रंग -राग : ईदा (Ida) : विष्णु खरे
विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में इतिहास और भूगोल की यात्रा करती 2013 के आस्कर से सम्मानित पावेल पाव्लिकोस्की की पोलिश फिल्म ‘’ईदा’’कई कारणों से चर्चा में है. इस फ़िल्म के सभी पहलुओं को टटोलता विष्णु खरे का...
View Articleमंगलाचार : लोकमित्र गौतम
लोकमित्र गौतम का पहला कविता संग्रह मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊँगा .. प्रकाशित हुआ है.गौतम की कवितायेँ आकार में अपेक्षाकृत बड़ी है. लम्बी कविताओं को साधना मुश्किल काव्य-कला है, वे कितना सफल हुए हैं...
View Articleपरख : सत्येन कुमार : पितु मातु सहायक स्वामी सखा (सुनील सिंह) : अर्पण कुमार
सत्येन कुमार : पितु मातु सहायक स्वामी सखा :: सुनील सिंहप्रकाशक : यश पब्लिकेशंस/1/11848, पंचशील गार्डन, नवीन शाहदरा/दिल्ली 110032 /संस्करण : 2014 /मूल्य : रु. 295 चर्चित कथाकार सत्येन के संस्मरणों पर...
View Articleसहजि सहजि गुन रमैं : अजय सिंह
अजय सिंहचार दशकों से कवितायेँ लिख रहे हैं. उनका पहला कविता संग्रह – ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’इस वर्ष गुलमोहर प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. अजय सिंह गोरख पाण्डेय, पाश, नागार्जुन, आलोक धन्वा, शमशेर बहादुर...
View Articleरंग-राग : एन . एच. -१० और ऑनर किलिंग : जय कौशल
निर्देशक नवदीप सिंह की हिंदी फ़िल्म ‘एन.एच.-१०’ ऑनर किलिंग’के मुद्दे को गम्भीरता से उठाती है. इस फ़िल्म पर समालोचन में आपने सारंग उपाध्याय का लेख पढ़ा है. जय कौशल की टिप्पणी कुछ जरूरी सवालों के साथ.ऑनर...
View Articleपरख : मुअनजोदड़ो : माधव हाड़ा
जनसत्ता के संपादक और लेखक ओम थानवी को उनकी यात्रा-विचार पुस्तक ‘मुअनजोदड़ो’ के लिए २०१४ के २४ वें बिहारी पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा हुई है. क्या है मुअनजोदड़ो ? प्रो. माधव हाड़ा ने इस किताब के...
View Articleपरख : हत्या की पावन इच्छाएँ (भालचन्द्र जोशी) : राकेश बिहारी
प्रेम,प्रकृति और पुनर्वास का त्रिकोण राकेश बिहारी यथार्थऔर कला हमेशा से हिन्दी कहानी में दो स्कूल या शैली की तरह ही नहीं बल्कि परस्पर प्रतिद्वंद्वी रचनात्मक धाराओं की तरह आमने-सामने होते रहे हैं....
View Articleमेघ - दूत : गुंटर ग्रास : विष्णु खरे
महान जर्मन लेखक गुंटर ग्रास का (१६ अक्तूबर १९२७ - १३ अप्रैल २०१५) भारत से गहरा रिश्ता था. उनकी विख्यात कृति ‘त्सुंगे त्साइगेन’ (show your tongue)कोलकाता को केंद्र में रखकर रची गयी है. इसका अनुवाद...
View Articleसबद - भेद : मेरीगंज का पिछडा समाज : संजीव चंदन
हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास ‘मैला आँचल’ स्वीकृत है. १९५४ में प्रकाशित यह उपन्यास अपनी चेतना, आंचलिक – रागाताम्कता, रोचकता, मार्मिकता और लोक-संस्कृति के लिए आज भी पढ़ा जाता...
View Articleसहजि सहजि गुन रमैं : पंकज पराशर
सूजा की कृतिपकंज पराशर का मैथिली में एक कविता –संग्रह प्रकाशित है. इसके साथ ही आलोचना और अनुवाद की कई किताबें प्रकाशित हैं, हिंदी में भी कविताएँ लिखते हैं. सत्ता का आतंक, अहंकार और अतिरेक इन कविताओं के...
View Articleसबद - भेद : विज्ञापन में स्त्रियाँ : राकेश बाजिया
विज्ञापनों ने हमारे आस-पास अपनी चमकीली चुस्त दुनिया का एक घेरा बना लिया है. हम उसमें चाहते न चाहते हुए भी रहते हैं. सुबह के अख़बार से शुरू होकर देर रात टी.वी. बंद होने तक हम इसके नागरिक हैं. हमारे...
View Articleपरिप्रेक्ष्य : अखिल भारतीय हिंदी कथा समारोह (पटना , २०१५)
तीन दिवसीय ‘अखिल भारतीय हिंदी कथा समारोह’ पटना में कथाकारों, आलोचकों, श्रोताओं और दर्शकों का जमावड़ा लगा था. भूकम्प के झटकों के बीच सम्पन्न हुए इस समारोह के सभी सत्रों की रिपोटिंग की है युवा कथाकार...
View Articleसबद भेद : १९ वीं शताब्दी का भारतीय पुनर्जागरण : नामवर सिंह
फोटो द्वारा अरुण देव व्याख्यान सुनने (यहाँ पढने) का फायदा यह है कि आप एक बैठकी में ही व्याख्याता के वर्षों के अध्ययन, शोध और निष्कर्षों से सामना कर पाते हैं. व्याख्यान अगर नामवर सिंह जैसे बहुपठित का हो...
View Articleसबद - भेद : नामवर सिंह और भारतीय पुनर्जागरण : आशुतोष कुमार
‘उन्नीसवीं सदी का भारतीय पुनर्जागरण : यथार्थ या मिथक’नामवर सिंह के इस व्याख्यान ने जहाँ पर्याप्त ध्यान खींचा है वहीं इसने कई प्रश्न भी खड़े कर दिए हैं. यह नामवर सिंह की बौद्धिक उपस्थिति का भी प्रमाण...
View Articleरंग - राग : एक छपे रिसाले के लिए विलम्बित मर्सिया : विष्णु खरे
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ग्रुप की मुंबई से 1951 में शुरू हुई अंग्रेजी की फ़िल्म – पत्रिका ‘स्क्रीन’ के प्रिंट संस्करण के बंद होने की खबर है. ‘स्क्रीन’ कुछ उन पुरानी पत्रिकाओं में है जो धीरे- धीरे परिवार का...
View Articleअन्यत्र : अंडमान : रामजी तिवारी
‘अन्यत्र’ के अंतर्गत ‘थाईलैंड’ और ‘लद्दाख’ पर रामजी तिवारी के यात्रा संस्मरण आप पढ़ चुके हैं. अंडमान की इस यात्रा में केवल यात्रा ही नही इतिहास और वर्तमान भी है. रामजी तिवारी ने अंडमान की यात्रा केवल...
View Articleमैं कहता आँखिन देखी : प्रत्यक्षा
इधर की हिंदी कहानियों में बतौर कथाकार प्रत्यक्षा खास मुकाम रखती हैं. उनकी कहानियों की बुनावट में धागे अलग रंग के हैं, और ‘प्लाट’ की मिट्टी अलहदा है. कथा के अलावा प्रत्यक्षा कवितायेँ भी लिखती हैं.,...
View Articleसहजि सहजि गुन रमैं : अच्युतानंद मिश्र
“महाभारत मात्र एक ऐतिहासिक महाकाव्य नहीं है. उसमे वर्तमान भी है. हम सबका वर्तमान. वर्तमान के गर्भ से भविष्य निकलता है और इस अर्थ में हम सबके इस महाभारत में यानि हमारे वर्तमान में,एक भविष्य मौजूद है.एक...
View Articleसबद भेद : कैलाश वाजपेयी : ओम निश्चल
'जो आदमी-आदमी के बीच खाईं होंऐसे सब ग्रंथ अश्लील कहे जाएं'‘गत एक अप्रैल को हिंदी के जाने माने कवि चिंतक कैलाश वाजपेयीनहीं रहे. साठोत्तर हिंदी कविता में जिस मोहभंग और विक्षुब्धता का बोलबाला रहा हैऔर...
View Articleरंग - राग : पीकू (Piku) : सारंग उपाध्याय
'विकी डोनर'और'मद्रास कैफे'के बाद शूजीत सरकार की फिल्म 'पीकू'राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी हुई है. इस संवेदनशील फ़िल्म की बारीकियों से आपका परिचय करा रहे हैं फ़िल्म समीक्षक सारंग...
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