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मीमांसा : मार्क्स की प्रासंगिकता और हमारा वर्तमान : अच्युतानंद मिश्र















कार्ल मार्क्स (5 May 1818-14 March 1883):  कार्ल मार्क्स मूलतः दार्शनिक थे, जिनकी चिंता समाज को समझने के साथ उसे बदलने की थी. धर्मों के उदय, प्रभाव और प्रभुत्व के बाद  मार्क्स की सोच ही वह संगठित विचारधारा थी जिसने पूरे विश्व को गहराई से प्रभावित किया. समाज के विकास को उसकी अर्थनीति से समझने के उनके फलसफे ने मनुष्य निर्मित प्रत्येक वस्तु पर तार्किक पुर्नविचार की जरूरत पैदा कर दी थी. श्रमिकों के जीवन में बदलाव के उनके उद्देश्य ने पूंजी और श्रम के शोषणमूलक रिश्ते को हमेशा के लिए बदल दिया.   

आज मार्क्स होते तो २०० वर्ष के होते. वह तो नहीं हैं पर उनकी विचारधारा है. पूंजीवाद अब दलाल पूंजीवाद में बदलकर हमारे सामने खड़ा है और अंधधार्मिकता तथा अंधराष्ट्रवाद के साथ मिलाकर इस धरती के अस्तित्व के लिए खतरा बन चुका है.

क्या हमारी वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए मार्क्स के बाद के दार्शनिकों ने मार्क्सवाद का विकास किया है.

साहित्य और दर्शन के गम्भीर अध्येता अचुतानंद मिश्र ने इसी विकास प्रक्रिया को परखा है.       

मार्क्स  की  प्रासंगिकता  और  हमारा  वर्तमान                           
अच्युतानंद मिश्र


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