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सहजि सहजि गुन रमैं : चंद्रेश्वर












चंद्रेश्वर का दूसरा कविता संग्रह ‘सामने से मेरे’ अभी प्रकाशित हुआ है. ये कविताएँ बुनावट में सरल लग सकती हैं पर वर्तमान की जटिलता को ये समझती हैं और व्यक्त भी करती हैं. इनका अपना एक प्रतिपक्ष है और प्रतिरोध का साहस भी. 

चंद्रेश्वर की कुछ कविताएँ आपके लिए.



चंद्रेश्वर की कविताएँ                      



सरलहोनाकठिन

सरलहोनाकिसीअपराधी, माफियाऔरडॉनकेआगे
बिछजानानहीं
सरलहोनाअपनाआत्मसम्मान
गिरवीरखदेनानहीं
सरलहोनागंदेनालेयागटरकेपानीकेसाथ
बहनानहीं

सरलहोनाअगरधूर्तहोनेकीछूटनहींदेता
तोबेवकूफ़भीनहींबननेदेता
सरलहोनामानवीयहोनाहै
कुछज्यादा

सरलहोनाउतनाहीकठिनहै
जितनाखींचनाकोईसरलरेखा

सरलताओढ़ीनहींजाती
जैसेमहानता!
   
         




आलोचनाकाएककोना

बचाहीरहताहैएकअददकोना
आलोचनाकासदा
अपनेबेहदक़रीबीरिश्तोंकेबीचभी

होनाइसकोनेकागवाहीहैहमारी
ज़िंदादिलीका

हज़ारबातोंकेबादभीरहतीहैबची
थोड़ी-सीबात
जोकरतीहैपैदाउम्मीद
अगलीमुलाक़ात  केलिए

जैसेहमलिखतेथेपहले
चाहेजितनीभीचिट्ठियाँ
परहरअगलीचिट्ठीमेंरहजाताथा
यहीएकअधूरावाक्यकि
शेषफिरकभी-----!
         




कालिख

माँरोज़माँजती
चिकनीराखऔरपानीसे
शामकोशीशा
लालटेनका

रातभरजलतीलालटेन

हमसुबहउठतेसोकर
देखतेकिजमगईहै
कालिखफिर
लालटेनकेशीशेमें

माँरुकीकभी
कालिखहीथमी
कभी!
   



तुम्हाराडर

एकहाथीजितनीजगहछेंकताहै
उसमेंअसंख्यचीटिंयाँरहलेंगीं

एकराजाकीबड़ीहवेलीकेनीचे
जोढँकीहैपृथ्वी
उतनीपृथ्वीपरतोबसाईजासकतीहै
ज़रूरतमंदइंसानोंकीएकपूरीबस्ती

तुमइतनेबड़ेक्योंबने
कितुम्हाराडरभीबनतागयाबड़ा

छोटेआदमीकाडरहोताहोगा
निश्चयहीछोटा !
          


ज़्यादा-ज़्यादा

ज़्यादा-ज़्यादाकबाब, ज़्यादा-ज़्यादाशबाब
ज़्यादा-ज़्यादाब्रेड, ज़्यादा-ज़्यादामक्खन
ज़्यादा-ज़्यादामुर्गा, ज़्यादा-ज़्यादामटन
छौंक-बघारज़्यादा-ज़्यादा, ज़्यादा-ज़्यादाचिक्कन
ज़्यादा-ज़्यादादारू, ज़्यादा-ज़्यादाचिक्खन

बड़ी-बड़ीगाड़ीकिबड़ा-बड़ामकान
बड़ा-बड़ाप्लाटऔरदुनियाजहान

शब्दज़्यादाकिविचारकम
खाँचीभरअनुभवकिसंवेदनाकम
सियासतज़्यादाऔरनतीजाकम

सबलाखड़ाकरतेहैं
ख़िलाफआपको
धर्म, ज़िन्दगीऔरअंततः
इन्सानियतके!
   
          


घूरेकीराख

कभी-कभीदिखजातीहै
कोईमरियल-सीचिनगारी
घूरेकीराखमेंभी

अगरमौसमहोवसंतका
फागुनीबयारका
तोकहनाहीकिया
देरनहींलगतीउसे
लपटबनते!
  
     



हरियालीकासफ़र

जिसजगहसे
उखड़करजाताहैपौधा
जिसजगहको
दूसरी-तीसरी
चौथीयापाँचवींबार
हरबारकुछमिट्टी
बचीरहजातीहै
 उन-उनजगहोंकी
उसकीजड़ोंमें
जिन-जिनजगहोंसे
उखड़ताहैवह

इसतरहपौधेकेसाथ -साथ
सफ़रकरतीरहतीहै
मिट्टीभी

मिट्टीसेमिट्टीका
यहमहामिलनही
साखी  है
हरियालीका !

                      





होसामनाघटावसे

मैंनेप्यारकियाहै
तोघृणाकौनझेलेगा
चुनेख़ूबसूरतफूलमैंने
तोउलझेगागमछाकिसका
काँटोंसे
बनायेअगरमित्रमैंने
तोशत्रुकहाँजायेँगे
सुखनेसींचाहैमुझे
तोतोडाहै
बार-बारदुःखने
मेरेजीवनमेंशामिलहैसोहर
तोमर्सियाभी
ऐसेकैसेहोगाकि
जोड़ताचलाजाऊँ
होसामनाघटावसे
लियाहैजन्म
तोकैसाडरमृत्युसे!
                 
            



सामनेसेमेरे

मेरेसामनेपारकरतेदिखा
चौराहा
एकघायलसांड
उसकादाहिनापैरजंघेकेपासथा
लहूलुहानबुरीतरहसे
उसनेबमुश्किलपार.कियाचौराहा
कुछदेरकेलिएरूकेरहेवाहन
हरतरफ़से
कुछदेरबादवहाँसेगुजरीएकगाय
आटाभरापॉलिथीनमुँहमेंलटकाए
सरकारीअध्यादेशकीउड़ातेहुएधज्जियाँ
उसकेपीछेकुत्तेलगेहुएथे
एकनन्हेअंतरालकेबाददिखाजाता
एकझुण्डसूअरोंका
थूथनउठाएगुस्सेमें
एक-दोभिखारीटाइपदिखेबूढ़ेभी
जिनमेंशेषथीउम्मीदअभीजीवनकी
ठेलेपरकेलेथेबिकनेकोतैयार
सड़कधोयीजारहीथी
नगरपालिकाकीपानीवालीगाड़ीसे
पहलादिनथाचैत्रनवरात्रका
आख़िरमेंनिकलाजुलूस
माँकेभक्तोंका
होकरचौराहेसे
गाताभजन
लगातानारे
पट्टियाँबाँधेमाथेपर
जयमाताकी!
   
      




मैंऔरतुम

तुममुझेवोट  दो, मैंतुम्हेंदेशभक्तिकाप्रमाणपत्रदूँगा
तुममुझसेसहमतरहो, मैंतुम्हारीहिफाज़तकरूँगा
तुमचुपरहो, मैंतुम्हारीपीठपरअपनाहाथरखदूँगा
तुमलिखनाबंदकरदो, मैंतुम्हेंपुरस्कृतकरदूँगा
तुमसोचनाबंदकरदो, मैंतुम्हेंदेवताबनादूँगा
तुमगऊबनजाओ, मैंतुम्हेंमाताबनालूँगा|
                         
                              [


कवितानहींडकार
(आलोचकडॉ०मैनेजरपाण्डेयकेप्रति)

आपकीआलोचना-भाषामें
नहींमिलेगादुचित्तापन
वहमुक्तहैहकलाहटसे
आपबोलतेयालिखतेवक्त
देतेजातेनयातेवर
विवेकीस्पर्शभाषाको

सचमुचएकधारदारहथियारहै
आपकीआलोचना
साफहोताजाताझाड़-झंखाड़ 
हमारेदिमागका

आपकीनिगाहसबसेपहलेपहुँचतीवहां
जहाँविकसितहोतीरहती
संस्कृतिप्रतिरोधकी

आपकीभाषामेंक्रियायोंकीहलचल
बेचैनीसंज्ञाओंकी

आपकोपढ़तेहुए
होताजातारोशनदिमाग
आपबनातेएकसंतुलन
पोथीऔरजगकेबीच
आपकामाननासाफकि
कवितानहींडकार
अघाएआदमीकी

आपइतिहासदृष्टि, विचारधाराऔर
यथार्थवादकेकायल
आपनेकिसीअच्छीरचनाको
कभीकियानहींघायल

हिंदीआलोचनाकोदियाआपने
अँधेरेसमयमेंभीएकनयामान
उसेमिलीएकनयीपहचान

आपकीआलोचनामेंऐसीभाषा
जिसेपढ़तेख़त्महोतीधुँध
पैदाहोतीआशा!
        





कॉमरेडज़माखान

सत्तरवर्षीयकॉमरेडज़माख़ानको
अबभीयक़ीनहैकि
बदलेगीयेदुनिया
इंसानऔरइंसानकेबीच
नहींहोगीकिसीक़िस्मकी
कोईदीवार

कॉमरेडज़माखानहैं
नगरसचिवअपनीपार्टीके
वेकहींभीखड़ेहों
किसीचौराहेपरयासैलूनकेपास
ख़ालीबेंचपर
यासड़ककेकिनारे
किसीफलवालेठेलेकेपास
कभीचुपनहींरहते
वेबोलतेहीरहतेहैंलगातार
हरतरहकेज़ुल्मकेख़िलाफ़
वेबोलतेहैंताकिज़िंदारहसकें

पूरेनगरमेंदोहीजनहैंबचे
जोबोलतेहीरहतेहैंलगातार
एकतोवोपागलहै
पहनेबोरेकीकमीज़
दूसरेअपनेकॉमरेडज़माखानहैं
पागलसूरजकीओरमुँहबाये
बड़बड़ातारहताहै
कॉमरेडखानपूँजीपतियोंकेख़िलाफ़बोलतेहैं

कॉमरेडखानपहलेचद्दरबेचतेथे
घूम -घूम  गाँव -गाँव
अबबेटेकमानेलगेतो
होलटाइमरहैंपार्टीके
उनकेसाथकेकईलोगोंनेपार्टीछोड़दी
कुछतोविधायकऔरमंत्रीभीबने
परकॉमरेडज़माखान
अपनीसियासीज़मीनपरखड़ारहे

वेबोलतेहैंतोगर्वीलेलगतेहैं
गोयाकबीरहों
जो'जस -कीतसचदरिया'रखचलदेंगे
कॉमरेडखानकोअपनीसियासतपरगर्वहै
वेहरकिसीकेसवालकाज़वाबदेतेहैं
संजीदाहोकर
गोयाहरसवालका
सटीकजवाबहोउनकेपास

कॉमरेडज़माखानकीमिमिक्रीकरतेहैं
शहरकेठेले-खोंमचेवाले
सैलूनकेनाई
वेमज़ाकमेंकियेसवालपरभीबोलतेहैं
संजीदाहोकर

कॉमरेडखानकीपार्टीकामहासचिव
भलेहीहोडाँवाडोल
क्रांतिकोलेकर
परकॉमरेडखानकेमनमें
नहींउपजीशंकाकभी
पलभरकेलिए
क्याकभीनगरमेंकिसीने
उदासहोतेनहींदेखा
कॉमरेडजमाखानको?

___________________________

चंद्रेश्वर
30 मार्च 1960 कोबिहारकेबक्सरजनपदकेएकगाँवआशापड़रीमेंजन्म.

कविता-संग्रह : 'अबभी'(२०१०), ‘सामनेसेमेरे'(२०१८) प्रकाशित
भारतमेंजननाट्यआन्दोलन'(1994), 'इप्टाआन्दोलन: कुछसाक्षात्कार'(१९९८)तथा 'बातपरबातऔरमेराबलरामपुर' (संस्मरण)प्रकाशित.
हिंदीकीअधिकांशसाहित्यिकपत्र-पत्रिकाओंमेंकविताओंऔरआलोचनात्मकलेखोंकाप्रकाशन।

संपर्क
631/58 ज्ञानविहारकॉलोनी,कमता,
चिनहट, लखनऊ,उत्तरप्रदेश
पिनकोड - 226028
मोबाइलनम्बर- 07355644658


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