मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू के साथ फ़ारसी के भी महान शायर हैं. आहत और विद्रोही. बकौल अली सरदार ज़ाफरी ग़ालिब ने खुद को ‘गुस्ताख़’ कहा है.
इस अज़ीम शाइर की शायरी के हज़ार रंग हैं, उनमें से एक रंग मर्दों के बीच की आपसी ऐंद्रिकता को भी रौशन करता है. अब यह हाय तौबा की बात नहीं रही. समाज और कानून दोनों इसके प्रति सहज हो रहे हैं.
सच्चिदानंद सिंहने बड़ी मशक्कत से तमाम स्रोतों को खंगालते हुए इस समलैंगिकता की जड़े तलाश की हैं इसकी रवायत लगभग सभी संस्कृतियों में है. उर्दू शायरी इस लिहाज़ से समृद्ध है. इसके दो बड़े शाइरों मीर और ग़ालिब में यह इश्क खूब नुमाया हुआ है. फिलहाल महान ग़ालिब की शायरी में सच्चिदानंद सिंहने इस ‘अम्रदपरस्ती’ को सामने रखा है.
यह दिलचस्प आलेख आपके लिए.
समलैंगिक कामुकता की रवायत और ग़ालिब
सच्चिदानंद सिंह