परिप्रेक्ष्य : विश्व हिंदी दिवस : राहुल राजेश
नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन (१० जनवरी १९७५) की स्मृति में १० जनवरी को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा...
View Articleसहजि सहजि गुन रमैं : विजया सिंह
(फोटो : Santosh Verma : Romancing the Rains)विजया सिंह की कुछ कविताएँ लगभग तीन वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई थीं, आज उनकी कुछ नई कविताओं के साथ समालोचन फिर उपस्थित है.पहली कविता ईरानी युवती रेहाना ज़ब्बारी...
View Articleसबद भेद : मौखिक कहानियों की परम्परा : प्रभात
कथा मौखिक रही है, इन्हें सबसे पहले हम घरों में अपने अग्रजों से सुनते थे. इसकी सहजता, रोचकता और सीख का अब भी कोई विकल्प नहीं है. इस विकल्पहीन समय में जब तमाम चीजें नष्ट हो रही हैं तब वह क्यों कर बची रहे...
View Articleपरख : नाकोहस (पुरुषोत्तम अग्रवाल) संजय जोठे
प्रसिद्ध आलोचक – विचारक पुरुषोत्तम अग्रवाल की कथा – कृति ‘नाकोहस’ अपने प्रकाशन से ही लगातार चर्चा में है. समालोचन पर भी इसे लेकर जानदार बहस मुबाहिसे हुए. ऐसा लगता है कि समय के साथ इसकी प्रासंगिकता बढती...
View Articleसहजि सहजि गुन रमैं : हेमंत देवलेकर (२)
हेमंत कवि हैं और समर्थ रंगकर्मी भी. वे उन कुछ लोगों में हैं जो पूर्णकालिक कला होते हैं, यह जीवट और ज़ोखिम उन्हें लगातार लिख रहा है. पहले भी आप उन्हें समालोचन में पढ़ चुके हैं. इन छह कविताओं में उनकी...
View Articleसमकाल : धर्मसत्ता बनाम राज्य सत्ता : राजाराम भादू
राजाराम भादू संस्कृति पर लिखने वाले प्रखर आलोचक हैं.उनका संस्कृति-बोध समाजिक विकास और राजनीतिक स्थितियों को ध्यान में रखते हुए विकसित हुआ है. वह सीधे वर्तमान में हस्तक्षेप करते हैं.सत्ताएं अंतत:...
View Articleसहजि सहजि गुन रमैं : उत्पल बैनर्जी
(आभार सहित फोटो द्वारा youth ki awaaz)उत्पल बैनर्जी ने बांग्ला भाषा से हिन्दी में स्तरीय अनुवाद किये हैं, वे हिंदी के समर्थ कवि भी हैं. उनका पहला संग्रह ‘लोहा बहुत उदास है’ सन 2000 में प्रकाशित हुआ था....
View Articleमति का धीर : प्रोफेसर नित्यानंद तिवारी
प्रोफ़ेसर नित्यानंद तिवारीदिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग से आने वाले प्रिय व्याख्याताओं में से हैं, उनकी अपनी उनकी आलोचनात्मक जमीन है. हिंदी विभागों में अब ऐसे गुणी, मर्मग्य विवेचकों का अकाल होता...
View Articleलम्बी कविता : प्राथमिक शिक्षक : प्रभात
‘प्राथमिक शिक्षक’ प्रभात की लम्बी कविता है. देश में प्राथमिक शिक्षा की दशा, दुर्दशा को समझने के लिए यह तमाम तरह के सर्वे और रिपोर्ट से कहीं अधिक सटीक और यथार्थ है. प्रभात की रचनात्मकता और उनकी कविता की...
View Articleबोली हमरी पूरबी : रफीक सूरज (मराठी कविताएँ )
मराठी के युवा कवि रफीक सूरज की कविताएँ पहली बार हिंदी में अनूदित होकर प्रकाशित हो रही हैं. यह महती कार्य किया है भारतभूषण तिवारी ने. मराठी कविता में एंटी स्टेबलिशमेंट की मजबूत धारा रही है जो अरुण...
View Articleमेघ -दूत : लव इन द टाइम ऑफ़ कोलेरा : अपर्णा मनोज
वसंतोत्सव के इस माह में प्रेम के विश्व प्रसिद्ध आख्यान ‘Love In the Time of Cholera’ के एक अंश का अनुवाद अपर्णा मनोज ने किया है. अनुवाद सशक्त है, और इसमें इस अंश की ही तरह भावप्रवण प्रवाह मिलता है....
View Articleबोली हमारी पूरबी : असमिया कविताएँ : समीर ताँती
पेंटिग : Neeraj Goswami SMALL GREENसमालोचन के स्तम्भ ‘बोली हमरी पूरबी’ में भारतीय भाषाओँ के कवियों का हिंदी अनुवाद आप पढ़ते रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले मराठी के युवा कवि रफीक सूरज की कविताओं का हिंदी...
View Articleनट : जानवर और गोश्त : दिव्या विजय
मोनोलाग (एकालाप) भी नाटक की ही एक विधा है. नाटक में जो जरूरी चीज है वह है नाटकीयता जो उसे ‘लार्जर देन लाइफ’ या ‘लेस देन लाइफ’ बनाती है. वह समतल दर्पण तो बिलकुल भी नहीं है. और नाटक पढने से अधिक देखने...
View Articleमेघ - दूत : फिलीस्तीलनी कविताएं (सूसन अबुलहवा) : प्रेमचंद गांधी
प्रेमचंद गाँधी समर्थ कवि के साथ उम्दा अनुवादक भी हैं. फिलीस्तीनी कवयित्री सूसन अबुलहवा की इन कविताओं में प्रेम को पढ़ते हुए आप अपने आप को खो बैठेंगे. ये कविताएं उनके संग्रह ‘माय वॉयस सॉट द विण्ड’से...
View Articleरंग - राग : योगेन्द्र : चित्र का दृश्य : अखिलेश
पेंटिग : योगेन्द्रचित्रकार अखिलेश का लेखन उनके चित्रों की तरह सुगठित और संवेदनशील है.किसी चित्रकार के गद्य की भाषा इतनी शानदार भी हो सकती है ? ऐसा कभी-कभी देखने को मिलता है.विषय की बहुस्तरीयता और...
View Articleसहजि सहजि गुन रमैं : सोमप्रभ
(Waswo X. Waswo : The Flower Seller)सोमप्रभ को उनकी तीक्ष्ण,विवेकसम्मत टिप्पणियों से जानता था. यह भी समझा कि वह एक आवरणहीन खुद्दार युवा हैं. जैसा समय है उस में युवा होने का मतलब ही सशंकित होना है. उनकी...
View Articleपरिप्रेक्ष्य : मातृभाषा दिवस : राहुल राजेश
प्रत्येक भाषा अपने आप में एक संसार है, उसमें उसके नागरिकों की संस्कृति, ज्ञान, व्यवहार जैसी तमाम जरूरी चीजें रहती हैं. किसी भी भाषा का लुप्त हो जाना उस सभ्यता का लुप्त हो जाना है. ऐसे में जरूरी है कि...
View Articleमैं कहता आँखिन देखी : राज हीरामन
गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित गोष्ठी (१६-१७ जनवरी/ २०१७), हिंदी कहानी : नई सदी का सृजन और सरोकार’में पधारे मॉरीशस के वरिष्ठ लेखक राज हीरामन से संवाद का अनुरोध समालोचन ने युवा लेखक संतोष...
View Articleपरख : दर्दजा (जयश्री रॉय ): राकेश बिहारी
जयश्री रॉय का उपन्यास ‘दर्दजा’ ‘फ़ीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन’ की (कु) प्रथा और उसकी यातना को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास है जो इधर खूब चर्चित हुआ है और उसे स्पंदन सम्मान भी दिया गया है. ‘दर्दजा’ पर लिखे...
View Articleपरिप्रेक्ष्य : अवधनारायण मुद्गल : हरे प्रकाश उपाध्याय
‘सारिका’ पत्रिका के संपादक रहे अवधनारायण मुद्गल अपनी कहानियों के लिए भी जाने जाते हैं. उनकी जन्मतिथि २८ फरवरी को पड़ती है. इस अवसर पर हरे प्रकाश उपाध्याय का यह लेख उन्हें आत्मीयता से याद करते हुए....
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