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महेश वर्मा की कविताएँ













महेश वर्मा का पहला कविता संग्रह धूल की जगहइसी वर्ष राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है.  २१ वीं सदी की हिंदी कविता के वह एक प्रमुख कवि हैं.

नींद और रात को लेकर उनकी कुछ नई कविताएँ  प्रस्तुत हैं.  इन्हें प्रेम कविताएँ कहना एक तरह का सरलीकरण होगा.  ये कविताएँ स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों की तरह ही जटिल हैं और यौनिकताकी ही तरह हिस्र मादक.   





महेश   वर्मा   की   कविताएँ                  





नींद की कमीज़

नींद की कमीज की बाहें लंबी हैं, कांख पर सिलाई उधड़ी हुई, वहाँ से झांकते हैं रात के चांद सितारे. जेब में अफ़साने भरे हैं लोरियां आंसू और थपकियां खत्म हो चुके. कमीज का रंग आसमानी है, थोड़ा उड़ा हुआ सा और पुरातन. इसके लिए धागे तैयार करने में कोई नहीं सिसका था. इसकी तासीर इतनी ठंडी है कि विश्वासघात के शिकार प्रेमी भी इसे पहन कर चैन की नींद सो सकते हैं. ऊंचाई से गिरने और किसी गफ़लत में कत्ल कर दिए जाने के डरावने सपने पहली ही धुलाई में, बह गए थे मोरी से बाहर.






नींदकीशमीज़

नींदकीशमीज़अन्यपुरुषकीवासनाकोजगासकतीहै. इनवक्षोंकोचूमाहीजानाचाहिएथा, इसदेहगंधमेंडूबाहीजानाचाहिएथा, यहसूतीकाकोमलस्पर्शनथुनोंमेंभराहीजानाचाहिएथा, इसअपनीस्त्रीकोसोनेनहींहीदियाजानाचाहिएथा.
यहफिरभीएकभिन्नवस्त्रहै, स्त्रीकेसबसेनिजीसपनेऔरसबसेनिजीपसीनेकीगंधभरीहैइसमें.
इसेतारपरउदाससूखतादेखकरआपइसमेंखौलतीकामनाकाअनुमानकभीनहींलगापाएंगे.

by Julia H.



नींद की चादर

नींद की चादर पर सबसे कोमल नींद के तकिए रखे हैं. तकियों में तेल की खुशबू नहीं है न नीचे कोई हेयर पिन रखा है, सिर्फ एक पैर का का पायल जरूर यहां मौजूद है अपना ठंडा चांदी का बदन समेटे.

                             चादर पर सिलवटें कम हैंआसमान अधिक.

                             चादर पर करवटें कम है, आसमान अधिक.

                             चादर पर उदासियाँ कम हैं, आसमान अधिक.



इसका सफ़ेद रंग रात की देह पर अधिक सोहता है. इसके नज़दीक जाने से पहले पानी पास रख लो वरना नींद की रेत पर प्यास से तड़पते, तुम्हारी देह रात के सभी तिलस्म तोड़-फोड़ देगी.


इस चादर के पास अपना जादू है, अपना रहस्य है और अनेक यौनिक संस्मरण.
इसे अब बुन ही लिया जाना चाहिये.





नींदकेबाहर

ऐसेहीनींदकेबाहरबैठेरहोचुपचाप. नींदकीरखवालीकरो. बसबुरेख़्वाबोंकोनींदसेबाहररोकलेनाऔरसांसकीलयपरकोईरागतैयारकरलेना. ख़ूबसूरतख़्वाबोंकेभीतरचुपकेसेझांकलेनातबनींदकेदरवाज़ेकेभीतरजानेदेना. थोड़ीदेरकोयेचाँदनीबुझादो, जबमुझेगाढ़ीनींदजायेतबफ़िरइसकीरौशनीतेज़करदेना. अभीबुझादोऐसेहीबैठेरहोचुपचाप. देवताकीराहमेंमारेगएहरजानवरकाख़ूनमेरीनींदपरटपकताहैतुमउसेपहलेहीअपनीजीभपरलेलेना. सुबहतुम्हेंसबसेपवित्रनदीमेंनहलाकर, माथेपरभस्ममलकरविदाकियाजायेगा.





रात की चाबी


ये मेरी नींद में कौन सी चाबी ढूंढ रहे हो तुम लोग? इतनी रात कौन सा ताला खोलना है? अभी सो जाओ. रात जब अपने आप को बंद कर लेती है तभी उसके भीतर नींद पकती है, अभी सो जाओ.

रात की चाबी प्रिया के पास है.

रात की चाबी प्रिया के पास है, उसकी सुंदर कमर और  सुंदर करधनी के बीच संगीत सुनती, अपना चुप बनाए रखती, वहीं है.

रात घर है तो उसके तीन दरवाजे तीन ओर खुलते हैं, चांद की ओर तारों की ओर और चुप की ओर. मुझे उस रात वहां सपनों का दरवाजा मिला ही नहीं.



रात के रहस्य


रात के जलसे में जो भी आए थे, रात के रहस्य उन सबके पास हैं टुकड़ा-टुकड़ा। पड़ोस की नदी, रात की हवाएं, चांद, प्रिया के नयन किसी से पूछ लो. सब के पास हैं टुकड़ा-टुकड़ा. इन टुकड़ों को सही सही जगह जोड़ना. क्रम भंग से कथा बदल जाएगी.







रात से पहले


रात से बहुत पहले रात के उत्सव शुरू हो चुके थे जैसे बहुत ठंडे पानी से नहाना और बेवजह मुस्कुराना. टेलीफोन घंटे से अपनी धड़कनों को बांध देना फिर उसी धड़कन की आवाज से खुद ही चौंक जाना.

रात तुम क्या-क्या लेकर आओगी, बताओगी या रहस्य ही रहने दोगी?

रात से पहले सुरमा लगाया जाता है, रात से पहले चंद्रमा को खुला छोड़ दिया जाता है.

रात से पहले गिन लो साँसें.

नमक और आंसुओं का हिसाब लिख लो, अचानक धड़क पड़ेगा दिल ये बेहिसाब,

लिख लो.
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महेश वर्मा
३० अक्टूबर १९६९, अंबिकापुर (छ्त्तीसगढ)
 ई-पता : maheshverma1@gmail.com

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