Quantcast
Channel: समालोचन
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1573

कथा- गाथा : मिथुन : प्रचण्ड प्रवीर

$
0
0


























प्रचण्ड प्रवीर की कहानियों में अक्सर कथा के साथ कुछ ‘बुद्धि-विलास’ के सूत्र भी रहते हैं. वह अपनी कथा की जमीन को पुष्ट करने के लिए दर्शन या प्राचीन साहित्य से भी कुछ सामग्री लिए चलते हैं. यह उनके अध्यवसाय का भी परिचायक है. जो पाठक कथा से कुछ अतिरिक्त बौद्धिक ख़ुराक खोजते हैं उन्हें इससे तोष भी होता है.

मिथुन शीर्षक यह कहानी एक तो आकार में समुचित है मतलब  कहानी की तरह इसे आप एक सिटिंग में पढ़ सकते हैं. अंग्रेजी में कुछ सोच कर ही कहनियों को ‘शॉर्ट स्टोरी’ कहा गया होगा, हिंदी में पहले आकार में लम्बी कहानियों को उपन्यासिका या नॉवेलेट आदि कहा जाता था, पर इधर हिन्दी में न जाने क्यों कहानियों के नाम पर लम्बी कहानियों का ही ज़ोर है.

यह कहानी आर्थिक और सामजिक रूप से कमज़ोर एक बच्चे की है जो अपने दोस्त के जगने का इंतजार उसकी हवेली में कर रहा है. इस प्रतीक्षा में वह जिस अन्तर्द्वन्द्व और तनाव से गुजरता है ,उसका वर्णन  ही इस कहानी का हासिल है.




मिथुन                                   
प्रचण्ड प्रवीर



(मिथुन राशि के पुनर्वसु नक्षत्र में दो तारे हैं. प्राय: सभी प्राचीन सभ्यताओं में जुड़वां या युगल के रूप में इनकी कल्पना की गयी है. इन तारों के यूनानी नाम हैं – कैस्टर और पोलक्स. ये दोनों ज्यूपिटर और लेडा के पुत्र थे. ये दोनों अजेय योद्धा और अभिन्न साथी थे,इसलिये इनके पिता ज्यूपिटर (यानी बृहस्पति) ने इन्हें आकाश में एक-दूसरे के समीप स्थापित कर दिया था. ये दोनों अभिन्नता के प्रतीक माने जाते हैं.)




वाबों के नगर लखनऊ से कुछ पचास मील दूर बसे गाँव में राजेन्द्रनाथ सिंह की जमीन-जायदाद है. किसी ज़माने में इनके पूर्वज कई सौ एकड़ के मालिक थे. फिर घर-परिवार बढ़ा, साथ ही झगड़ा-तकरार भी बढ़ा. बँटवारा होते-होते अब पच्चीस एकड़ की जमीन रह गयी है. खेती में ज्यादा कमाई नहीं रही. समय रहते इसे भाँप कर राजेन्द्रनाथ के दोनों बेटों ने अच्छी पढ़ाई कर के नौकरी कर ली, फिर बंगलौर-पुणे बस गए. बेटियों का ब्याह भी अच्छी जगह हो गया. तीन एकड़ में फैले विशाल पुश्तैनी हवेली में अब राजेन्द्रनाथ अपनी धर्मपत्नी और नौकर-चाकरों के साथ रहते हैं. धान-गेहूँ के बजाय जमीन के बड़े हिस्से पर सागवान उगा रखा है. सागवान की लकड़ी अच्छा मुनाफ़ा देती है.

राजेन्द्रनाथ जी की  चिन्ताएँ बाकी लोग की तरह अनन्त थी, पर इनमें दो प्रमुख चिन्ताएँ इस तरह थीं– 

उनके जाने के बाद इस जमीन जायदाद को कौन देखेगा. बड़ा लड़का सुरेन्द्र के लक्षण ऐसे नहीं लगते कि वो पुणे छोड़ कर वापस इस देहात में आ कर बसे. छोटे वाले लड़के से उम्मीद लगा रखी थी क्योंकि उसकी सैलेरी कम थी. जब अखबार में आईटी कम्पनियों में बड़े पैमाने पर छटनी की खबर देखते, उन्हें यह उम्मीद खुशी से भर देती कि बंगलौर की भीड़-भाड़ और बेकार नौकरी को छोड़कर या वहाँ से निकाल दिए जाने पर छोटा लड़का प्रमोद देर-सवेर वापस गाँव आ जाएगा. कई बार उन्होंने प्रमोद को यह सुझाव भी दिया कि ऐसी छोटी-मोटी नौकरी को लात मारो और यहाँ राजा बन कर रहो. राजेन्द्रनाथ जी की दूसरी चिन्ता थी -

एक पुराना पुलिस केस. जमीन के झगड़े में तैश में आ कर उन्होंने बंदूक उठा कर गोली चला दी थी. लोग उनकी भलमनसाहत नहीं देखते कि दुनाली से निकली गोली केवल छू कर गुज़र गयी थी. बदमाशों ने केस ठोक दिया. अब केस रफा-दफा करवाने में बड़ा लड़का जुटा रहा, जो अभी भी बंद नहीं हुआ है. उचित माध्यमों और बिचौलियों की मदद से दूसरी पार्टी को अच्छे से समझा दिया गया था कि अगली बार अगर गोली चली तो केवल छू कर नहीं निकलेगी. उनकी तरफ़ से एक गवाह था – किशोर लोहार. न जाने उसे कितने पैसे मिले या किसने कसम दी, उसने गवाही में ज्यों का त्यों बोल दिया था. बड़े लड़के के समझाने पर राजेन्द्रनाथ जी ने अपना गुस्से को दबा रखा था. किशोर लोहार को देख कर दाँत पीस कर रह जाया करते थे.


इन सब चिन्ताओं से उनकी धर्मपत्नी विमला देवी को कोई परवाह न थी. वह अपना पूजा-पाठ करतीं. पर्व-त्योहार में किशोर के घर भी बैना भिजवा देतीं.


गर्मी की छुट्टियों में सुरेन्द्र, प्रमोद और बहनें अपने बाल-बच्चों के साथ चार-पाँच दिन बिताने आने वाले थे. प्रमोद की शादी हुए दो साल लगे थे. अभी उसकी कोई संतान नहीं थी. सुरेन्द्र का सात साल का एक बेटा था. उसका नाम उदय था. होश सम्भाले पहली बार अपनी माँ, प्रमोद चाचा और चाची के साथ गाँव आया था. सुरेन्द्र को कुछ काम आ गया, इसलिए उसका कार्यक्रम आखिरी वक्त पर कुछ बदल गया. बहनें और उनके बच्चे भी एक दिन बाद आने वाले थे. इस हिसाब से उदय के पास गाँव में घूमने फिरने बात करने के लिए प्रमोद चाचा के अलावा कोई नहीं था.


गाँव आने के बाद उदय ने एक चीज गौर की. शहर और गाँव में अंतर. अंतर यह था कि शहर में चारो ओर घूम कर देखने पर भी कहीं ऐसा नहीं दीखता जहाँ आकाश-धरती कहीं मिलते हों. हर तरफ़ बिल्डिंग ही बिल्डिंग. गाँव में दूर तक फैले खेत. आकाश का विस्तार बहुत. क्षितिज पर आकाश और धरती मिल जाते नज़र आते. दूसरी चीज जिसने उदय को बहुत परेशान कर दिया था कि यहाँ बिजली हमेशा नहीं रहती. कोई एसी नहीं. बिजली नहीं तो टीवी नहीं चलेगा. मोबाइल भी चार्ज नहीं होगा. उदय को बड़ा तरस आया अपने पापा के बचपन पर.


तीसरी चीज उदय ने पहली बार देखा था, वह था घर का आँगन. सुबह-सुबह राजेन्द्रनाथ जी ने पण्डित बुला रखा था. उदय जब तक उबासी लेता हुआ आँगन में आया, उसकी दादी ने पण्डित जी से पूछा, “यही है हमारा बड़ा पोता. सुरेन्द्र का एक ही लड़का है. हम बोल रखे हैं बेटा-बहू को कि केवल एक से काम नहीं चलेगा. ये लोग मेरी बात सुनता कहाँ है. अब देखिए सात साल का हो गया है. एक भाई-बहन होना ही चाहिए था. इसका कुछ भविष्य बताइए.”



“इतना छोटा बच्चा का कुण्डली देख कर क्या कीजिएगा. अभी इसको रहने दीजिए.” पण्डित जी ने बात टालनी चाही. लेकिन उदय की दादी अड़ गयी, “सुबह-सुबह आए हैं. कुछ तो बताइए. मोटा-मोटी सही.”


“जातक मिथुन राशि का है. बहुत फुर्तीला और चतुर लड़का है. किसी काम में दिल नहीं लगाता होगा. हमेशा खुराफ़ात करेगा. कभी इधर-कभी उधर. अब इसका जन्मदिन आने वाला है न? इसके जन्मदिन पर कथा करवाइए. अच्छा फल देगा.”


इतना सुन कर उदय बाहर निकल भागा. इधर-उधर नज़र डालने पर दूर तक उसे कोई नज़र न आया. किस तरफ़ जाए? सुना है आस-पास कहीं तालाब भी है, जहाँ कमल के फूल खिलते हैं. उदय ने तरकीब लगायी और नाक की सीध में आगे बढ़ने लगा. चलते-चलते सागवान के पेड़ों के पास पहुँचा. उसे महसूस हुआ कि कोई उसे देख रहा है. किसी की निगाहें उसका पीछा कर रही हैं. उसने चौकन्ने हो कर नज़र डाली. दूर एक हमउम्र लड़का भागता हुआ दिखा. कौन था? उसे देख कर भाग क्यों गया?
धूप बढ़ने लगी थी, इसलिए उदय वापस घर लौट आया.


लाल ईंटों से बने किशोर लोहार के मकान की छत खपरैल की थी. तीन कमरों में उसके दो और भाई अपने भरे-पूरे परिवार के साथ किसी तरह गुजारा करते थे. किशोर के दो बेटे-बेटी थे– संगीता नौ साल की और संजय सात साल का. संजय को पता था कि उसका जन्मदिन आने वाला है, लेकिन उसके घर में जन्मदिन मनाने का कोई चलन नहीं था. संजय की दो इच्छाएँ बलवती थी. पहली यह कि किसी तरह उसके जन्मदिन पर उसके घर में भी केक आए और जलती मोमबत्तियाँ फूँक मार कर बुझा दे फिर केक काट कर खाए. इस विचार में सभी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उनके पूरे खानदान में किसी ने कभी केक नहीं खाया था. उसके जन्मदिन पर सब पहली बार केक खा सकेंगे. पर यह अभी सम्भव नहीं था, इसलिए जन्मदिन की योजना कुछ सालों के लिए मुल्तवी कर दी गयी थी. संजय की दूसरी ख्वाहिश थी – 


वह थी कार में घूमना. जब-जब राजेन्द्रनाथ के घर से कार निकलती, वह बड़ी हसरत से उसे देखा करता. यह भी नोट कर लिया जाए कि संजय के पूरे खानदान में किसी ने कार में कभी सफर नहीं किया. संजय पहला लड़का होगा जो कार में बैठेगा उसके बाद उसकी बहन संगीता, फिर उसकी माँ, फिर उसके पिताजी, फिर चचेरे भाई-बहन (अगर उन लोगों ने ढंग के कपड़े पहने हो, तो ही).

दोपहर होने से पहले, बाहर धूप में इधर-उधर दौड़ने के बाद संजय ने संगीता को बताया कि हवेली में ‘बाबू साहब’ आए हैं. उनके ही जितने बड़े हैं. संगीता ने सुन कर नाक-भौं सिकोड़ किया. “पैसे वाले बड़े लोग से दूर रहना चाहिए. इनका काम केवल गरीबों को सताना है.”  संजय यह सुन कर अपना मुँह बना लिया. संगीता कुछ समझती नहीं है और संगीता को समझाने का कोई फायदा नहीं होने वाला. किशोर लोहार ने अपनी पत्नी से कहा कि हवेली में घर-परिवार आ गया है. इसका मतलब उसकी दो चिन्ताएँ थी. पहली- गवाही वाले मामले में धमकाने वाले फिर से कुछ न कुछ बोलेंगे. कहीं कोई बवाल फिर न खड़ा हो जाए. कुछ ऊँच-नीच न हो जाए. दूसरी- भट्टी में इतना काम नहीं है. अगर लखनऊ में कोई काम मिल जाता तो अच्छा रहता. सुरेन्द्र बाबू कुछ मदद कर देते तो काम बन जाता. बचपन से देखा है. सहृदय आदमी हैं. अपने पिता की तरह नहीं हैं. गरीब का दर्द समझते हैं. लेकिन उनसे बात कैसी की जाए?


दोपहर के खाने के बाद से ही उदय ने चाचा से बाहर घूमने की रट लगा रखी थी. भयंकर गर्मी देख कर प्रमोद की हिम्मत नहीं होती. भले ही उदय बिना एसी के झल्ला रहा हो, पर इतनी लू में भी बाहर घूमने के खयाल में कोई कमी नहीं थी. माँ, दादी और चाची के मना करने के बाद भी उसके फैसले में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. उदय ने प्रमोद चाचा को अपना फैसला सुनाया कि अगर उन्होंने अपने मोटरसाइकिल से नहीं घुमाया तो मजबूरन उसे मोटरसाइकिल को खराब करना पड़ेगा. किस तरह खराब किया जाएगा, वह बाद में ही पता चलेगा. अभी बताया नहीं जा सकता. लगातार योजना, परियोजना, घात-प्रतिघात की बातें सुन कर प्रमोद ने अपना जी कड़ा किया और शाम चार बजे बाहर घुमाने का वादा किया.



पौने चार बजे से ही उदय चाचा की मोटरसाइकिल पर बैठ कर एक्सीलेटर पर हाथ आजमाने लगा. नज़र कमजोर होने के कारण हमेशा चश्मा पहनना उसकी मजबूरी थी. उदय ने सोचा कि जब वो बाइक चलाएगा तब केवल काले चश्में ही पहना करेगा. चार बजने के बाद प्रमोद ने हेलमेट उठाया और अपने पीछे उदय को बिठाया. देखते ही देखते उनकी मोटरसाइकिल हवेली से दूर निकल गयी.


दूर खेत में गेंद खेलता संजय मोटरसाइकिल की आवाज़ से चौंक पड़ा. कच्चे रास्ते को छोड़ कर प्रमोद की मोटरसाइकिल मैदान में उतर कर उसके पास आ गया. मोटरसाइकिल के पीछे से उदय ने संजय से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”

“संजय.”


प्रमोद ने उसके घर के बारे में पूछा. जवाब सुन कर प्रमोद ने कहा, ‘अच्छा तुम किशोर के बेटे हो!’ संजय ने हाँ में सर हिलाया. उदय ने पूछा, “तुम मेरे दोस्त बनोगे?” संजय अवाक रह गया. इससे पहले वह कुछ कहता-करता, उदय ने उसे बुलाया, “आओ मेरे पीछे बैठ जाओ. चाचा हमें तालाब ले कर जा रहे हैं.” संजय अपनी खुशी छुपाते हुए कुछ डरते हुए प्रमोद चाचा की मोटरसाइकिल पर चढ़ गया. उदय ने कहा, “मुझे पकड़ लो. गाड़ी तेज चलने पर डर लगेगा.” संजय ने बड़ी नाजुकी से उदय को पकड़ा. लेकिन जैसे ही प्रमोद की मोटरसाइकिल चली, उसने डर के मारे उदय को तेजी से जकड़ लिया.


अगले चार घंटे उदय और संजय ने तालाब देखे. संजय ने तालाब में उतर कर एक कमल का फूल भी तोड़ा. इसके बाद कमल का फूल लिए-लिए मोटरसाइकिल से बड़ी दूर निकल गए. रास्ते में पानी के छोटे नाले मिले. पुराने खण्डहर. टूटे शिवालय. फलों से लदे आम के पेड़. खजूर तोड़ते बच्चे. मोटरसाइकिल रोक कर प्रमोद किनारे बैठा रहा. संजय ने कुछ कच्चे पक्के खजूर ला कर दोनों को दिए. बातों बातों में उदय ने संजय को बताया कि जल्दी ही उसका जन्मदिन आने वाला है. कुछ सोच कर उसने यह भी बताया कि वह मिथुन राशि का है. संजय ने पूछा राशि क्या होती है? उदय ने बताया कि जन्मदिन के आधार पर बारह तरह के लोग होते हैं. हर राशि के लोग आपस में एक जैसे होते हैं. संजय ने अपने जन्मदिन की तारीख बतायी और कहा शायद वह भी मिथुन राशि का है. अपना जन्मदिन मालूम होने के बावजूद प्रमोद को अपनी राशि नहीं मालूम थी, यह जान कर उदय बहुत खुश हुआ. उसने हर जगह मोबाइल से बहुत सी तस्वीरें ली और फौरन अपने पिता जी के भेज दी. इस तरह वापस लौटते हुए उन्हें रात के आठ बज गए.


जब प्रमोद की मोटरसाइकिल संजय के घर के सामने रुकी, उदय ने संजय को कहा, “तुम मेरे दोस्त हो. कल सुबह हम फिर घूमने जाएँगे.” संजय की खुशी का पारवार न रहा. उसके दोनों सपने थोड़े-थोड़े पूरे हो सकते थे. उदय के जन्मदिन पर केक तो कटेगा ही, इसलिए केक खाने को मिल जाएगा. अब जब कल उदय के फुफेरे भाई-बहन आ जाएँगे तो वह कार में घूमेगा. संभव है कि उसे भी कार में घुमाए. यही बाते उसने संगीता को भी बतायी. संगीता ने उसके सर पर हाथ मार के कहा, “तुम बुद्धू हो. अमीर लोग ऐसे ही होते हैं. आज पूछ लिया है. कल शायद न पहचाने.”

संजय ने रूष्ट हो कर संगीता से कहा, “उसने कल सुबह मुझे बुलाया है.”

“बुलाया है?” संगीता ने पूछा.

“हाँ, बुलाया है.” संजय ने ढिठाई से कहा.

“किस समय?” संगीता ने पूछा तो संजय के पास कोई जबाव नहीं था.
 
संगीता ने दोबारा पूछा, “कोई वक्त नहीं बताया?”

संजय ने रोष मे आ कर कहा, “सुबह पाँच बजे.”

संगीता चौंकी, “पाँच बजे?”

“हाँ, सुबह पाँच बजे.” संजय अपने पाँव पटकता हुआ वहाँ से चला गया.


शायद रात भर नींद नहीं आयी थी. हल्की आँख लगती थी और बार-बार टूट जाती थी. संजय घर के बाहर ही सोया था और नींद खुलने पर बार-बार आकाश देखता रहता. जैसे ही पूरब में आसमान थोड़ा साफ होता नज़र आया, वह फौरन उठ खड़ा हुआ. घर में बाकी लोग सो ही रहे थे. सुबह के कामों से फारिग हो कर जब वह बाहर आया, तब तक माँ उठ गयी थी. संजय ने कहा, “हवेली जाना है. उदय ने बुलाया है.”

“इतनी सुबह?” उसकी माँ और कुछ कहती इससे पहले ही संजय उड़न-छू हो गया.


संजय ने आज तक हवेली के अंदर पाँव नहीं रखा था. वहाँ पहुँच कर हवेली के बंद गेट के पास खड़े हो कर वह सोचने लगा कि अब क्या कहा जाए? फिर सोचा, उदय अब तक तैयार होगा और सीधे उसकी मोटरसाइकिल पर बैठ कर घूमने जाना होगा. क्या पता वह देर हो गया हो. कहीं उसे छोड़ कर उदय और प्रमोद चाचा निकल तो नहीं गए? हिम्मत कर के उसने गेट खटखटाया.

उदय की दादी खूब सवेरे उठ कर पूजा-पाठ में लग जाती थी. अभी वह अहाते में फूल ही तोड़ रही थी कि सुबह-सुबह फाटक पर दस्तक से वह भी चौंक पड़ी.

“कौन है?” उसकी आवाज़ पर कोई जबाव नहीं मिला. अचकचाई सी उसने फाटक खोला. सामने किशोर लोहार का बेटा संजय खड़ा था.

“क्या है?” उसने डपट कर पूछा.ऐसी कड़क आवाज़ सुन कर संजय की आवाज़ में बड़ी कातरता आ गयी. उसने कहा, “दादी, उदय ने बुलाया था.”

“उदय ने?”

संजय में साहस वापस लौटा, “हाँ दादी, कल हमलोग प्रमोद चाचा की गाड़ी पर घूमने गए थे. उसने मुझे अपना दोस्त बना लिया है. आज सवेरे बुलाया है.”

“इतनी सवेरे बुलाया है?” उसने आश्चर्य से पूछा.

संजय का दिल धड़क गया. ”हाँ.”

दादी ने कुछ सोच कर कहा, “हाँ, हाँ बुलाया होगा. लेकिन गाँव में एसी कहाँ है? वो रात में देर तक जगा रहा था. अब जब उठेगा तो जाएगा कहीं. तुम बाद में आना.”

यह सुन कर संजय को जैसे मूर्छा आ गयी. घर गया तो संगीता को क्या कहेगा? माँ को क्या बोलेगा? यह सोच कर उसने कहा, “उसके उठने तक हम यहीं इंतजार करते हैं.”

विमला देवी को शहरी बच्चों की आदत मालूम थी. बहुत जल्दी हुआ भी तो नौ बजे. अब देर से सोया है तो दस क्या ग्यारह भी बज सकते हैं. वे संजय से बोली, “अभी उसको उठने में चार-पाँच घंटे लग सकते हैं.”संजय ने जीभ तालु से चिपक गयी. पाँव जमीन में गड़ गए. कुछ बोलते न बना. विमला देवी इतना कह कर फूल लिए अंदर चली गयी. जब बाहर पूजा के बर्तन धोने हैण्डपम्प के पास आयीं, तब भी संजय वहीं खड़ा था. “बात ही नहीं सुनता है. अरे उदय नौ-दस बजे तक उठेगा. तब तक यहाँ क्या करोगे? बाद में आना.”संजय से कुछ न बोला जाय. पूजा के बर्तन धुल गए. उदय की दादी अंदर पूजा करने चली गयी.


करीब एक घंटे के बाद जब उनकी पूजा खत्म हुयी, तब उन्होंने बाहर आ कर देखा. संजय वैसे ही बुत बना खड़ा हुआ था. विमला देवी ने यह देख कर अपना सर ठोंक लिया. “अच्छा, यहीं इंतज़ार करना है तो बता देते. ऐसे कब तक खड़े रहोगे. आओ, अंदर बैठो.” उदय की दादी के इतना कहते ही संजय उनके पीछे पीछे अहाते को पार कर के बैठक में आया. विमला देवी ने इशारे से अंदर बुलाया. आंगन में एक मोढ़ा दे कर बैठने को कहा. “बैठक में बैठोगे तो साहब जी गुस्सा करेंगे. तुम यहीं बैठो.”


तभी उधर से सफेद धोती पहने राजेन्द्रनाथ सिंह घूमते हुए आंगन में आए. अपनी रौ में बोलते रहे, “गैया दुहा गयी कि नहीं? सुनो जी, दोपहर तक जमाई बाबू और बच्चे आ जाएँगे.” उनकी नज़र संजय पर पड़ी. “कौन है ये?” फिर खुद ही संजय से पूछे, “कौन हो तुम जी?”

रौब-दाब वाले साहब जी से संजय काँप गया. मुँह से इतना ही फूटा, “हम उदय के दोस्त हैं.”

उधर से विमला देवी बाहर आयी और बोली, “अरे, यह किशोर लोहार का बेटा है. कल प्रमोद उसके गाड़ी पर घुमा दिया था. आज उदय इसको बुलाया है, इसलिए इंतज़ार कर रहा है.”

“उदय को सिखाई नहीं हो कि लोहार के बेटा से दोस्ती नहीं करते? दोस्ती दुश्मनी सब बराबर वालो के साथ होता है. सुरेन्द्र बाहर रह कर संस्कार भूल गया है. कुछ सिखाया ही नहीं होगा बेटा को. खैर, ऐसे ही गाँव आते रहेगा तो हम सिखा देंगे.” फिर संजय की तरफ़ देख कर बड़बड़ाए, “हम उदय के दोस्त हैं! अरे तुम क्या, हम भी उदय के दोस्त हैं. सारा ज़माना उदय का दोस्त है. हुह... हम उदय के दोस्त हैं!”


संजय चुपचाप सुनता रहा. आंगन में बैठा वह देखता रहा कि गाय दुहाने के बाद दूध कहाँ रखा जा रहा है. पूजा का प्रसाद बँट रहा है, पर उसे किसी ने नहीं पूछा. कुछ देर बाद उदय की माँ और चाची भी उधर से गुजरे. सवालिया निगाहों से देख कर आगे बढ़ गयीं. बैठक में कुछ लोग आए. वहाँ चाय पहुँचाया जा रहा है. नाश्ता पहुँचाया जा रहा है. बैठक से तेज़ आवाज़ रही है- “अगर बदमाश किशोर गवाही नहीं दिया होता तो केस कब का खत्म हो चुका होता.“ “एक-आध बार पिटवा दीजिए न.” “उन लोग अभी बीस चल रहे हैं.” “पकौड़ी बहुत स्वादिष्ट बना है साहब जी.”


मोढ़े पर बैठे संजय के पाँव दुखने लगे. अब तेज भूख भी लग रही थी. लेकिन घर जाए तो क्या बोलेगा? अभी अगर उदय उठ गया और पता चले कि संजय आ कर चला गया तो क्या सोचेगा? विमला देवी उधर से गुज़र रही थी और संजय को देख कर बोले, “हाय राम! इस लड़के ने कुछ न
हीं खाया.“


संजय को बहुत अच्छा लगा जब उसे एक छोटे गिलास में भर कर चाय दी गयी. अंदर से कुछ फुसफुसाहटें आयी. उसके बाद उसके लिए थाली में कुछ बिस्कुट भी आए. बिस्कुट खत्म करने के बाद एक बार फिर से गरम चाय उसके गिलास में भर दी गयी. उदय की चाची ने उदय की माँ को संजय की तरफ़ इशारा कर के कहा, “यह उदय का दोस्त है. उदय के उठने का इंतज़ार कर रहा है.”संजय को एकबारगी बड़ी शर्म आयी. खुद को समझाते हुए वह चुपचाप बैठा रहा. किसी ने उससे नहीं पूछा कि उसने कल किस जतन से खजूर तोड़े. किसी को क्या पता कि उसने तालाब में घुस कर कमल के फूल तोड़े. संजय खुद को समझाने लगा कि अगर उदय न होता तो वह क्या कर रहा होता? बाबू के भट्टी के लिए कोयला ला रहा होता. या किसी भैंसे की सवारी कर रहा होता.उससे अच्छा यहाँ आराम से बैठा है.

बैठक में शायद पण्डित जी आए हुए थे. किसी के विवाह की बात चल रही थी. संजय ने सुना कि लड़की पुनर्वसु नक्षत्र की है, यानी कि मिथुन राशि की. उसके मन में आया कि अगर उदय की माँ ने कुछ भी पूछा तो यह पहले बता दिया जाएगा कि उसका भी जन्मदिन आने वाला है. उदय और वह दोनों मिथुन राशि के हैं. लेकिन हाय, सुबह से बैठे-बैठे साढ़े तीन घंटे हो गए. किसी ने उससे फिर कुछ न पूछा.


जैसे थान में अनाथ बछड़ा को कोई नहीं पूछता, वैसे ही अब आते-जाते नौकर और लोग की नज़र उसे पार कर के चली जाती. किसी को मतलब नहीं है कि वह उदय का दोस्त है.

किसी का फोन आया और विमला देवी दौड़ी-दौड़ी साहब जी के पास गयी. साहब जी झट से कुर्ता पहन कर बाहर निकले. कोई मिलने आया था. वहाँ आवभगत होने लगी. संजय चुपचाप बैठा रहा. उठ कर वापस चला जाए? उदय से बाद में बात कर ली जाएगी. नहीं, थोड़ा और रुक जाते हैं. संजय ने दूर नज़र दौड़ा कर देखा. सामने वाले पहली मंजिल के कमरे में उदय सो रहा होगा. क्या खुद जा कर उसे उठा दिया जाए? नहीं, नहीं, लोग क्या कहेंगे? अभी तो उसके बाबू जी को पीटने की बात कर रहे थे. क्या पता उसे भी चोर समझ ले. उदय न समझेगा. दोस्त है न!

दस बजने को आए. संजय को बैठे-बैठे पाँच घंटे हो गए थे. अचानक घर में गहमागहमी बढ़ गयी. द्वार पर कुछ गाड़ियाँ आ लगी. उदय की बुआ और उसके फुफेरी बहनें आ गयी. उदय की माँ और चाची गले लगने लगीं. हँसी-ठहाके लगने लगे. संजय मोढ़े पर से उठा और दरवाजे तक जा कर उन लोग का गले मिलना देखता रहा. उसे ऐसे देखता देख कर उदय की दादी बोली, “ऐ संजय. जाओ, सामने वाले घर के पहली मंजिल पर उदय सो रहा होगा. उसको उठा कर बोलो की फुआ आ गयी है. उसको ले कर आना.”

यह सुनते ही संजय में अद्भुत उत्साह का संचार हुआ. झट से वह अंदर आंगन को पार करते हुए सामने वाले घर में सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उदय के रूम में दाखिल हुआ.


उदय अभी तक सो रहा था.


संजय ने अपने दोस्त को हलके से झिंझोड़ा, “उदय, उदय. उठो.” उदय ने उबासी लेते हुए अंगड़ाई ली. “अरे तुम!” वह खुशी से फूला न समाया. “तुम कब आए?”

संजय ने खुशी से बताया, “सुबह पाँच बजे से तुम्हारे उठने का इंतज़ार हो रहा है. लेकिन अभी तुम्हारी फुआ आयी हैं और तुम्हारी फुफेरी बहनें.”


“क्या? रश्मि दीदी आ गयी?” उदय खुशी से उछल पड़ा. वह बिस्तर से उतर कर भागा. संजय उसके पीछे-पीछे भागता हुआ नीचे सीढ़ी उतरा. लेकिन उदय कुछ ज्यादा ही तेज था. संजय भागते-भागते ठोकर खा कर गिर पड़ा. लेकिन तब तक उदय बहुत आगे निकल चुका था. उठ कर धूल झाड़ते हुए जब तक संजय दरवाजे तक आया, उसने देखा कि उदय अपनी फुफेरी बहनों से बातें कर रहा था. उनके पास पहुँच कर संजय कुछ देर तक चुपचाप खड़ा रहा.


उदय की जब उस पर नज़र पड़ी उसने झट से कहा, “अरे सुनो. आज मैं रश्मि दीदी और नीलम के साथ खेलूँगा. तुम कल सुबह आना फिर हमलोग घूमने चलेंगे.”

संजय का दिल एकदम से बुझ गया. उसे फिर संगीता की बात याद आयी. जी कड़ा कर के उसने पूछ लिया, “कल सुबह कितने बजे!”

संजय की आवाज़ रश्मि और नीलम के ठहाकों में दब गयी. उदय ने रश्मि और नीलम को अपने मोबाइल पर कुछ दिखा रहा था. संजय चुपचाप अपने कदम पीछे करता हुआ धीरे धीरे फाटक की ओर बढ़ गया.


फाटक से बाहर निकल कर बड़ी तेजी से अपने घर की तरफ़ दौड़ पड़ा. अगर उदय भूले से भी आवाज़ दे तो उसकी आवाज़ उसके कानों में न पड़े. दौड़ते -दौड़ते उसका दिल बैठने लगा. उसे संगीता की बात याद आयी – “
अमीर लोग ऐसे ही होते हैं. आज पूछ लिया है. कल शायद न पहचाने.“


घर पहुँच कर वह इधर उधर बाहर ही टहल रहा था कि संगीता ने उसे अंदर बुलाया.
“क्या हुआ? कहाँ गए घूमने?” अंदर आते ही पहला सवाल.

संजय ने कहा, “शहर के लोग ज्यादा घूम नहीं सकते न. इसलिए घर पर बैठ कर लूडो खेल रहे थे.”

“दो लोग में?”

“केवल लूडो नहीं मोबाइल पर वीडियो गेम भी होता है. तुमको सब थोड़े ही पता है.” संजय ने परेशान हो कर झल्लाते हुए कहा. संगीता ने उसे अनसुना करते हुए कहा, “कुछ खाए तो नहीं होगे. अब तुम नहीं आते तो माँ तुम्हें खाने के लिए बुलाने ही वाली थी. खाना खा लो फिर कहीं जाना खेलने.”

संजय ने कहा, “नहीं अब शायद खेलने न जाऊँ.”

“क्यों जी भर गया?” संगीता ने पूछा.

“जिसे खेलना है वह मेरे पास आएगा. मैं क्यों जाऊँ किसी और के पास.” संजय ने तुनक कर कहा. संगीता कुछ न बोली.


शाम में संजय अपने घर के पास कंचे से खेल रहा था कि दूर से एक बड़ी कार आती दिखाई दी. संजय झट से उठ कर अंदर जाने लगा. गाड़ी के रूकते ही अंदर से उदय निकला और उसने आवाज़ लगायी, “दोस्त. हमें तालाब घुमाने नहीं ले चलोगे?” संजय ने घर की चौखट पर से बाहर देखा. प्रमोद चाचा ड्राइवर की सीट पर थे. अंदर से रश्मि और नीलम उसे देख कर मुस्कुरा रहीं थी.
(विष्णु खरे द्वारा संपादित इन्द्रप्रस्थ भारती के नये अंक में भी प्रकाशित')
*******
prachand@gmail.com


Viewing all articles
Browse latest Browse all 1573

Trending Articles