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प्रमोद पाठक की कविताएँ























ये कविताएँ बच्चों के लिए लिखी गयी हैं पर बचकानी नहीं हैं, बच्चों के लिए लिखना चुनौतीपूर्ण तो है पर इनका लिखा जाना बहुत जरूरी है ?

प्रमोद पाठक को आप समालोचन पर पिछले कई वर्षों से पढ़ते आ रहे हैं,  उनकी प्रेम कविताओं ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है. भविष्य की पीढ़ी को तराशने के लिए लिखी इन कविताओं ने तो विस्मित ही कर दिया.  

फ्रेश, चमकदार, गुनगुनी इन कविताओं को पढ़कर बच्चे जहाँ खिलखिलाएंगे बड़े मुस्कराएँ बिना नहीं रह पायेंगे. ये कविताएँ अपने आस-पास से लगाव की कविताएँ हैं.  

आज आप जरुर इन कविताओं को अपने आस-पास के बच्चों से साझा करें.



प्रमोद  पाठक   की   कविताएँ                                              



पानी उतरा टीन पर

पानी उतरा टीन पर
फिर कूदा जमीन पर

पत्ती और फूल पर
खूब-खूब झूलकर

कोहरे में हवाओं में
नाचकर झूमकर

छुप गया खो गया
मिट्टी को चूमकर.






बुनकर हैं बया जी

दया जी दया जी
देखो बया जी
देखो देखो बिट्टी
घोंसले में मिट्टी
सूखी-सूखी घास
बहुत ही खास
लाई चुन चुनकर
बया जी हैं बुनकर
बया जी का हौंसला
बुना लम्बा घोंसला
बया जी ने चुनकर
अण्डे दिए गिनकर
अण्डा फूट गया जी
चूजा निकला नया जी
दया जी दया जी
चहक रही बया जी




चोंच

चिड़िया की चोंच
चूजे की चोंच
चूजे की चोंच में
चिड़िया की चोंच

चुग्गा लाए
चिड़िया की चोंच
चुग्गा खाए
चूजे की चोंच.





रात

रात नाम की इक अम्मा के
बच्चे बहुत ही प्यारे
एक था उनमें चंदा
और बहुत से तारे.






भोर

चाँद हुआ अब मद्धम मद्धम
तारे हो गए छुप्पम छुप्पम 
रात हो गई ढल्लम ढल्लम
सूरज हो गया उग्गम उग्गम
निकली चिड़िया फुर्रम फुर्रम 
करने दाना चुग्गम चुग्गम.






हाथी और चींटी 

हाथी चिंघाड़ा 
जंगल गूँज गया 
चींटी चिल्‍लाई 
किसी ने ना सुना 

हाथी ने फूँका 
आँधी आ गई 
चींटी ने फूँका 
पत्‍ती तक ना हिली 

हाथी रोया 
नदी बह गई 
चींटी रोई 
बूँद तक ना बही 

हाथी छिपा 
सबको दिखा 
चींटी छिपी  
किसी को ना दिखी. 








तीतर तारे 

रात-झाड़ से निकले सारे
तीतर तारे तीतर तारे 
एक शिकारी चन्दा आया 
देखके उसको छुप गए सारे 
जब चन्दा थक हार गया
उजली रात के पार गया 
धीरे धीरे निकले सारे 
तीतर तारे तीतर तारे




चाँद

रात के भुट्टे में
तारों के दाने हैं
एक नहीं,दो नहीं
कई-कई हजार
चाँद की चिड़िया
चुग-चुग उनको
उड़े भोर के पार.





ओस

भोर माघ-पोस की
चिड़िया आई ओस की
दूब का है घोंसला
धूप में धुला-धुला






पेड़ 

पेड़ों का कोई घर होता 
तो कैसा होता
क्या वह हरा ही होता
फिर क्या उसमें फूल भी खिलते
अगर खिलते 
तो क्या पीले होते
या आसमानी 
लाल नीले 
या फिर बैंगनी
तो क्या तितलियाँ भी आतीं 
फिर क्या उसमें पक्षी कीड़े मकोड़े भी रहने आते 
लेकिन पेड़ों को शायद यह बहुत पहले पता चल गया था
फिर उन्होंने देखा भी
कि ऐसा कोई घर मनुष्य अभी तक नहीं बना पाया
इसीलिए उन्होंने कोई घर नहीं बनाया
और खुद ऐसे पेड़ बन गए
जिन पर रंग बिरंगे फूल खिलते हैं
तितलियाँ आती हैं
पक्षी कीड़े मकोड़े रहते हैं
और हम मनुष्य अभी तक
पेड़ों जितना सुंदर कोई घर नहीं बना पाए.





तितली 

पंखुरियाँ दो खिलीं खिलीं
नाज़ुक सी बस हिलीं 
रंगों में घुली घुली 
तितली एक उड़ चली.






बरखा रानी 

पहने
बादलों का सूट 
पानियों के बूट 

डाले
हवा का दुशाला
बिजलियों की माला 

देखो 
नदियों की अम्मा 
झरनों की नानी 

आई 
धरती की सहेली 
जंगलों की रानी 

नन्हीं
बूँदों की शैतानी
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आई बरखा रानी. 

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