
मेरी आँखें चौंधिया रहा है
सूरज
लाश के माथे पर त्योरी
एक चेहरा
समझ नहीं पा रही
कौन सा है   कौन है.



ओम
बोल रही
जो सुनाई नहीं देता
कहती
जो जानती नहीं
लिखती
जो पढ़ नहीं पाती
मेरे होने
और करने के बीच
नींद है       सपना
डर और सन्नाटा
शब्द और सन्नाटे के बीच
ओम की धुन
और
गहरी नींद में मैं.



समाधी

मौन ---
बुलबुलों में
समुद्र

पानी में तैरता पत्थर
ऊपर मछली
धूप में नहा रही.



फल
दरख़्त की जड़
पैरों से लिपटी
पक्षी हवा को ठकोरते
चोंचें ज़ख़्मी करते
महक
लार में मिठास बन टपक रही
फल पक चुका
पशु जुगाली कर रहे
मैं
काट दिए गये
अमरूद के
बचे हुए तने में से
फल गिन रही.



ईश्वर
चिड़िया के गर्भ में कहकशां
 
दाना-दाना चुगती
गुलाबी पंजों से
अपने पंख सहला रही
ईश्वर चहचहा रहा.




तड़प
पानी पर
परछाइयों की
असंख्य परतें बिछी हुईं
जश्न मना रहे ---
पेड़ सूरज आकाश
पक्षी पहाड़
और नीचे चुप्पी
कुछ था
जो पानी में से निकलकर
फ़ना होना चाहता था
सूरज की किरणें
पानी चीरकर
ढूँढ रही थीं अपनी जगह

पानी तड़प रहाथा
या कि आनन्द में था
मैं सोच रही.



इसी तरह
तुम्हारी आँखों में
टिमटिमाहट है
तारे देखते हुए
तुम इसी तरह
मेरा हाथ
ज़ोर से पकड़े रहो
मैंने चाँद पर
छलाँग लगानी है.
       



शब्द
साँस लेते
मुँह से धुआँ उगलते
अपनी रोशनी फेंकते
एक-दूसरे की आँखों में
कहानी पढ़ रहे
शब्दों को पकड़ती हवा
भाषा रच रही.
              



डूब रही
पानी गोते खा रहा
डूब रही मैं
किरणों को पकड़ा हुआ है
पर मुझे खींचता नहीं
सूरज
अभी एक झटका  दूँ
धड़ाम से फेंक डालूँ
सूरज को.
           



स्वार्थी
टहनी पर
अटका सूरज
अपने लिए
तोड़ लेना चाहती हूँ
सूरज कुतरते
पक्षियों को
छिछकारती हूँ
उड़ा देती हूँ
किरणों का गोला
लपेटता आकाश
मेरा उधड़ा हुआ स्वेटर देख
खिलखिला कर हँस रहा है.
                 



आखिरी पल
क्या तुम मुझे
मेरे आखिरी पल में
मिल सकोगे वैसे ही
जैसे पहले पल में मिले थे ?
अन्तराल बीच का
भूल जाऊँगी मैं
और यह भी
कि कभी हम
मिले भी थे.
                  



खाली पन्ना
भर चुकी डायरी का
आखिरीपन्ना
पलटा तो
वह खाली निकला
मैंने पन्ना फाड़ा
कश्ती बना ली
और ठेल दी
बारिश के पानी में
अब मैं उस पर सवार
कर रही हूँ समंदर पार.
             



धोखा
होश में हूँ
पर आवाज़ अपनी
सुनाई नहीं देती
तेरे साथ हूँ  लेकिन
बेगानी हूँ
रोशनी छल होती है
अंधेरे में जाना चाहती है
मैं खुद को सुनना चाहती हूँ.


बिपनप्रीत का पहला कविता संग्रह “जनम” २००९ में प्रकाशित हुआ था. उसके बाद उन्होंने बड़ी तेजी से पंजाबी कविता के परिदृश्य में अपनी विशेष जगह बना ली. चीज़ों को देखने का उनका नज़रिया और उनको कविता में लाने का तरीका ठेठ उनके अपने हैं. उनका दूसरा कविता संग्रह “रफूगर” अभी हाल ही में २०१८ में प्रकाशित हुआ है. वे अमृतसर में रहती हैं. 





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