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अदम गोण्डवी : मुक्तिकामी चेतना का कवि : आनन्द पाण्डेय

(फोटो आभार : वीरेन्द्र गुसाईं) ‘भूख के अहसास को शेरो सुखन तक ले चलो.या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो.’(अदम गोंडवी) वरिष्ठ और महत्वपूर्ण आलोचक मैनेजर पाण्डेय ने अदम गोंडवी की कविता पर लिखा है–...

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लव - जेहाद : आनंद बहादुर

 ‘अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं.’ तो ‘लव’ को सरकारी  परीक्षा पास करनी होगी कि वह जेहाद नहीं है. हालाँकि कभी  इश्क ही कुफ्र हुआ करता था अर्थात धर्म विरुद्ध क्रिया-कलाप. नहीं तो मीर को क्यों कहना पड़ता...

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बिजली का स्वाद :अभिनव यादव

 बिजली का स्वादअभिनव यादव  पाइप के सहारे इमारत पर चढ़ते-चढ़ते उसे ऐसा लगता रहा था कि वो इमारत को छू रहा है. पाइप के दोनों तरफ़, एक दूसरे को देखती हुई, इमारत के गुस्लख़ानों की खिड़कियाँ थीं. खिड़कियों को...

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मैं भी अश्वत्थामा ? : सुभाष गाताडे

सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर लिखने वाले सुपरिचित लेखक, अनुवादक सुभाष गाताडे हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ अपनी मातृभाषा मराठी में भी लिखते हैं. यह ‘आत्म’ अंश उनके जीवन के कुछ ऐसे प्रसंगों से जुड़ा है जो अभी...

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मनुष्य और अन्य प्राणी : रुस्तम

   मनुष्य और अन्य प्राणीरुस्तम 31 मई 2017मनुष्य लम्बे समय से यह दावा करता आया है कि वह अन्य सभी प्राणियों से ज़्यादा बुद्धिमान व समझदार है.  धार्मिक विचारक, दार्शनिक व वैज्ञानिक इस बात पर सहमत रहे हैं...

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जन्मशताब्दी वर्ष : चंद्रकिरण सौनरेक्सा

लेखिकाओं के जन्मशताब्दी वर्ष आयोजन को लेकर हिंदी समाज अनुदार दिखता है. कथाकार चन्द्रकिरण सोनरेक्सा का जन्म आज ही के दिन सौ वर्ष पूर्व हुआ था. उनके लेखन पर चर्चाएँ कम देखने में आती हैं. उम्मीद है इस...

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मनुष्य और अन्य प्राणी : रुस्तम

 अनंत ब्रह्मांड में पृथ्वी पर निवास करने वाला मनुष्य अपनी सोच और संवेदना की सीमा का असीमित विस्तार कर सकता है. लेकिन आज वह सिमट कर ख़ुद मैं क़ैद हो गया है. न उसे अन्य जीवों की चिंता है न प्रकृति की. जबकि...

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राजकमल चौधरी : शिवमंगल सिद्धांतकर

ऐसे थे राजकमल चौधरीशिवमंगल सिद्धांतकर राजकमल चौधरी ऐसे लेखक थे जो जहाँ जाते थे संस्मरणों की बरसात करते होते थे. राजकमल चौधरी ने शुरुआत में मैथिली को अपना चेहरा दिया लेकिन शीघ्र ही हिंदी के विद्रोही...

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बेढब जी बेढब नहीं थे : मैनेजर पाण्डेय

बेढब बनारसी पर वरिष्ठ आलोचक प्रो. मैनजर पाण्डेय का यह लेख इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें जहाँ बेढब के व्यक्तित्व की आत्मीय ऊष्मा है वहीं उनकी व्यंग्य रचनाओं का सम्यक विवेचन भी किया गया है.प्रो. पाण्डेय...

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रज़ा : जैसा मैंने देखा (७) : अखिलेश

चित्रकार सैयद हैदर रज़ा पर अखिलेश द्वारा लिखे जा रहे ‘रज़ा : जैसा मैंने देखा’ का यह सातवाँ हिस्सा प्रस्तुत है. रज़ा के पेरिस में बसने के संघर्ष के दिनों में भारतीय चित्रकारों की वहां आवाजाही भी रही. कुछ...

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बटरोही : हम तीन थोकदार (ग्यारह )

 हम तीन थोकदार (ग्यारह)ठेले पर हिमालय में काफल पकाआमा, मैंने नहीं चखा(धर्मवीर भारती, अतुल पांडे और ‘काफल ट्री’ को याद करते हुए)बटरोही -वह १९७६ की शरद ऋतु थी और विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में...

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दिनकर : एक आत्मकथा जो लिखी नहीं गई : प्रवीण प्रणव

प्रवीण प्रणव माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में कार्य कर रहें हैं और साहित्य में भी उनकी रुचि है. उनके दो कविता संग्रह और कुछ लेख आदि  प्रकाशित हैं. रामधारी सिंह दिनकर ने...

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बटरोही : हम तीन थोकदार (ग्यारह )

 उत्तराखंड की संस्कृति, समाज और साहित्य पर आधारित वरिष्ठ कथाकार बटरोही का स्तम्भ ‘हम तीन थोकदार’ आप समालोचन पर पढ़ रहे हैं.  इस बीच महामारी कोरोना की चपेट में आकर बटरोही जी गम्भीर रूप से अस्वस्थ हो गए...

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अस्मिता भवन, स्वामी दयानंद रोड, राजधानी: अम्बर पाण्डेय

 अम्बर पाण्डेय की कहानियों ने अपनी पहचान अर्जित की है और उनके अपने पाठक भी तैयार हुए हैं. उष्म भाषा, नवाचारी शिल्प और विचारों की उत्तेजना के बीच उनकी कहानियां हर बार कुछ अप्रत्याशित घटित करती हैं....

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जीवन के साठ वसंत : विमल कुमार

   कवि के जीवन का साठवां वसंतस्वप्निल श्रीवास्तव विमल कुमार नौवें दशक के महत्वपूर्ण कवि हैं. विमल के हमराह कवियों में देवी प्रसाद मिश्र,कुमार अम्बुज, अष्टभुजा शुक्ला और हरिश्चंद्र पांडेय जैसे कवि भी...

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मंगलेश डबराल : दिस नंबर दज़ नॉट एग्ज़िस्ट

इधर की कविता में सक्रिय युवा पीढ़ी को मंगलेश डबराल ने बहुत प्रभावित किया है. देखने में शांत, संयमित, बोलने में संकोच के साथ हिचक का सादापन लिए मंगलेश खुलने पर उतने ही गम्भीर, सतर्क और सख्त मिलते थे....

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विष्णुचंद्र शर्मा : वह एक अकेला कर्मशील : प्रमोद कुमार तिवारी

   विष्णुचंद्र शर्मा वह एक अकेला कर्मशील                                                           प्रमोद कुमार तिवारी और विष्णु जी चले गए, उसी ठसक के साथ, जिसमें उनका होना निहित था; उसी सादगी और...

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मंगलेश डबराल : याद बनी रहती है मन में : रंजना मिश्र

 कोई लेखक अपने लेखन से बड़ा तो होता ही है इससे भी होता है कि उसने कितने नए लेखकों को तैयार किया, उनका संस्कार किया, उन्हें नये विषयों पर लिखने के लिए प्रेरित किया आदि.मुझे नहीं मालूम हिंदी के किसी लेखक...

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मंगलेश डबराल : मैं शब्दों में नहीं, कहीं अलग से आती ध्वनियों में हूँ : ओम...

 मंगलेश डबराल के छह कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- ‘पहाड़ पर लालटेन’, ‘घर का रास्ता’, ‘हम जो देखते हैं’, ‘आवाज़ भी एक जगह है’, ‘नये युग का शत्रु’ और ‘स्मृति एक दूसरा समय है’. सभी संग्रहों को दृष्टि में...

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लोकेश मालती प्रकाश की कविताएँ

 ‘कई बार सुबह-सुबह घर से निकलते हैं और सड़क पर रात मिल जाती है.’ साहित्य में रात और दिन अपने प्रतीकात्मक अर्थों में ही अधिक प्रयुक्त होते हैं. ये कविताएँ इसका और विस्तार करती हैं, कभी वे ‘सुकून की...

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