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रज़ा : जैसा मैंने देखा (१०) : अखिलेश

सैयद हैदर रज़ा की कला और शख़्सियत पर आधारित अखिलेश का यह स्तम्भ ‘रज़ा: जैसा मैंने देखा’ धीरे-धीरे अपनी सम्पूर्णता की तरफ बढ़ रहा है. किसी मूर्धन्य चित्रकार को समझने का यह हिंदी में दुर्लभ उद्यम है.अखिलेश...

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अशोक वाजपेयी से अरुण देव की बातचीत

आज अशोक वाजपेयी जन्म के अस्सी वर्ष पूरे कर रहें हैं. लेखन, प्रकाशन, संपादन, संस्था-निर्माण और बहुविध आयोजनों की परिकल्पना और संचालन में वह पिछले छह दशकों से सक्रिय हैं. साहित्य, कला और संस्कृति के...

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नामवर सिंह : शिवमंगल सिद्धांतकर

नलिन विलोचन शर्मा, राजकमल चौधरी, गोरख पाण्डेय पर शिवमंगल सिद्धांतकार के संस्मरण आप पढ़ चुके हैं. यह श्रृंखला कथाकार ज्ञानचंद बागड़ी के सहयोग से प्रस्तुत की जा रही है.  शिवमंगल सिद्धांतकार ने नामवर सिंह...

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जे. एम. कोएट्जी: डिस्ग्रेस : (अनुवाद- यादवेन्द्र)

कभी कंप्यूटर प्रोग्रामर रहे जे. एम. कोएट्जी (जन्म: 9 February 1940) आज अंग्रेजी भाषा और विश्व के बड़े उपन्यासकारों में एक हैं. उनका उपन्यास Disgrace १९९९ में प्रकाशित हुआ था, उसे बुकर मिला फिर नोबेल...

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ज्योति शोभा की अठारह नई कविताएँ

ज्योति शोभा की इन कविताओं को पढ़ते हुए पहला असर तो यही होता है कि कुछ दिनों तक सिर्फ़ इनके साथ रहा जाए. बांग्ला संस्कृति की कोमलता और प्रेम की मुखर उपस्थिति के बीच ये कविताएँ अलग ही संसार रच रहीं हैं,...

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भगवानदास मोरवाल से राकेश श्रीमाल की बातचीत और ख़ा न ज़ा दा

 काला पहाड़(१९९९), बाबल तेरा देस में(२००४) तथा रेत(2008) से चर्चित उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल (जन्म: २३ जनवरी,१९६०) इधर २०१४ से लगभग हर साल उपन्यास आदि लिख रहें हैं- नरक मसीहा(२०१४), हलाला(२०१६), पकी...

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मैं और मेरी कविताएँ (बारह): विनोद दास

 “A poem is never finished, only abandoned.” Paul Valery  समकालीन कविता पर केंद्रित ‘मैं और मेरी कविताएँ’ के अंतर्गत आपने निम्न कवियों की कविताएं पढ़ीं और जाना कि वे कविताएं क्यों लिखते हैं.-आशुतोष...

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पाकीज़ा के प्रतीक: जितेन्द्र विसारिया

 पाकीज़ा के प्रतीक                                                               जितेन्द्र विसारिया 1972में आई फिल्म पाकीज़ा में ऐसा क्या है कि इसे बार-बार देखा जाता है. यह कमाल अमरोही की संकल्पना,...

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युद्ध और हिंदी कहानी: गरिमा श्रीवास्तव

युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित हिन्दी कहानियों के संदर्भ में अक्सर ‘उसने कहा था’ की ही चर्चा होती है. प्रेमचंद युग से लेकर आजतक युद्ध केंद्रित कहानियां लिखने का सिलसिला थमा नहीं है. आलोचक प्रो. गरिमा...

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भूरीबाई: रूपकथा की आत्मकथा: अखिलेश

 भूरीबाई को इस वर्ष के पद्मश्री सम्मान दिए जाने की घोषणा के साथ ही उन्हें लेकर जिज्ञासा प्रकट की जाने लगी कि वे कौन हैं और उनका कार्यक्षेत्र क्या है ?भूरीबाई विश्व की पहली आदिवासी(भील) चित्रकार हैं...

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जयशंकर प्रसाद की जीवनी: सत्यदेव त्रिपाठी

 जयशंकर प्रसाद‘उसकी स्मृति पाथेय बनी’सत्यदेव त्रिपाठी  ‘आँसू’ के प्रणयन के साथ ही उसमें व्यक्त कशिश को लेकर पाठकों के मन में यह जिज्ञासा जागी थी कि वह कौन है, जिसकी याद में यह आवेग फूट पड़ा है. फिर वह...

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रज़ा : जैसा मैंने देखा (११) : अखिलेश

इधर कुछ दशकों में हिन्दुस्तानी होने की गरिमा और संभावना दोनों को नष्ट कर दिया गया है,हजारो सालों से विकसित हुई सभ्यता को एकरेखीय बनाने का खलकर्म इतने बड़े पैमाने पर और हिंसक ढंग से हो रहा है कि आज यह...

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रणेन्द्र से मनोज मोहन की बातचीत

 ‘ग्लोबल गाँव के देवता’, ‘गायब होता देश’ और ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ जैसे  उपन्यासों के लेखक रणेन्द्र को इस वर्ष श्रीलाल शुक्ल इफको सम्मान से सम्मानित किया गया है. इस अवसर पर लेखक-पत्रकार मनोज मोहन ने...

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हमको डिक्टेटर मांगता ! : सुभाष गाताडे

(मुंबई के एक रेस्तरां का दृश्य, फोटो आभार REUTERS) अक्सर लोग बातचीत में यह कहते पाये जाते हैं कि इस देश में सैनिक शासन लागू कर देना चाहिए. ऐसा कहते समय वे यह भूल जाते हैं कि उनके पड़ोसी देशों में यह सब...

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भाष्य : मुक्तिबोध (लकड़ी का रावण): सदाशिव श्रोत्रिय

गजानन माधव मुक्तिबोध (१३ नवम्बर,१९१७ – ११ सितम्बर,१९६४) की लम्बी कविताओं में ‘ अँधेरे में’, ‘ब्रह्मराक्षस’ आदि की चर्चा होती है, पर ‘लकड़ी का रावण’ कविता पर ध्यान कम गया है. नाटकीयता और आंतरिक लय में यह...

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फणीश्वरनाथ रेणु और आंचलिकता: संदीप नाईक

फणीश्वरनाथ रेणु (४ मार्च, १९२१ - ११ अप्रैल, १९७७) का यह जन्मशती वर्ष है. उनपर एकाग्र पत्रिकाओं के अंक प्रकाशित हो रहें हैं और कुछ प्रकाशित होने वाले हैं. ‘बनास जन’ पत्रिका के रेणु केंद्रित अंक के बहाने...

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रज़ा : जैसा मैंने देखा (१२): अखिलेश

अखिलेश द्वारा लिखी यह श्रृंखला ‘रज़ा जैसे मैंने देखा’ इस कड़ी के साथ अब यहाँ सम्पूर्ण हुई, समालोचन में यह पिछले छह महीने से माह के पहले और तीसरे शनिवार को प्रकाशित होती रही है. इसकी बारह कड़ियाँ यहाँ...

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शिरीष मौर्य की आत्मकथा शृंखला की कविताएं

 शिरीष मौर्य इधर थीम केंद्रित कविता- शृंखलाओं पर काम कर रहें हैं.  'रितुरैण', ‘चर्यापद’ और ‘राग पूरबी’ के बाद ‘आत्मकथा’ शीर्षक के अंतर्गत उनकी अठारह कविताएं यहाँ प्रस्तुत हैं जिसपर सारगर्भित टिप्पणी...

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मैनेजर पाण्डेय: भक्तिकाल की पुनर्व्याख्या की आवश्यकता: विनोद शाही

  हिंदी आलोचना के केंद्र में इसकी शुरुआत से ही भक्त-कवि रहें हैं. ग्रियर्सन, मिश्र बन्धुओं, आचार्य रामचंद्र शुक्ल और आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी से होते हुए रामविलास शर्मा, विजयदेव नारायण साही,मैनेजर...

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बंसी कौल: रंग ‘विदूषक’ यायावर निकल गया अपनी अंतिम यात्रा पर: सत्यदेव त्रिपाठी

थियेटर के लिए पद्मश्री से सम्मानित वंशी कौल (23 August 1949 – 6 February 2021)की संस्था ‘रंग विदूषक’ (भोपाल) नाटकों में अपने नवाचार के लिए विश्व विख्यात थी. कैंसर से  लड़ते हुए ७२ वर्ष की उम्र में ६...

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