गंगा प्रसाद विमल : देसज सहजता के प्रतीक पुरुष : प्रमोद कुमार तिवारी
कवि, कथाकार, आलोचक, शिक्षक गंगा प्रसाद विमल (जन्म :1939 उत्तरकाशी) की श्री लंका में सड़क दुर्घटना में पुत्री कनुप्रिया, नाती श्रेयस और वाहन चालक के साथ मृत्यु ने हिंदी जगत को विचलित कर दिया है. वह जब भी...
View Articleरोशनी का सफ़र (संगीता गुप्ता) : ज्योतिष जोशी
प्रेम और प्रतीक्षा का विन्यास ज्योतिष जोशीसंगीता गुप्ता जितनी संवेदनशील कवयित्री हैं, उतनी ही भाव प्रवण चित्रकार भी. उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हैं जिनमें-...
View Articleमलय की कविताएँ
‘क्या यह आग पीकर जीने का जलता हुआ समय है?’मुक्तिबोध के मित्र रहे नब्बे वर्षीय मलय (जन्म: 19 नवम्बर, 1929,जबलपुर) इस समय हिंदी के सबसे सीनियर रचनारत कवि हैं. ‘हथेलियों का समुद्र', 'फैलती...
View Articleजंगल में फिर आग लगी है : विमल कुमार
वरिष्ठ कवि विमल कुमार का नया संग्रह 'जंगल में फिर आग लगी है'उद्भावना से प्रकाशित हुआ है. जिसकी भूमिका कुमार अम्बुज ने लिखी है. यह भूमिका और कुछ कविताएँ प्रस्तुत हैं.उत्तराधिकार में प्राप्त प्रतिपक्ष...
View Articleमंगलाचार : मंजुला बिष्ट की कविताएँ
मंजुला बिष्ट उदयपुर (राजस्थान) में रहती हैं, उनकी कविताएँ यत्र-तत्र प्रकाशित हो रहीं हैं. उनके पास पहाड़ की स्मृतियाँ हैं और समय के प्रश्न. उनकी कुछ कविताएँ आपके लिए. मंजुला बिष्ट की कविताएँ...
View Articleमैं और मेरी कविताएँ (७) : तेजी ग्रोवर
“कविता क्यों” उर्फ़“और है भी क्या करने को?”मैं लिखती हूँ क्योंकि मेरे पास कुछ न करने की ताक़त नहीं है.-- मार्ग्रीत ड्यूरासएक)कभी लगता है इस प्रश्न पर अलग से विचार किया ही नहीं जा सकता कि कविता क्यों...
View Articleहरिवंशराय बच्चन : कवि नयनों का पानी : पंकज चतुर्वेदी
हरिवंशराय बच्चन की कविता के प्रशंसकों में अज्ञेय, शमशेर बहादुर सिंह और रघुवीर सहाय जैसे कवि शामिल हैं वहीँ प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह का मानना था कि 'बच्चन की कविता में जितनी हाला है, उतनी सामान्य जीवन...
View Articleमैं और मेरी कविताएँ (७) : तेजी ग्रोवर
“कविता क्यों” उर्फ़“और है भी क्या करने को?”मैं लिखती हूँ क्योंकि मेरे पास कुछ न करने की ताक़त नहीं है.-- मार्ग्रीत ड्यूरासएक)कभी लगता है इस प्रश्न पर अलग से विचार किया ही नहीं जा सकता कि कविता क्यों...
View Articleविजयदेव नारायण साही : एक कुजात मार्क्सवादी आलोचक : गोपेश्वर सिंह
साही : एक कुजात मार्क्सवादी आलोचक गोपेश्वर सिंह विजयदेव नारायण साही (7 अक्टूबर 1924 - 5 नवंबर 1982) जितने महत्वपूर्ण कवि थे, उतने ही महत्वपूर्ण आलोचक भी. अपने आलोचनात्मक लेखन और बहसों के...
View Articleस्त्री चिंतन की चुनौतियाँ : रेखा सेठी
जिसे हम स्त्री-लेखन कहते हैं उसमें अस्मिता और चेतना के साथ-साथ अनुभव का प्रामाणिक संसार और भाषा की नई उड़ान भी है. स्त्री लेखन पर रेखा सेठी पिछले कई वर्षों से शोध और संकलन का कार्य कर रहीं हैं....
View Articleविजयदेव नारायण साही : एक कुजात मार्क्सवादी आलोचक : गोपेश्वर सिंह
जायसी के विशुद्ध कवि की पहचान और यह कहना कि अगर वे सूफी हैं भी तो कुजात सूफी हैं और हिंदी कविता में लघु मानव की अवधारणा, इसके लिए विजयदेव नारायण साही हिंदी के अकादमिक जगत में चर्चित और विवादास्पद तो...
View Articleमारीना त्स्वेतायेवा : युग और जीवन : प्रतिभा कटियार
ख्वाब में मुलाकात प्रतिभा कटियारकहते हैं सबसे मुश्किल होता है उन चीजों के बारे में लिखा जाना, जिन्हें हम प्यार करते हैं. मैंने इस मुश्किल को शिद्दत से महसूस...
View Articleमंगलाचार: प्रीति चौधरी की कविताएँ
कविताएँ अपनी जमीन से अंकुरित हों तो उनमें जीवन रहता है, अपने परिवेश से जुड़ कर उनमें स्थानीयता का यथार्थ-बोध, भाषा-बोली भी आ जाती है. प्रीति चौधरी की कविताओं में स्त्री का दुःख ग्लोबल होने से पहले लोकल...
View Articleमारीना त्स्वेतायेवा : युग और जीवन : प्रतिभा कटियार
ख्वाब में मुलाकात प्रतिभा कटियारकहते हैं सबसे मुश्किल होता है उन चीजों के बारे में लिखा जाना, जिन्हें हम प्यार करते हैं. मैंने इस मुश्किल को शिद्दत से महसूस...
View Articleकथा-गाथा : जर्मन परफ्यूम : पल्लवी
पल्लवी ने जर्मन भाषा और साहित्य में शोध कार्य किया है. यह कहानी भी जर्मनी के एक शहर की पृष्ठभूमि में घटित होती है. आकार में छोटी है और असर करती है. जर्मन परफ्यूमपल्लवीअंग्रेजी भाषा की क्रिया "to heal...
View Articleपरख : तुमड़ी के शब्द (बद्री नारायण) : सदाशिव श्रोत्रिय
राजकमल से प्रकाशित बद्री नारायण के नवीनतम कविता संग्रह 'तुमड़ी के शब्द'की समीक्षा सदाशिव श्रोत्रिय कर रहें हैं. बद्री नारायणतुमड़ी के शब्दों का अंतर्लोक...
View Articleपरख : वैधानिक गल्प (चन्दन पाण्डेय) : श्रीकान्त दुबे
धधकते वर्तमान का आईना है उपन्यास ‘वैधानिक गल्प’श्रीकान्त दुबेचंदन पांडेय के नवलिखित और पहले ही उपन्यास ‘वैधानिक गल्प’ का वाचक नैतिक पशोपेश की अवस्था में एक जगह सोचता है कि, ‘‘उन सिपाहियों के...
View Articleविश्व हिंदी दिवस : राहुल राजेश
सन दो हजार उन्नीस में हिंदी और आगे राहुल राजेशएक विभागीय प्रशिक्षण के सिलसिले में बहुत दिनों बाद इस...
View Articleकेरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य : बजरंग बिहारी तिवारी
केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य बजरंग बिहारी तिवारी केरल की समाज व्यवस्था कई मामलों में शेष भारत से भिन्न रही है. यहाँ की जाति प्रथा अपनी जड़ता, क्रूरता और...
View Articleहिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति (अभय कुमार दुबे) : नरेश गोस्वामी
हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीतिप्रदत्त विमर्श से सवाल पूछने का साहस नरेश गोस्वामी अभय कुमार दुबे की यह किताब एक ऐसे वक़्त में आई है जब भारत की बाहरी और भीतरी पहचान के परिचित...
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